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Wednesday, February 10, 2010

शिखंडी

शिखर, मोर मुर्गा कें शिखंडी, शिखा या शिखी कहल जाइत छैक। 'मेदिनीकोश' में कलगीदार शीर्ष केर कारण मुर्गा अर्थात् कुक्कुट मोर कें शिखा कहल गेल छैक- 'मयूरे कुक्कुटे पुंसि शिखावत्यन्यलिंगक: "उत्तर रामचरित" "रघुवंश" एही आधार पर मोर कें शिखंडी कहलक अछि। बाण, मोरक पूंछ, एक तरहक चमेली विष्णु लेल सेहो शिखंडी शब्द प्रयुक्त होइछ। चूड़ाकर्ण- मूड़न संस्कारक समय माथ पर राखल चोटी कें शिखंड वा शिखंडक कहल जाइत छैक। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ वानप्रस्थ तं शिखा राखल जाइत छैक मुदा संन्यासाश्रम में एकरा त्यागि देल जाइत छैक। मोरनी द्रुपद केर पुत्री लेल शिखंडिनी शब्द प्रयुक्त भेल अछि। महाभारत कें विख्यात चरित्र द्रुपद के पुत्रक नाम शिखंडी रहए। शिखंडी मूल रूप सं स्त्री छलीह किएक तं भीष्म सं प्रतिशोध लेबाक लेल द्रुपद कें ओहिठाम अम्बा जन्म लेने छलीह। मुदा जन्महि सं एकरा पुत्र बताओल गेल पुत्रे जकां शिक्षा-दीक्षा सेहो भेलैक। विवाह भेल रहए हिरण्यवर्मा केर पुत्री सं। पाहुन कें स्त्री हएबाक बात खुजला पर हिरण्यवर्मा द्रुपद पर चढाई करबाक योजना बनओलक। तखन शिखंडी जंगल में घोर तपस्या कए यक्ष कें अपना स्त्रीत्व कए ओकर बदला में पुरूषत्व लेलक आर पिता द्रुपद पर आएल संकट के टारलक। महाभारत युद्ध में, अर्जुन स्त्री रूप में प्रसिद्ध शिखंडी कें अपने योद्धा के रूप में आगू राखि भीष्म कें तीर सं बेध देलनि किएक तं भीष्म स्त्री सं युद्ध करबा लेल तैयार नहिं छलथि। बाद में ,अश्वत्थामा के हाथ सं शिखंडी मारल गेल छल। "भामिनीविलास" में तेज सिरा, धार, नोक अथवा सिरा कें अर्थ में शिखा शब्द प्रयुक्त भेल अछि। 'रघुवंश' अग्नि ज्वाला कें शिखा कहैछ। चूडा, चोटी पर केशगुच्छ, शिखाग्रंथि, वस्त्रक छोर, प्रकाशक किरण, जटायुक्त जड़, प्रधान अथवा मुखिया सेहो शिखा कें अर्थ होइछ। दीवट, दीपाधार कें शिखातरू अथवा शिखावृक्ष, चूडामणि कें शिखामणि, गाजर-मूली कें शिखामूल कटहर गाछ कें शिखावर कहलन्हि। प्रतिदिन बढएवला ब्याज शिखावृद्धि कहबैछ। "मेघदूत" "कुवलयानन्द" कें अनुसार, पहाड़क सिरा या श्रृंग या चोटी शिखर कहबैछ। तलवारक नोकी अथवा धार, कांख या बगल, केशक कड़ा हएब, अरवी चमेली केर कली एक लाल मणि कें सेहो शिखर कहल जाइत छैक। जैन परम्परा में ऎरावत क्षेत्र के दक्षिण में स्थित पूर्वापर लम्बा वर्षधर पर्वत कें शिखरी कहल गेल छैक। नारीरत्न, श्रीखंड, चीनी मिश्रित मसल्ला युक्त दही आर वक्षस्थल सं नाभि के पार जाएवला रोमावली कें शिखरिणी कहल जाइत छैक। दुर्गा के एक विशेषण शिखरवासिनी सेहो छैक। कार्तिकेय कें विशेषण शिखिध्वज आर शिखिवाहन (मोर पर सवारी) छैक। पपड़ी, झाग, बलगम अथवा कफ कें शिंघाण या शिंघाणक कहल जाइछ। टंकार- झंकार आदि ध्वनि, धनुषक डोरी शिंजा कहबैछ। पएरक झांवर नूपुर कें शिंजिनी कहल जाइत छैक। तेज कएल गेल, पैनाएल, पातर, कृश, छीजल, क्षीण, दुर्बल, बलहीन के अर्थ में शित शब्द प्रयुक्त होइछ। "मेदिनीकोश" के अनुसार, शिति शब्दक अर्थ श्वेत श्याम दुनू होइत छैक। शितिकंठ शिव केर विशेषण (कुवलयानंद) छैक। "शिशुपाल वध"में सेहो, मोर कें शितिकंठ कहल गेल छैक। श्वेत पंखवला हंस कें शितिपक्ष कहल जाइछ। ढील, धीमा, सुस्त, विश्रान्त, बंधनुमुक्त, मुक्त अथवा खुजल, मन्दबन्धन, मंथर, उदासीन, श्रांत, क्लांत उपेक्षित आदि कें अर्थ में शिथिल शब्दक प्रयोग होइछ। असमर्थ, निढाल, दुर्बल, कमजोर, घुलल, मुरझाएल, निष्क्रिय, निरर्थक, व्यर्थ, असावधान, फेंकल, परित्यक्त सेहो शिथिल केर अन्यार्थ छैक। ढीलापन, आलस्य, दृढता केर अभाव आदि अर्थ में सेहो शिथिलता शब्द प्रयुक्त होइछ। जकर धन क्षीण गेल हुअए,ओकर शिथिल वसु आर जकर समाधि भंग भेल हुअए,ओकरा शिथिल समाधि कहल जाइत छैक। यादव पक्ष के एक वीर- गर्ग केर पुत्रक नाम शिनि छल। त्वचा, चमडी, प्रकाशक किरण कें शिपि कहल जाइत छैक। किरण सं व्याप्त, केशहीन कोढी कें शिपिविष्ट कहल जाइत छैक। एकरा शिपविष्ट शिवपिष्ट सेहो लिखल जाइत छैक। शिव आर विष्णु केर विशेषण शिपिविष्ट सेहो छैक। हिमालय स्थित एक सरोवरक नाम शिप्र छैक। शिप्र सरोवर सं बहराएल नदीक नाम शिप्रा थिक। कालिदासक "मेघदूत"में एही शिप्रा के तट पर बसल उज्जयिनी नगरी कें सुन्दर वर्णन अछि।
(राजस्थान पत्रिका,दिल्ली संस्करण में 4 फरवरी कए प्रकाशित आलेख पर आधारित)