काल्हि सतुआइन छल आ आइ जूड़शीतल अछि। एहि अवसर पर पितरक लेल लोक सभ सत्तू, जौ, टिकुला आ हाथ-पंखा दान कएल जाइत छैक। घर में बड़ी, भात, दलिपूड़ी, आमक चटनी बनैत छैक। सतुआ आ गुड़ कें प्रसाद कुलदेवता कें चढ़एबाक परम्परा सेहो छैक। कुलदेवताक समक्ष पानि भरल लोटा राखल जाइत छैक आ ओही पानिक थप्पा अगिला दिन अर्थात् जूड़शीतल कए छोट सभ कें अन्हरगरे, सुतले मे ,माथ पर आशीष स्वरूप देल जाइत छैक। पानि में राखल बासी भात आ बड़ी खएबाक परम्परा रहल छैक । भात आ बड़ी घर के दरबज्जा लग आ चूल्हा पर सेहो चढ़ाओल जाइत छैक। चूल्हिया नेवार रहैत छैक अर्थात् चूल्हि पर भोजन नहि बनाओल जाइत छैक। जूड़शीतल मे एहन प्रत्येक स्थान कें साफ रखबा पर विशेष जोर रहैत छैक जाहि ठाम पानि राखल जाइत छैक।
आइए सं मलमास सेहो प्रारंभ भ रहल अछि। मलमास कें अधिकमास अथवा पुरुषोत्तम मास सेहो कहल जाइत छैक। जाहि चंद्रमास में सूर्य कें राशि-संक्रमण अर्थात एक राशि सं दोसर राशि में प्रवेश (संक्रांति) नहि हुअए,ओकरे मलमास कहल जाइत छैक। सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता छथि। समस्त धर्म-कर्म सूर्यदेव कें साक्षी मानिकए कएल जाइत छैक। विक्रम संवत् 2067 में मेष संक्रांति आर वृष संक्रांति के मध्य के दुनू पक्ष में सूर्य कें कोनो संक्रांति नहि छैक। तें, 15 अप्रैल सं 14 मई, 2010 के मध्यक अवधि मलमास रहत। खासकए बिहार,उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान मे एहि मास मे निष्काम भक्ति के अतिरिक्त आन सभ कार्य वर्जित रहैत छैक। पूर्वी व दक्षिण प्रदेश मे एहि तरहक दोष नहि मानल गेल छैक।
पुराण मे कहल गेल छैक जे हर तेसरे वर्ष पड़एवाला मलमास मनुष्य कें जीवनवृत्ति के चक्र सं मुक्त करैत छैक। तें, एहि मासक महत्ता कनेक बेसि छैक। मलमास मे धार्मिक कर्मकांडक संख्या बढ़ि जाइत छैक। श्रद्घालु मलमास में बेसी समय तीर्थ में बितबैत छथि। भगवान मलमास में भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण कें उपासना, जप, व्रत, दान आदि करबाक चाही।
उत्तरभारत में यज्ञ-अनुष्ठान सभहक बेसी महत्व रहल छैक। कथा छैक जे पौष मास में ब्रह्मा जी पुष्य नक्षत्र के दिन अपन पुत्री के विवाह कएलनि, मुदा विवाहे काल मे धातु क्षीण भ गेलाक कारणें ब्रह्मा जी पौष मास आ पुष्य नक्षत्र कें श्राप द देलन्हि।
आइए सं मलमास सेहो प्रारंभ भ रहल अछि। मलमास कें अधिकमास अथवा पुरुषोत्तम मास सेहो कहल जाइत छैक। जाहि चंद्रमास में सूर्य कें राशि-संक्रमण अर्थात एक राशि सं दोसर राशि में प्रवेश (संक्रांति) नहि हुअए,ओकरे मलमास कहल जाइत छैक। सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता छथि। समस्त धर्म-कर्म सूर्यदेव कें साक्षी मानिकए कएल जाइत छैक। विक्रम संवत् 2067 में मेष संक्रांति आर वृष संक्रांति के मध्य के दुनू पक्ष में सूर्य कें कोनो संक्रांति नहि छैक। तें, 15 अप्रैल सं 14 मई, 2010 के मध्यक अवधि मलमास रहत। खासकए बिहार,उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान मे एहि मास मे निष्काम भक्ति के अतिरिक्त आन सभ कार्य वर्जित रहैत छैक। पूर्वी व दक्षिण प्रदेश मे एहि तरहक दोष नहि मानल गेल छैक।
पुराण मे कहल गेल छैक जे हर तेसरे वर्ष पड़एवाला मलमास मनुष्य कें जीवनवृत्ति के चक्र सं मुक्त करैत छैक। तें, एहि मासक महत्ता कनेक बेसि छैक। मलमास मे धार्मिक कर्मकांडक संख्या बढ़ि जाइत छैक। श्रद्घालु मलमास में बेसी समय तीर्थ में बितबैत छथि। भगवान मलमास में भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण कें उपासना, जप, व्रत, दान आदि करबाक चाही।
उत्तरभारत में यज्ञ-अनुष्ठान सभहक बेसी महत्व रहल छैक। कथा छैक जे पौष मास में ब्रह्मा जी पुष्य नक्षत्र के दिन अपन पुत्री के विवाह कएलनि, मुदा विवाहे काल मे धातु क्षीण भ गेलाक कारणें ब्रह्मा जी पौष मास आ पुष्य नक्षत्र कें श्राप द देलन्हि।