भारतीय संस्कृति केर उत्सवधर्मिताक चटक रंग मेला सभहक रूप मे बिहारो मे पसरल छैक। मेला में चारू दिसि जीवन-संस्कृति कें कोरस गाओल जाइत छैक। अंग प्रदेश केर विषहरी गीत, कोसी कें भगैत, मध्य बिहार केर कजरी, मिथिला केर सामा चकेबा- सभटा जीवने गीत तं अछि। बिहार में मेला सभहक परंपरा बड्ड पुरान छैक। मानल जाइत छैक जे गया कें पितृपक्ष मेला केर इतिहास वैदिक काल सं जुड़ल छैक। श्रावणी मेला केर ऐतिहासिकता तं स्वयंसिद्ध अछिए। पूर्णिया कें गुलाबबाग मेला कें याद तं तीसरी कसम फिल्म में स्थिर भइए गेल अछि। बांका कें मंदार मेला, अंग प्रदेशक समृद्ध संस्कृति केर वाहक अछि। मधेपुरा कें सिंहेश्र्वर स्थान मेला केर जुड़ाव रामायण काल सं छैक। सोनपुर कें पशु मेला आब दुनिया भरि मे ख्यात अछि। कातिक पूर्णिमा कें अवसर पर गंगा आर गंडक तट पर लगएवला ई मेला बिहारक पैघ पहिचान अछि।
खासकए,तीसरी कसम में गुलाबबाग मेला केर याद,जे लोकनि तीसरी कसम देखने हेताह, तनिकर स्मृति में जरूर एखनो हेतन्हि। फणीश्र्वर नाथ रेणु जी केर कृति पर बनल एहि फिल्म में एकर कतेको दृश्य सभ छैक। गुलाबबाग मेला केर उत्स आब 100 बरख पूरा क चुकल अछि। एकर शुरुआत पी.सी लाल साहेब पूर्णिया सिटी सं कएने छलाह। ओहि समय मे मेला केर प्रचार-प्रसार एतेक बेसी भेल रहैक कि जगह कम पड़ए लागल। तखन एकरा गुलाबबाग मे लगाओल जाए लागल। प्रत्येक वर्ष कातिक में लगएवला वाला एहि मेला में विभिन्न प्रजाति कें पशु-पक्षी केर खरीद-बिक्री होइत छल। आब ई प्रवृत्ति घटल छैक। पहिने,एहि मेला मे नौटंकी कंपनी, थियेटर, जादू के खेल सभ साल लगैत छल। बिहारे टा नहि, नेपाल आ पश्चिम बंगाल धरिक लोक एक मासक एहि जमघट कें आनंद लैत छलाह। सोनपुर मेला केर समतुल्य ई उत्सव पूर्णिया पूर्व प्रखंड प्रशासन केर पहल पर हाल तक आयोजित होइत छल। उम्मीद कएल जा रहल छैक जे ई मेला आओर संवर्द्धित हएत। बिहार मेंपर्यटक सभहक बढैत संख्या कें देखिकए, गुलाबबाग कें लोकक हौसला सेहो बढ़ल छैक। कोशिश कएल जा रहल छैक जे ई मेला अपन पुरान गौरव कें फेर सं हासिल क सकए।
(दैनिक जागरण,मुजफ्फरपुर संस्करण,16.3.2010 मे प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)