दिल्ली में 21 मार्च कए कर्ण कायस्थ लोकनिक सम्मेलन हुअए जा रहल छैक। सम्मेलन किछु अजर विषय पर चर्चा करबाक प्रयोजन सं आयोजित कएल गेल छैक। आयोजन हएत 2 बजे सं 5 बजे तक आ सम्मेलन स्थल अछि-लोक कला मंच,20,लोदी रोड(साईं बाबा मंदिर के पाछू)। सम्मेलन केर आयोजक छथि गोपाल कर्णजी(सम्पर्क-9810983974 आ 9015197544)जे दिल्ली मे कायस्थ लोकनि मे पंजीकारक रूप मे ख्यात छथि। मंडप नामक वैवाहिक संस्था चलबैत छथि आ तीन सए सं ऊपर विवाह करा चुकल छथि। स्वाभाविक जे एहि क्रम मे ओ मैथिल कायस्थक वैवाहिक जटिलता केर गत्तर-गत्तर सं परिचित भेल हेताह। दुनिया कायस्थ समाज के बड़ प्रगतिशील बुझैछ। खूब शिक्षित आ सभ दिन सं रोजगारक मद मे आगू। मुदा ई शिक्षा विवाहदानक अवसर पर घोसरि जाइत छन्हि आ बड़का-बड़का लोक तेहन जड़बुद्धि प्रमाणित होइत छथि जे कहल नहि जाए। कायस्थ लोकनिक जे संस्था सभ छैक,ताहि मे कतेको बेर एहि विषय पर चर्चा भ चुकल छैक जे केना रूढिवादिता कें तोड़िकए आधुनिक बनल जाए। नीक-नीकुत गप्पो कएनिहारक कोनो कमी नहि छैक परञ्च पहल करबा लेल केओ तैयार नहि। तें,गोपाल जी सम्मेलन क रहल छथि जकर विचारार्थ विषय निम्नांकित छैकः
1. छोट-पैघ केर परिभाषा नव सिरा सं गढिकए परिचय मे संशोधन कएल जाए।
2. बीअर सं मूलक क्षेत्र विस्तृत अछि,तें एकर संकुचन कएल जाए।
3. विवाह निश्चय भेला सं पहिने कान्या सं भेंट करबाक चलन मे सुधार कएल जाए किएक तं आब बेटियो सभ ककरो सं कम नहि छैक।1. छोट-पैघ केर परिभाषा नव सिरा सं गढिकए परिचय मे संशोधन कएल जाए।
2. बीअर सं मूलक क्षेत्र विस्तृत अछि,तें एकर संकुचन कएल जाए।
4. वरागत केर खर्च वरपक्ष स्वयं वहन करए आ कन्यागत द्वारा एहन खर्च वहन करबा पर रोक लगाओल जाए। अपन खर्च वहन नहि करनिहार वरागत के बहिष्कार कएल जाए।
5. कान्या निरीक्षण केर उपरान्त,अन्यत्र कएल जा रहल विवाह कें बहिष्कार कएल जाए।6. पंजी कें कंप्यूटरीकरण हुअए।
7. अपन मातृभाषा सं नेना-भुटका सभ कें अवश्य शिक्षा दी।
8. गरीब,विधवा आ विकलांग कन्या विवाह कें प्रोत्साहन देल जाए।
9. विभिन्न शहर सभ मे विवाह-स्थलक निर्माण हुअए।
10. अंतर्जातीय विवाह पर विचार करैत निर्णय कएल जाए।
विचारार्थ विषय सं स्पष्ट छैक जे ई कोनहु समाजक लेल आदर्श स्थितिक कल्पना छैक। विषयक निर्धारण ई संकेत करैछ जे आजुक मैथिल कायस्थ समाज कोन तरहें गुमसि रहल अछि आ ओकरा भीतर कोन तरहक विद्रोह कें बीजारोपण भ रहल छैक। ई एक सामान्य अनुभव अछि जे 32 आ 64 गामा लोकनि अपन बेटी कें कत्तहु फेकबा मे संकोच नहि करैत छथि मुदा हुनका अपन अकर्मण्य बालक लेल समतुल्य सं कम परिचय नहि चाहिएन्हि-चाहे कान्या कतबो सुयोग्य हुअए। जनिकर परिचय कनेक कम छन्हि,सेहो तेहने। बेटी लेल संसार कें उचित-अनुचित बुझओताह मुदा बेटा लेल हुनको 32 गामा लड़की चाहिएन्हि। सामाजिक गतिशीलता केर सिद्धांतक जेहन विकृत स्वरूप आइ कायस्थ समाज मे देखबा मे अबैत अछि,शायदे कोनो आर जाति मे हुअए। एहन परिस्थिति मे विकलांग आ विधवा कन्या देया के विचार करत।
एहन बूढ-बुजुर्ग सभ एखन छथि जे खोदि कए पुछला सं बतओताह जे केना संबंधित पंजीकारकें लल्लो-चप्पो कए हुनक गामक श्रेणीकरण आ मूल निर्धारण कराओल गेल छल। जे पंजीकार कें जतेक खातिरदारी कएलन्हि तनिकर स्तर ताहि तरहें निश्चित कएल गेल। आ से मूल आइ विवाह निर्धारण लेल अंतिम सत्य बनल अछि। ई परम जड़,अचेतन आ पतनोन्मुख समाजक लक्षण छैक। मोन पड़ैत अछि,कतेको बरख पहिने अखबार मे पढने छलहुं जे सुपौलक कायस्थ समाज निर्णय लेने छल जे श्राद्धभोजक आयोजन नहि कएल जाए किएक तं दान-पुण्यक आडंबर मे लोक जेना-तेना कर्ज ल लैत अछि आ काम-काज संपन्न भेलाक बाद कतेको महीना धरि कुहरैत रहैत छथि। ओहि निर्णय पर कतेक घड़ी धरि अमल कएल गेल से नहि जानि परंतु एतेक तं कहले जा सकैछ जे सभतरि परिवर्तन केर अपेक्षा कएल जा रहल अछि। ई आकांक्षा कार्यरूप लिअए,ताहि दिशा मे, निरन्तर विचार-विमर्श कें सार्थक प्रयास मानल जएबाक चाही। कोनहु सम्मेलन मे एहन निर्णय नहि लेल जा सकैछ जे सभपर तत्क्षण सं लागू कएल जा सकए। तइयो,समस्या दिस ध्यानाकर्षण तं होइते छैक। एहि ध्यानाकर्षण केर बारंबारता जं बेसी भ सकए,तं परिवर्तन केर लहरि सेहो बहब प्रारंभ भइये जेतैक।