पहिरन-ओढन आ भोजन संगहि जं कोनो चीज कोनहु क्षेत्रक परिचायक होइत छैक तं ओ छैक- भाषा। भाषा सहजहिं बोध करबैछ जे व्यक्ति कोन ठामक अछि। भाषा अपन लिखित रूप में ई सामर्थ्य लिपि के माध्यम सं प्राप्त करैछ। एहन भाषा सबहक संख्यो बेसी नहि छैक जकर अपन स्वतंत्र लिपि हुअए। एहि मामिला में मैथिली सौभाग्यशाली अछि जकर अपन स्वतंत्र लिपि छैक। एकरा कहियो वैदेही लिपि कहल गेलैक तं कहियो तिरहुता। वर्तमान में ई मिथिलाक्षर कहाइछ। मुदा एकर जननिहार कतेक गोटे छथि? चाहे विश्वविद्यालय आ कालेज के प्राध्यापक होथि आकि स्कूल के शिक्षक, मैथिली के छात्र होथि आकि गवेषक या फेर आमजन, गिन-गुथल लोक कें मिथिलाक्षर लिखए-पढ़ए अबैत छन्हि। एतबे नहि, मैथिली के छात्र कें परीक्षा में देवाक्षर सं मिथिलाक्षर लिखए लेल कहल जाइत छन्हि मुदा एकर कक्षा शायदे कत्तहु होइत अछि। छात्र या तं कत्तहु सं जोगाड़ कए एकरा लिखैत छथि अथवा 10 या 5 नंबर के एहि प्रश्न कें छोड़िए देब उचित बुझैत छथि। उत्तर पुस्तिका जंचनिहारो एक्कहि-दू गोटे के मिथिलाक्षर अबैत रहैत छन्हि। कहियो एहि ठामक लोग मिथिलाक्षर के एतेक अभ्यस्त रहथि कि प्रायः सभ ग्रंथक लिपि मिथिलाक्षर रहैत छल,चाहे विषय किछु रहए। एतेक धरि जे संस्कृत के हजारों पांडुलिपि आईयो स्थानीय मिथिला शोध संस्थान आ कामेश्र्वर सिंह दरभंगा के पुस्तकालय सहित आन जगह पर धएल अछि, जे मिथिलाक्षर में अछि। मानल जाइत अछि कि करीब सौ-सवा सौ साल पहिने मिथिला मे मिथिलाक्षर सं मोहभंग भए देवनागरी लिपि के प्रति रूझान बढब प्रारम्भ भ गेल छल। तइयो,कहुना-कहुना कए मिथिलाक्षर जीवित रहल। लेखन में उपयोग चाहे बन्न भ गेल हुअए, मुदा अक्षरारंभ में सात-आठ दशक पूर्व धरि एकर अस्तित्व छल। नेना सभ कें मिथिलाक्षरे मे आंजी सिद्धिरस्तु लिखवाकए पढ़ाई शुरू कराओल जाइत छल। क्रमशः,ई परंपरा समाप्त भ गेल आर एकर अस्तित्व मुंडन, उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि पर देयादबादक कें न्योतए लेल लिखल जाएवला पाता (पते) पर रहि गेल। करीब दू दशक पूर्व तक ई परंपरा कायम छल। जहिया सं छपल कार्ड देबाक प्रचलन बढ़ल, पाताक संगहि मिथिलाक्षर सेहो गायब भ गेल। ई आब तेना बिसरा गेल अछि कि दरभंगा जंक्शन पर जखन स्टेशन केर नाम मिथिलाक्षर में अंकित कराओल गेल तं कतेको लोकनि आश्चर्य भाव सं पूछैत देखल गेलाह कि स्टेशनक नाम बंगला में किएक लिखल गेल छैक? ब्राह्मी लिपि सं बहराएल मिथिलाक्षर व बंगला में साम्य सं एहन भ्रम उत्पन्न होइत छैक मुदा दुनू के बीच पर्याप्त अंतर सेहो छैक, जो कम से कम मैथिललोकनिक लेल तं आश्चर्यक गप्प नहिए अछि। मिथिलाक्षरक प्रचलन घटला पर चिंता व्यक्त कएल जाइत छैक। एकर विकासक लेल अतीत में प्रयास सेहो भेल छल। मिथिलाक्षरांकण प्रबंधक समिति,लहेरियासराय 1936 के आसपास प्रेस के कांटा बनओने छल। इलाहाबाद सं, मैथिली के प्रथम इतिहासकार डा. जयकांत मिश्र मिथिलाक्षर सिखएबाक पुस्तिका छपओने छलाह। अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद,दरभंगा सेहो मिथिलाक्षर अभ्यास पुस्तिका प्रकाशित कएने छल। कतेको बेर, मिथिलाक्षर सिखएबाक अभियान सेहो चलल,परञ्च मिशन इंपॉसिबल बनल रहल। जगत जननी जानकी कें एक नाम मैथिली सेहो रहनि आ प्रति वर्ष जानकी नवमी पर कतेको संस्था सभ मैथिली दिवस मनबैत अछि। मैथिली के विकासक संकल्प लेल जाइत अछि मुदा मिथिलाक्षर अचर्चित रहि जाइत अछि। एकर विकासक लेल ने कोनो योजना बनैत अछि आ ने कोनो ठोस प्रयास कएल जाइत अछि।(अमलेंदु शेखर पाठक,दैनिक जागरण,पटना,22.5.2010)