ई फोटो छैक क्रिस्टुदा कें। ओ छथि तं केरलवासी मुदा भेंट करबाक हुअए,त जाउ नेपालक सीमान पर स्थित रक्सौल के सुंदरपुर गाम। क्रिस्टुदा कें भोरे होइते कुष्ठ रोगी सभ घेर लैत छनि। कुष्ठक नाम सुनिते एक तरहक घिन पैदा होइत छैक आम आदमी केर मोन में। मुदा हुनक चेहरा पर परेशानी के कोनो भाव नहिं पाएब। आत्मसंतोषक जे भाव होइत छैक,सएह देखबनि हुनक मुखमंडल पर। छथि ईसाई, मुदा हुनकर यीशु ने आकाश में छथि आ ने सूली पर । ओ कतहु छथि तं हुनके आश्रम में । विचारो राफ-साफ, ‘केकरहु तं एहि रोगी सभहक देखभाल करबाक रहबे करए,तं हमहीं किएक नहिं’।
क्रिस्टुदा कें कुष्ठ रोगीलोकनिक देखभाल आ इलाजे भरि सं संतोष नहिं छन्हि। ओकर सभहक पुनर्वास आ जीविका के इंतजाम में सेहो लागल छथि। किएक तं,स्वस्थ भेलाक बादो,कुष्ठ रोगी कें ने तं केओ स्वीकार करैत छैक आ ने कोनो तरहक संबंध राखब पसंद करैत छैक। रोगी सभहक लेल जे ओ घर बनओने छथि,ताहि में बच्चा सभहक लेल स्कूल सेहो छैक। हुनका कतेको बेर,ओहि में पढबैत सेहो देखि सकैत छी। पछिला चालीस बरख सं कुष्ठ रोगी केर इलाज करैते-करैत ओ एक बेर स्वयं कुष्ठ रोगक शिकार भ गेल छलाह। ओहि समय में मदर टेरेसा कोलकाता के आश्रम में क्रिस्टुदा कें इलाज करओने छलीह। ठीक भेलाक पछाति, ओ फेर अपन काम पर घुरि अएलाह।
क्रिस्टुदा केरल के एदमारुकु गांव के मूल निवासी छथि। पादरी बनए चाहैत छलथि मुदा परीक्षा में पास नहिं भ सकलाह। अस्पताल में भर्ती एक साथी के संग रहैत-रहैत ओ कुष्ठ रोगी सभहक संपर्क में अएलाह आ ओही ठाम रहि गेलाह। मदर टेरेसा के कुष्ठ आश्रम मिशनरी ऑफ चैरिटी सेहो गेल छलाह मुदा ओहि ठामक पादरी हुनकर घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के कारणें रखबा सं इनकार क देलक।
तीन महीना बाद ओ दोबारा आग्रह कएलनि जेकरा स्वीकार क लेल गेल आ ओ पूर्णरूपेण कुष्ठ रोगी लेल समर्पित भ गेलाह। 1978 में हुनका बिहार के कुष्ठ रोगी सभ देया मालूम भेलनि। देश में कुष्ठ रोगी केर सभसं बेसी संख्या बिहार में छल आ ओहि ठाम इलाजक कोनो साधनो नहिं रहए। वे मोतिहारी अएलाह। चंपारण में रोगी सभहक संख्या में वृद्धि देखि, 1981 में रक्सौल में कुष्ठ शोध केंद्रक स्थापना कएलनि। तहिया सं आई धरि ओ 60 हजार रोगी केर सफल इलाज क चुकल छथि। करीब 200 एकड़ भू-भाग में पसरल हुनकर शोध केंद्र में 150 बिस्तर वला अस्पताल, 200 परिवार कें रहए योग्य आवास आ कुष्ठ रोगी के बच्चा सभहक लेल केजी सं कक्षा 10 तक कें शिक्षण व्यवस्था छैक।
क्रिस्टुदा पछिला तीस बरख में बिहार में एतेक लोक कें ठीक कएलनि अछि कि आब बिहार में पचास सं बेसी उम्र कें कोनो कुष्ठ रोगी नहिं बांचल छैक। जं सभ किछु ठीक-ठाक रहलैक,तं पांच-छओ साल में बिहार सं कुष्ठ रोगी केर नामोनिशान मेटा जेतैक।
(दैनिक भास्कर,दिल्ली,9.1.10 में रक्सौल सं नवीन कुमार सिंह केर प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)
क्रिस्टुदा कें कुष्ठ रोगीलोकनिक देखभाल आ इलाजे भरि सं संतोष नहिं छन्हि। ओकर सभहक पुनर्वास आ जीविका के इंतजाम में सेहो लागल छथि। किएक तं,स्वस्थ भेलाक बादो,कुष्ठ रोगी कें ने तं केओ स्वीकार करैत छैक आ ने कोनो तरहक संबंध राखब पसंद करैत छैक। रोगी सभहक लेल जे ओ घर बनओने छथि,ताहि में बच्चा सभहक लेल स्कूल सेहो छैक। हुनका कतेको बेर,ओहि में पढबैत सेहो देखि सकैत छी। पछिला चालीस बरख सं कुष्ठ रोगी केर इलाज करैते-करैत ओ एक बेर स्वयं कुष्ठ रोगक शिकार भ गेल छलाह। ओहि समय में मदर टेरेसा कोलकाता के आश्रम में क्रिस्टुदा कें इलाज करओने छलीह। ठीक भेलाक पछाति, ओ फेर अपन काम पर घुरि अएलाह।
क्रिस्टुदा केरल के एदमारुकु गांव के मूल निवासी छथि। पादरी बनए चाहैत छलथि मुदा परीक्षा में पास नहिं भ सकलाह। अस्पताल में भर्ती एक साथी के संग रहैत-रहैत ओ कुष्ठ रोगी सभहक संपर्क में अएलाह आ ओही ठाम रहि गेलाह। मदर टेरेसा के कुष्ठ आश्रम मिशनरी ऑफ चैरिटी सेहो गेल छलाह मुदा ओहि ठामक पादरी हुनकर घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के कारणें रखबा सं इनकार क देलक।
तीन महीना बाद ओ दोबारा आग्रह कएलनि जेकरा स्वीकार क लेल गेल आ ओ पूर्णरूपेण कुष्ठ रोगी लेल समर्पित भ गेलाह। 1978 में हुनका बिहार के कुष्ठ रोगी सभ देया मालूम भेलनि। देश में कुष्ठ रोगी केर सभसं बेसी संख्या बिहार में छल आ ओहि ठाम इलाजक कोनो साधनो नहिं रहए। वे मोतिहारी अएलाह। चंपारण में रोगी सभहक संख्या में वृद्धि देखि, 1981 में रक्सौल में कुष्ठ शोध केंद्रक स्थापना कएलनि। तहिया सं आई धरि ओ 60 हजार रोगी केर सफल इलाज क चुकल छथि। करीब 200 एकड़ भू-भाग में पसरल हुनकर शोध केंद्र में 150 बिस्तर वला अस्पताल, 200 परिवार कें रहए योग्य आवास आ कुष्ठ रोगी के बच्चा सभहक लेल केजी सं कक्षा 10 तक कें शिक्षण व्यवस्था छैक।
क्रिस्टुदा पछिला तीस बरख में बिहार में एतेक लोक कें ठीक कएलनि अछि कि आब बिहार में पचास सं बेसी उम्र कें कोनो कुष्ठ रोगी नहिं बांचल छैक। जं सभ किछु ठीक-ठाक रहलैक,तं पांच-छओ साल में बिहार सं कुष्ठ रोगी केर नामोनिशान मेटा जेतैक।
(दैनिक भास्कर,दिल्ली,9.1.10 में रक्सौल सं नवीन कुमार सिंह केर प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)