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Tuesday, January 26, 2010

शंख की बाजए जखन कंठे मरल अछि....


देश तों की आई शुचि,सुन्दर लगै छह!
आइ आंगन में मिलन-मेला जगै छह!
राजपथ पर लहरि,लोकक भीड़ उमड़ल!
आ गगन में हर्ष-पुष्पक मेघ घुमड़ल!

आइ पाबनि,पर्व पुण्यक,मुक्ति गंगा
आइ पुलकित प्राण,लोकक मोन-चंगा
आइ जे विजयी ध्वजा फहरा रहल छह!
आइ जे आनंद-धारा में बहल छह!

कीर्ति तोरे स्वर्ण-अक्षर में लिखल छह?
पएर की तोरे मुकुट स्वर्गक पड़ल छह?
की किरण सं भेल चोन्हर आंखि हमरे?
की कटल अछि मन-विहंगक पांखि हमरे?

की सनातन सत्य हमरा नहिं सुझै अछि?
की हमर परिवेश हमरा नहिं बुझै अछि?
देश हमरे आइ चीन्है अछि न हमरा
भेल अछि अनजान फूलक लेल भमरा ।

ई विपत्तिक बात ककरा के सुनाबए?
मोन में सन्ताप,बाहर गीत गाबए
ई विरोधाभास जीवन में भरल अछि
शंख की बाजए जखन कण्ठे मरल अछि!

हे स्वदेशक मीत,तोहर जीत में हम
हारि अपनो बिसरि,देबह संग निर्मम!
आइ जे हम एक छी,हम एक देशक
एक आत्मा छी अमर,ने चर्च क्लेशक!
-आरसी प्रसाद सिंह