आइ नव संवत्सर अछि। पूजा-पाठ मे लागल लोकनि कें संवत्सर अथवा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा देया कोनो विशेष ज्ञान नहि रहितो,ओ सभ एहि प्राचीन परम्परा पर गर्व अवश्य करैत छथि। वस्तुतः,ई कोनो सामान्य तिथि नहि छैक । वर्ष प्रतिपदा केर तात्पर्य छैक प्राचीनतम नव वर्ष केर पहिल दिन जकरा भारतीय समाज भक्ति भाव सं पूरा नौ दिनों धरि मनबैत अछि। ई बूझब बड्ड जरूरी छैक जे ई इसवीं सन् अथवा हिजरी सन् केर पहिल दिन नहि, अपितु एहि सृष्टिक प्रथम दिन होइत अछि। एहि सृष्टिक प्रारंभ आइ सं एक अरब ९७ करोड़ २९ लाख ४९ हजार एक सए छओ वर्ष पूर्व भेल छल । ओही दिन सूर्यक प्रथम किरण पृथ्वी पर आयल छल जकर स्वागत मे नव सम्वत्सर मनाएल जएबाक परंपरा प्रारंभ भेल। नव सम्वत्सर देया एक मान्यता इहो छैक जे अझुके दिन ब्रह्माजी सृष्टि रचने छलाह, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामक राज्यभिषेको आइये भेल छल आ उज्जयिनी कें चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य सेहो एही तिथि सं विक्रम सम्वत् प्रारम्भ करने छलाह। शिव पुराणक अनुसार, भगवान शंकर केर प्रेरणा सं, साठि टा संवत्सर बनल छल जाहि मे ब्रह्मा, विष्णु आ महेशक नियंत्रण मे 20-20 टा छल। एहि क्रम मे,एहि बरखक अ़़ड़तीसम सम्वत्सर विष्णु नियंत्रण क्रम केर "शोभन" अछि।
एहि वर्ष कें शोभन सम्वत्सर मे, सौर मण्डल कें सर्वेसर्वा मंगल आ हुनक प्रधानमंत्री बुध छथि। "सस्येश" अर्थात् कृषि आ ओहि सं सम्बन्धित मंत्रालय शुक्र के पास हेबाक कारणे नीक पानि हेबाक अनुमान व्यक्त कएल गेल अछि। चाउर, केतारी, गहूम, बूट आदि केर उपजा नीक हएत। फल, फूल सभहक सेहो पर्याप्तता रहत। बेसी पानि परेशानी केर कारण सेहो बनि सकैत अछि। "धान्येश" अर्थात् धन धान्य विभाग बृहस्पति लग भेलाक कारणें अन्न, धन केर लाभ समाज कें भेटत। कुल मिलाकए,एहि संवत्सर केर मिश्रित फल संसार कें भेटत।