(हिंदुस्तान,पटना,10.2.10)
बिहार समेत कतेको राज्य बीटी बैगन केर व्यावसायिक खेतीक विरोध कएने छल। आखिर की छैक बीटी बैगन,किएक भ रहल छैक एकर विरोध आ जयराम रमेश किएक विचार जनबाक लेल कएलनि कतेको दौर केर वार्ता-समग्र जानकारी लेल दैनिक भास्कर केर पंजाब संस्करण में,25 जनवरी कए प्रकाशित राजेश भट्ट केर रिपोर्ट देखूः-
बीटी बैंगन को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। इसी बहस के बीच मेडिकल और कृषि के विकास के लिए काम कर रहे लोग बीटी बैंगन को पंजाब से दूर रखने की बात कर रहे हैं। जबकि वैज्ञानिक इसे राज्य के किसानों के लिए फायदेमंद बता रहे हैं।
वैज्ञानिक जहां बीटी बैंगन को सामान्य बैंगन की तुलना में स्वास्थ्य के लिए सही मान रहे हैं, वहीं मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग इसके मानव जीवन पर दुष्प्रभाव बता रहे हैं। इस सब के बीच कुछ धार्मिक संस्थाएं तो इसे मांसाहारी भोजन बताकर इसका विरोध कर रही हैं। इस जद्दोजहद के बीच राज्य सरकार अभी तक चुप्पी साधे हुए है और सरकार न तो इसका समर्थन कर रही है और न ही विरोध की बात कर रही है। सरकार इस मामले में कोई जोखिम लेने के मूढ़ में नहीं है, इसलिए वो भी पहले विशेषज्ञों से राय लेने की बात कर रही है। स्वयं सेवी संस्थाएं और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के पंजाब दौरे के दौरान इसका तथ्यात्मक विरोध दर्ज करने की बात कर रहे हैं। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी बीटी बैंगन पर शोध कर चुकी है। जिसमें वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके सकारात्मक परिणाम हैं।
क्यों पड़ रही है बीटी बैंगन की जरूरत
दावा: बीटी जीन का सेहत पर है बुरा असर
उन्होंने बताया कि बीटी बैंगन के मानवीय जीवन पर किस तरह के प्रभाव होंगे इसके पूरे तथ्यात्मक प्रमाण केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के चंडीगढ़ दौरे के सामने पेश किए जाएंगे। गौरतलब है कि जयराम रमेश देशभर में बीटी बैंगन के बारे में लोगों की राय लेने के लिए जा रहे हैं। इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री 30 जनवरी को चंडीगढ़ में आ रहे हैं, जहां वो राज्य के किसानों, वैज्ञानिकों और स्वयं सेवी संस्थाओं से इस संबंध में राय लेंगे। डा. जीपीआई सिंह का कहना है कि अगर देश बीटी बैंगन को मंजूरी देता है तो भारत पहला देश होगा जो कि खाद्य पदार्थो के उत्पादन के लिए यह अनुमति देगा।
वैज्ञानिक नहीं दे रहे हैं पूरी जानकारी
जीन परिवर्तन से नहीं बदली है बैंगन की प्रजाति
बैंगन में बीटी जीन के प्रवेश करने से उसकी प्रजाति में कोई अंतर नहीं आ रहा है। जिससे इसका वानस्पतिक नाम में भी परिवर्तन नहीं आ रहा है। किसी भी पौधे का वानस्पतिक नाम लिखने समय उसमें उसके परिवार और उसकी जाति का नाम लिखा जाता है। पीएयू के डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चरल रिसर्च डा. एसएस घौसल ने बताया कि महीको ने पीएयू के वैज्ञानिकों से बीटी बैंगन पर रिसर्च करवाया था। रिसर्च के दौरान इस बात का बारीकी से ध्यान रखा गया कि कहीं पौधे की जाति और प्रजाति में कोई अंतर तो नहीं आ रहा है। जिसकी वजह से उसका वानस्पतिक नाम पहले जैसा ही ‘सोलानम मेलोनगेना’ है।
सामान्य बैंगन से बेहतर है बीटी बैंगन: वैज्ञानिक