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Sunday, March 21, 2010

विश्व कविता दिवस पर मैथिली

पति-पत्नी कथाःराजकमल चौधरी

स्त्री अपन सखा-संतान,भानस-बासन
सुख सेहन्ता,पीठक
हरियर-पीयर दर्द,आ उधार लहनाक
कथा
कहैत अछि,
कहैत रहि जाइत अछि भोर सं सांझ धरि
बाड़ीक कोनटा सं
आंगनक मांझ धरि
कहैत रहि जाइत अछि सांझ धरि

पुरुष ओहि स्त्री,आ ओहि स्त्रीक सखा-सन्तान
भानस-बासन,सुख-सेहन्ता,पीठक
कथा
सुनैत अछि
सुनैत रहि जाइत अछि सांझ सं भोर धरि
ठोर सं मन्द मन्द मुस्की सं
आंखिक नोर धरि
सुनैत रहि जाइत अछि भोर धरि
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अनभुआरःमार्कण्डेय प्रवासी

परिचय जतबे गाढ़ भेल अछि
ओतबे अपरिचित लगैछ
अपने मोनक अन्धकार!
नहि जानि-
हम बदलल छी
वा बदलि गेल अछि हमर चिन्तनक आधार
आन की अछि
से जानब तं कठिन अछि
काल-दर्पण मे अपने प्रतिबिम्ब आब
लगैत अछि अनभुआर।
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वृद्ध-चिंतनःसोमदेव

भाग्यक रेखा हाथ मे,मुक्तिक रेखा मांथ।
पोथी पतरा वणिक लै,बड़दक लै जनु नांथ।।
बेटी कें बेटा बुझू,इंजीनियर बनाउ।
संस्कृतनिष्ठ बर चूनिकै,अपने घर ल आउ।।
बेटाबाला बाप लै वृद्धाश्रम वरदान।
पूत देश परदेश मे,अस्पताल मे प्राण।।
सेवक पाइक दास थिक,हीरोईन बरू दाइ।
आन्हर घरनी सं सुखी,भनसाघरक बिलाई।।
डाक्टर व्यापारी बनल,खाली जांच दवाई।
नब्बे प्रतिशत नफा टा,दस प्रतिशत बैदाई।।
बेटा कें एतबे फिकिर,बाप-माय मरि जाय।
घर-सम्पत्ति बेचि कै,दिल्ली मे बसि जाय।।
पत्नी,पेंशन आर प्रभु,तीने टा शिवनेत्र।
बांकी सभ मेला बुझू,घर मे हरिहर क्षेत्र।।
दरद देह मे,नेह मे,तन जनु डहइत गेह।
आंखि कान आ दांत सभ,टूटल बाटक रेह।।
जाप करू,पूजा करू,सभठां डरबै मौत।
मुक्ति न सूझै इष्ट प्रभु,भूत भविष्यक खौंत।।
विद्यापति केर देश मे,गंगा मुक्तिक घाट।
धरा मैथिली,शिवहि गुरू,पाहुन रामक बाट।।
(आखिरी कविता मिथिलांगन केर अक्टूबर,2009-मार्च,2010 अंक सं साभार)