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Friday, February 12, 2010

आइ शिवराति पर सोमनाथ में जलाभिषेक

पुराण में विवरण अबैछ जे सबसं पहिने ब्रह्मा आ विष्णु भगवान शंकर केर लिंगक तथा मूर्ति केर पूजा कएने छलाह। इससे प्रसन्न भ शिवजी कहलन्हि जे अहां सभ ज्योतिर्लिंगक माध्यम सं हमर ब्रह्मस्वरूपक आ ओकर बाद मूर्ति रूप में हमर चिन्मय स्वरूपक अर्चन कएलहुं। एहि सं प्रसन्न भ हम दुनू गोटे कें अपन-अपन कार्य में सफल हेबाक वरदान द रहल छी। आजुक ई तिथि जगत में 'महाशिवरात्रि' के नाम सं प्रसिद्ध हएत। जे पुरुष अथवा स्त्री शिवरात्रिकाल में निश्छल भाव सं हमर एक बरख तक पूजा करत, ओकरा फल तुरंत भेटतैक।
भगवान शिव के दू स्वरूप छन्हि- एक निष्कल आ दोसर सकल। निष्कल केर अर्थ छैक निर्गुण-निराकार शुद्ध चेतन ब्रह्मभाव जे लिंग रूप छैक। सकल केर अर्थ सगुण साकार विशिष्ट चेतन महेश्वर रूप छैक जे मूर्तिमय अछि। जहिना वाच्य आर वाचक में भेद नहीं होइछ, तहिना लिंग आर लिंगी में सेहो नहिं। शिव पूजन में शिवलिंग आ शिवमूर्ति दुनू कें पूजन श्रेष्ठ मानल गेल छैक। तइयो, मूर्ति केर अपेक्षा शिवलिंग पूजनक विशेष महत्व छैक। कारण, लिंग अमूर्त ब्रह्म चेतन केर प्रतीक आ समष्टिस्वरूप छैक जे अव्यक्त चैतन्यसत्ता तथा आनंदस्वरूप छैक । मूर्ति व्यक्त-व्यष्टि एवं सावयव शक्ति छैक। तें, शिवलिंग की प्रतिष्ठा और प्रणव सं होइछ। मूर्ति केर प्रतिष्ठा आ पूजा 'नमः शिवाय' पंचाक्षर मंत्र सं करबाक विधान छैक।
प्रणव के सेहो दू टा स्वरूप: सूक्ष्म प्रणव आर स्थूल प्रणव। अक्षर रूप में 'ओम्‌' सूक्ष्म प्रणव छैक आ पांच अक्षर वला 'नमः शिवाय' मंत्र स्थूल प्रणव। सूक्ष्म प्रणव के सेहो हृस्व-दीर्घ भेद छैक। प्रणव में तीन वर्ण छैक जाहिमें 'प्र' कें अर्थ छैक-प्रकृति सं उत्पन्न महाजाल संसार रूप महासागर। 'नव' केर अर्थ छैक- एहि संसार रूपी महासागर सं पार हएबा लेल नूतन 'नाव'। तें ओंकार कें प्रणव कहल गेल छैक। प्रणव केर दोसर अर्थ छैक - 'प्र'-प्रपंच 'न'-नहिं 'व'-अपनेक लेल। एहि प्रकारें, जप कएनिहार साधक कें ज्ञान द कए मोक्षपद में ल जाइत छैक। एही कारणें विवेकी पुरुष ओंकार कें प्रणव कहैत छथि। दोसर भाव ई छैक जे ई उपासकयोगी लोकनि कें बलपूर्वक मोक्ष में पहुंचा दैछ। अहू कारणें ऋृषि-मुनि एकरा प्रणव कहैत छथि। माया रहित भगवान महेश्वर कें 'नव' यानी 'नूतन' कहलगेल छन्हि। उएह शिव परमात्मा नव-शुद्ध स्वरूप छैक। प्रणव साधक कें नव-शिवरूप बना दैत छैक,तें ज्ञानीजन एकरा प्रणव कहैत छथि।
महाशिवरात्रि कें दिन-रात पूजा केर विधान छैक। चारि पहर दिन में शिवालय में जाकए शिवलिंग पर जलाभिषेक कए बेलपत्र चढ़ओला सं शिवक अनंत कृपा प्राप्त होइत छैक। संगहि,वेदमंत्र संहिता, रुद्राष्टाध्यायी पाठ तपस्वी ब्राह्मणक मुख सं सुनबाक चाही। प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय सं पूर्व उत्तरांग पूजन कए आरती केर तैयारी क लेबाक चाही। सूर्योदय के समय पुष्पांजलि आ स्तुति कीर्तन के संग महाशिवरात्रि पूजन संपन्न होइछ। ओकर पछाति दिन में ब्रह्मभोज भंडारा के द्वारा प्रसाद वितरण कए व्रत संपन्न कएल जाइत छैक । शास्त्रक अनुसार, शिव कें देवाधिदेव महादेव एही कारणें कहल गेल छैक कि ओ देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व पशु-पक्षी आ समस्त वनस्पति जगत कें स्वामी छथि। शिवक एक अर्थ कल्याणकारी सेहो होइछ। शिवक आराधना सं संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय आर प्रेम भक्तिक संचार हेबए लगैत छैक। स्तुति गान कहैत छैक- यादृशोऽसि महादेव, ता दृशाय नमोनमः अर्थात्, हम अहांक अनंत शक्ति कें की बूझि सकब। तें, हे शिव, अहां जाहि रूप में छी,ओही रूप कें हमर प्रणाम।
(नई दुनिया,दिल्ली,11.2.10 में प्रकाशित गोविंद वल्लभ जोशी के आलेख पर आधारित)




















(दैनिक भास्कर,दिल्ली,11.2.10)




















(नई दुनिया,दिल्ली,11.2.10)



















(हिंदुस्तान,पटना,7.2.10)



















(नई दुनिया,दिल्ली,7.2.10)
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