कथा छैक जे भगवान शंकर कें परमेश्वर रूप मे वरण कए दक्ष प्रजापति केर कान्या सती जी नित्य कैलाश धाम में विराजमान रहैत शिव अनुग्रह सं अभिभूत छलीह। किंतु पार्वती रूप में अएबा लेल आ दक्ष केर कार्यकाल समाप्त करबाक हेतु स्वयं सतीजी द्वारा लीला रचल गेल। दक्ष अपन राजधानी मायापुरी क्षेत्र हरिद्वार के गंगातट कनखल मे,एक विराट यज्ञआयोजित कएने छलाह जाहिमें समस्त देवता, ऋषि-मुनि तं आमंत्रित छलाह मुदा स्वयं शंकर जी नहि। यज्ञ में सम्मिलित होएबाक लेल जखन सती शंकर जी सं आज्ञा मंगलनि तं ओ ई कहैत आज्ञा देबा सं इंकार कएलनि जे ई यज्ञ अपमान आर प्रतिशोधक लेल कएल जा रहल अछि,तें ओहि ठाम जाएब अनिष्टकर भ सकैत अछि। परञ्च,सती कें तं उद्देश्य किछु आओर छल। ओ शंकरजी सं स्वीकृति लेबाक लेल जिद क देलनि। शंकर जहिना ओहि ठामसं उठिकए अन्यत्र जाए लगलाह कि आद्याशक्ति सती कालिका रूप में प्रकट भ शंकर के सम्मुख ठाढ भ गेलीह। हुनकर स्वरूप एहन विकराल छलनि कि शिव घबराकए आन दिशा मे भागए लगलाह। मुदा सतीजी कहां मानएवाली रहथि। ओ काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी आर कमला दश महाविद्या केर रूप में दसो दिशा मे व्याप्त भ गेलीह। तखन शंकर कें बूझबैत मां कहलनि कि ओ जगत कल्याणक लेल ई लीला रचने छथि।
मान्यता छैक जे तकर बाद, सतीजी सोझे दक्ष प्रजापति कें यज्ञ मंडप मे पहुंचलीह। ओहि ठाम शिव केर घोर उपेक्षा सं क्रुद्ध भ कए दक्ष कें दंडित करबाक लेल सतीजी योगाग्नि सं अपन छाया देह कें दग्ध क लेलनि। शंकरजी कें जखन नंदीगण सं एहि घटना देया पता चललनि तं ओ तो अपन जटा उखाड़िकए अपन एक स्वरूप वीरभद्र कें प्रकट कएलनि आ ओकरा दक्ष केर वध करबाक तथा यज्ञ विध्वंस करबाक लेल कहलनि। तदनुसार,वीरभद्र सभट तहस-नहस क देलक। दक्ष कें सिर धड़ सं अलग क देलक।
एम्हर,भगवान शंकर सतीजी कें दग्ध छायादेह कें कन्हा पर रखिकए संपूर्ण हिमालय क्षेत्र, तीर्थक्षेत्र गिरि-पर्वत सहित भूमंडल केर चक्कर काटए लगलाह। देवतालोकनि कें भेलनि जे आब प्रलय अवश्यंभावी अछि। तें, विष्णु अपन सुदर्शन चक्र सं छायादेह कें कतेको भाग मे बांटि देलनि। जे अंग जाहि ठाम गिरल, ओहि ठाम शक्ति पूंजीभूत भ कए जगत कल्याण केर केंद्र बनि गेल। एकरे शक्तिपीठ कहल गेलैक। पुराणक जानकार लोकनिक मत छन्हि जे एहि शक्ति पीठ सभहक उपासना सं भारतक सीमा सुरक्षित रहैत छल। विभिन्न पुराण आ शक्ति-ग्रंथ मे उल्लिखित शक्ति पीठक संख्या फराक छैक। तंत्रचूड़ा मणि में एकर संख्या 52, श्रीमद्देवीभागवत में 108, देवी गीता में 72 आ देवीपुराण में 51 बताओल गेल छैक। मुख्य अंग-प्रत्यंग कें गणना कें आधार मानि कए, एकर संख्या 51 मानल जएबा पर लगभग सर्वसम्मति छैक। परञ्च प्रत्यंग कें सूक्ष्म अंगविशेष आ असंख्य रोम कूपक वर्षण प्रायः विराट धरातल पर भेलाक कारणें आदिशक्ति कण-कण में व्याप्त भ गेलीह आ पूजल जाए लगलीह। कोलकता केरकालीघाटस्थित कालिका शक्तिपीठएहने शक्तिपीठ अछि जाहिठाम सतीजी कें छायादेहक अंउठा छोड़ि दहिना पएरक चारिटा आंगुर खसल चल। यहां शक्ति कालिका रूप में भैरव नकुलीश छथि। किछु गोटे कोलकाता केर शलीगंज के पास आदिकाली मंदिर कें सेहो शक्तिपीठ कहैत छथि। युगाद्या शक्तिपीठ - बंगाले कें वर्धमान जिला के उत्तर मे क्षीरग्राम में अछि। एतय सती कें दहिना पएरक अंउठा गिरल छल। एहि पीठ कें शक्ति भू-धात्री आ भैरव क्षीर कष्टक छथि। त्रिस्रोता शक्तिपीठ - बंगाल कें जलपाईगुड़ी जिले कें बोदा क्षेत्र में शालवाड़ी गाम मे तीस्ता नदी के तट पर छैक जतए सती केर बामा पएर खसल छल। एहिठामक शक्ति भ्रामरी आ भैरव ईश्वर छथि । बहुला शक्तिपीठ मे शक्ति केर बामा हाथ खसल छलन्हि। ई पीठ हावड़ा कें कटवा जंक्शन सं पश्चिम ब्रह्मकेतु गाम में छैक जतए बहुला शक्ति आ भीरुक भैरव के रूप में पूजल जाइत छथि। तहिना,आन पीठक क्रम सेहो छैक - वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ, नलहरी शक्तिपीठ, नंदीपुर शक्तिपीठ, अट्टहास शक्तिपीठ, किरीट शक्तिपीठ, यशोर शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ, करतोया शक्तिपीठ, सुगंधा शक्तिपीठ, विभाष शक्तिपीठ, भैरव पर्वत शक्तिपीठ, रामगिरि शक्तिपीठ, (मैहरवाली शरदा) उज्जयिनी की हर सिद्धि शक्तिपीठ, शोष शक्तिपीठ, शुचीन्द्रम शक्तिपीठ, रत्नावली शक्तिपीठ, कण्यकाचक्र, काच्ची शक्तिपीठ, मिथिला शक्तिपीठ, वाराणासी विशालाक्षी शक्तिपीठ, प्रयाग ललिता शक्तिपीठ, पुष्कर गायत्री शक्तिपीठ, बैराट अम्बिका शक्तिपीठ, गिरनार अम्बा शक्तिपीठ, कुबबूर कोटितीर्थ विश्वेशी शक्तिपीठ, श्रीशैल भ्रमरम्बा शक्तिपीठ, कोल्हापुर करवीर शक्तिपीठ, नासिक पंचवटी भद्रकाली शक्तिपीठ, कश्मीर श्री पर्वत शक्तिपीठ, अमरनाथ कंठपीठ, जालंधर पीठ, उत्कल विमला शक्तिपीठ, हिमाचल ज्वालामुखी शक्तिपीठ, असम कमरूप (कामाख्या) शक्तिपीठ, जयंती शक्तिपीठ, मेघालय, त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ त्रिपुरा, कुक्षेत्र सावित्री शक्तिपीठ, कालमाधव शक्तिपीठ, गंडकी शक्तिपीठ नेपाल, गुहोश्वरी शक्तिपीठ पशुपतिनाथ नेपाल, हिंगलाज शक्तिपीठ, बलूचिस्तान, लंका इंद्राक्षी शक्तिपीठ, मानस कुमुदा शक्तिपीठ मानसरोवर तिब्बत, पंचसार शक्तिपीठ।
शक्तिपीठक रहस्य आराधना, साधना आ दर्शन देया देवी भागवत, अह्मपुराण, पद्म पुराण, मत्स्यपुराण, कूर्मपुराण, तंत्रचूडामणि शिव चरित्र इत्यादि ग्रंथों में विस्तार सं कहल गेल छैक।(नईदुनिया,दिल्ली संस्करण,16.3.2010 मे प्रकाशित गोविंद वल्लभ जोशी केर आलेख पर आधारित)