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Wednesday, February 10, 2010

बेगुन बैगन केर व्यावसायिक खेती मना

(नई दुनिया,दिल्ली,11.2.10)













(हिंदुस्तान,पटना,10.2.10)
बिहार समेत कतेको राज्य बीटी बैगन केर व्यावसायिक खेतीक विरोध कएने छल। आखिर की छैक बीटी बैगन,किएक भ रहल छैक एकर विरोध आ जयराम रमेश किएक विचार जनबाक लेल कएलनि कतेको दौर केर वार्ता-समग्र जानकारी लेल दैनिक भास्कर केर पंजाब संस्करण में,25 जनवरी कए प्रकाशित राजेश भट्ट केर रिपोर्ट देखूः-
बीटी बैंगन को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। इसी बहस के बीच मेडिकल और कृषि के विकास के लिए काम कर रहे लोग बीटी बैंगन को पंजाब से दूर रखने की बात कर रहे हैं। जबकि वैज्ञानिक इसे राज्य के किसानों के लिए फायदेमंद बता रहे हैं।
वैज्ञानिक जहां बीटी बैंगन को सामान्य बैंगन की तुलना में स्वास्थ्य के लिए सही मान रहे हैं, वहीं मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग इसके मानव जीवन पर दुष्प्रभाव बता रहे हैं। इस सब के बीच कुछ धार्मिक संस्थाएं तो इसे मांसाहारी भोजन बताकर इसका विरोध कर रही हैं। इस जद्दोजहद के बीच राज्य सरकार अभी तक चुप्पी साधे हुए है और सरकार न तो इसका समर्थन कर रही है और न ही विरोध की बात कर रही है। सरकार इस मामले में कोई जोखिम लेने के मूढ़ में नहीं है, इसलिए वो भी पहले विशेषज्ञों से राय लेने की बात कर रही है। स्वयं सेवी संस्थाएं और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के पंजाब दौरे के दौरान इसका तथ्यात्मक विरोध दर्ज करने की बात कर रहे हैं। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी बीटी बैंगन पर शोध कर चुकी है। जिसमें वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके सकारात्मक परिणाम हैं।

क्यों पड़ रही है बीटी बैंगन की जरूरत

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डा. अमरजीत ¨सह का कहना है कि बैंगन की फसल को कीड़ा नुकसान पहुंचाता है। जिसकी वजह से फसल का काफी बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसान नुकसान से बचने के लिए तीव्र क्षमता वाले कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं जो कि बैंगन के जरिए मनुष्यों में पहुंच रहे हैं। किसानों का नुकसान और मनुष्यों पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए बैंगन के जीन में बीटी जीन प्रवेश करवाया जा रहा है। बीटी जीन प्रवेश होने के बाद बैंगन को कीड़े नहीं लग रहे हैं और बैंगन के कुल उत्पादन में चालीस से पचास फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है। पीएयू के वैज्ञानिक इसे शोध में साबित भी कर चुके हैं।

दावा: बीटी जीन का सेहत पर है बुरा असर

मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि बीटी वार्म के नजदीक जब कोई अन्य जीव आता है तो वो अपनी सुरक्षा के लिए कुछ जहरीली पदार्थ छोड़ता है। जिसकी वजह से उसके आस पास कीड़े नहीं आते हैं। अब वैज्ञानिक बीटी वार्म में से जहरीला पदार्थ छोड़ने वाले जीन को निकाल रहे हैं और उसे बैंगन के पौधे में डालकर बीटी बैंगन की नई किस्म बना रहे हैं। यही जीन बैंगन के जरिए उसे खाने वालों में प्रवेश कर रहा है और उसका जीवन पर व्यापक बुरा असर पड़ रहा है।खेती विरासत मिशन की पर्यावरण और स्वास्थ्य सेल के कन्वीनर और आदेश मेडिकल इंस्टीटच्यूट बठिंडा के डायरेक्टर प्रिंसिपल डा. जीपीआई सिंह का कहना है कि रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जेनेटिकली मोडिफाइड फूड खाने वाले जीवों में सात तरह की एलर्जी और उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होने जैसी पांच से ज्यादा तरह की बीमारियां हो रही हैं।

उन्होंने बताया कि बीटी बैंगन के मानवीय जीवन पर किस तरह के प्रभाव होंगे इसके पूरे तथ्यात्मक प्रमाण केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के चंडीगढ़ दौरे के सामने पेश किए जाएंगे। गौरतलब है कि जयराम रमेश देशभर में बीटी बैंगन के बारे में लोगों की राय लेने के लिए जा रहे हैं। इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री 30 जनवरी को चंडीगढ़ में आ रहे हैं, जहां वो राज्य के किसानों, वैज्ञानिकों और स्वयं सेवी संस्थाओं से इस संबंध में राय लेंगे। डा. जीपीआई सिंह का कहना है कि अगर देश बीटी बैंगन को मंजूरी देता है तो भारत पहला देश होगा जो कि खाद्य पदार्थो के उत्पादन के लिए यह अनुमति देगा।

वैज्ञानिक नहीं दे रहे हैं पूरी जानकारी

कृषि क्षेत्र में काम कर रही स्वयं सेवी संस्था खेती विरासत मिशन राज्य में बीटी बैंगन सहित तमाम जीएम फूड का विरोध कर रही है। मिशन के डायरेक्टर उमेंद्र दत्त शर्मा का कहना है कि वैज्ञानिक सरकार को बीटी बैंगन पर हुए रिसर्च के बारे में पूरी जानकारी नहीं दे रहे हैं। बीटी सीड्स अमेरिकन कंपनी के पेटेंट शुदा बीज हैं। इसकी वजह से खाद्य संप्रभुत्ता को भी खतरा है इसके अलावा बैंगन में जीन प्रवेश करवा कर नई नस्ल तैयार करना प्रकृति के विपरीत भी है। इससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने के आसार भी हैं। इतना ही नहीं जहां वैज्ञानिक किसानों को फायदा होने की बात कर रहे हैं जो कि सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद पेटेंट शुदा कंपनियां आसानी से बीज उपलब्ध नहीं करवाएंगी और बाद में किसानों को मंहगे दामों पर देंगे। जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान भी होगा।

जीन परिवर्तन से नहीं बदली है बैंगन की प्रजाति

बैंगन में बीटी जीन के प्रवेश करने से उसकी प्रजाति में कोई अंतर नहीं आ रहा है। जिससे इसका वानस्पतिक नाम में भी परिवर्तन नहीं आ रहा है। किसी भी पौधे का वानस्पतिक नाम लिखने समय उसमें उसके परिवार और उसकी जाति का नाम लिखा जाता है। पीएयू के डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चरल रिसर्च डा. एसएस घौसल ने बताया कि महीको ने पीएयू के वैज्ञानिकों से बीटी बैंगन पर रिसर्च करवाया था। रिसर्च के दौरान इस बात का बारीकी से ध्यान रखा गया कि कहीं पौधे की जाति और प्रजाति में कोई अंतर तो नहीं आ रहा है। जिसकी वजह से उसका वानस्पतिक नाम पहले जैसा ही ‘सोलानम मेलोनगेना’ है।

सामान्य बैंगन से बेहतर है बीटी बैंगन: वैज्ञानिक

डा. एसएस घौषल ने मेडिकल एक्सपर्ट और स्वयं सेवी संस्थाओं के तमाम आरोपों को नकारते हुए कहा कि बीटी बैंगन किसानों और मनुष्यों के लिए सामान्य बैंगन की तुलना में बहुत ठीक है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की कंपनी महीको ने बीटी बैंगन पर यूनिवर्सिटी से रिसर्च करवाया था।