चंदा झा
1.ब्राह्मणक भोजनप्रियता पर-चूड़ादही बाभन सोंटथि गटगट रे।
नित नओत वैसि जाथि निरहट रे।।
धनहा आंसूक चूड़ा खाथि मुंहफट रे।
रातिभरि निन्द कहां पेट भट भट रे।।
2. क्रुद्ध परशुराम द्वारा शिवधनुष भंजक कें मृत्युदंड देबाक बात कहला पर लक्ष्मणक उक्ति-लक्ष्मण कहलनि कह अजगूत।
क्षत्रिय क्षत कत अपने बूत।।
शिवधनु टूटल देत के जोड़ि।
की होअ आब कपारे फोड़ि।।
लाल दास
1. धनुषभँग करबा मे रावणकें असफल भेलाक बादक चित्रणःखसल मुकुट टूटल वरहार।
धोती खुजल न रहल संभार।।
पड़ल सभा मे हाहाकार।
भेल ठहक्का हँसी अभार।।
2. विवाहोपरांत सारि-सरिहोजक वचन-अहँक वंश केर अद्भुत कर्म।
सुनल पुरुषकें प्रसवक धर्म।।
पुनि सुनलहुं पायस कें खाय।
लै अछि नारि पुत्र जनमाय।।
एहि पर रामक प्रत्युत्तर-
हम सुनलहुं तिरहुतिक रीत।
महि मे उपजय सन्तति सीत।।
मथल जाय जँ मृतक शरीर।
तेहि सँ उपजय बालक वीर।।
हरिमोहन झा
ब्राह्मणभोजन केर मान्यता पर-कलियुगमे यदि सकल पापसौं क्यौ चाहथि उद्धार।
ब्राह्मण भोजन नित्य कराबथि चूड़ा-दही-अचार।।
मैथिल संस्कृति बिसरिकए पाश्चात्य सभ्यताक टी-पार्टी संस्कृति अपनएला पर-
एकटा सिंहारा एक फक्का दालमोट।
एक रसगुल्ला और बुनिया एक चौठीमात्र।।
तोलाभरि सेवई और समतोला दुह फांक।
एक चुटकी किशमिश तथा सोहल एक केरा टा।।
मायानन्द मिश्र
गे नोचनी तोहर गुण कतेक हम गाउ
जखन तोरा हम कुरियाबै छी
स्वर्गक सुख हम पाबै छी।
कीर्तिनारायण मिश्र
सभ किछु नीक लगइए।यथास्थिति मे सभ सुख भेटइए।।
रोटी भ गेल राजनीति केर ग्रास।
पेट अध्यादेश सं भरइए।।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर
शांति–शांति हरिओम शान्ति सँ
नवनिर्माण शुरु रे भैया।
गुरु छल से चेला बनला
चेला बनि गेल गुरु रे भैया ।।
हंस चढल श्री लक्ष्मी मैया
उल्लू चढल सरस्वती मैया।।