बिहार आ झारखंड मे, मधुबनी पेंटिंग जकां कहियो ‘कोहबर’ आर ‘सोहराई’ भित्ति चित्रकला के प्रति सेहो लोक सभहक विशेष झुकाव रहैत छल मुदा आब ई कला विलुप्त हेबाक कगार पर अछि।
एकरा झारखंड के जनजातीय कला कहल जाइत छैक। एहि कला मे ‘वंश वृद्घि’ आर ‘फसल वृद्घि’ के चित्रण कएल जाइत छैक। बिहार आर झारखण्ड के संथाल, मुंडा, गोंड, कोरमा, असुर आ बैगा जनजातिक लोकसभ आइयो एहि भित्तिचित्रक बखूबी इस्तेमाल करैत छथि।
परम्परा के अनुसार,एहि कला कें घरक देबार पर चित्रित कएल जाइत छैक। एहि कला पर शोध क रहल विनोद रंजन के अनुसार, एहि मे मुख्य रूप सं देबार पर जानवर सभहक चित्र अंकित कएल जाइत छैक। एहि कला के उत्थान लेल कार्यरत हजारीबाग के बुलु इमाम के अनुसार,एहि प्राचीन कला केर स्थिति वर्तमान समय में एकदम दयनीय भ गेल छैक। इमाम जी कें कहब छन्हि जे एहि कला कें हड़प्पा संस्कृति के समकालीन मानल गेल छैक। इमाम जी के अनुसार, एहि कला कें ककरहु घर पर विवाह के बाद वंशवृद्घि लेल तथा दीपावली के बाद फसल वृद्घि लेल प्रयोग कएल जाइत छैक। मान्यता छैक जे जाहि घरक देबार पर कोहबर आर सोहराई कें भित्तिचित्र रहैत छैक ओकर घर में वंश आर फसल वृद्घि होइते रहैत छैक।
फसल वृद्घि लेल लोक प्राकृतिक वस्तु सभहक चित्र बनबैत छथि आ वंशवृद्घि लेल दिल, राजा-रानी आदि केर चित्र । एहि कला केर सभसं पैघ विशेषता छैक जे कलाकार पूरा देबार पर एकहि बेर में चित्र बनबैत छैक।
हजारीबाग के मांडु केर 22 वर्षीया पुतली एहि कला में माहिर छथि। हुनकर बनाओल "कोहबर" आर "सोहराय" पेंटिंग आस्ट्रेलिया केर आर्ट गैलरी ऑफ न्यू साउथवेल्स,सिडनी में वर्ष 2000 में लगाओल गेल छल जे ओतए लगएवला ई भारत केर पहिल पेंटिंग छल। पछिला वर्ष मिलान, लंदन, आर जर्मनी मे सेहो हुनक पेंटिंग कें बड्ड प्रशंसा भेल छल।
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