संथाल आदिवासीलोकनिक पांच दिनक सोहराय पाबनि आई सं शुरू भ रहल अछि। संथाल लोकनि वृक्षपूजा (नीम आ पीपल प्रमुखता सं)तं करिते छथि,फसलि के पूजा सेहो करैत छथि। धानक खेती शुरू होय सं पूर्व एरोक(जहि में फसल पर भग्वद्कृपा के कामना कएल जाइत छैक)धान रोपलाक बाद हरियाड आ धानक फसलि पकलाक पछाति जानथाड पर्व मनाओल जाइत छैक। आ सोहराय धानक फसलि कटलाक बाद । संथाल सभहक लेल ई पाबनि ओहिना छैक जेना अपना सभहक लेल होली। पछिला रविकए,पटना में रहनिहार संथाललोकनि मांझीथान (मंदिर)में सोहराय मिलन समारोह केर आयोजन कएने छलाह। बाहर रहनिहार सभ संथाल आदिवासी अपन-अपन गाम जएबा सं पूर्व,एहिठाम पूजा करैत छथि। पूजा-अर्चनाक पछाति,पारंपरिक नृत्य भेल जहि में सैकड़ों आदिवासीलोकनि शामिल छलाह। ई समारोह भेल सिंचाई मंत्री विजयेन्द्र यादव केर मकान में। पहिले ई आदिवासी कल्याण मंत्री कमरमचंद भगत के सरकारी आवास छल। हुनके एहिठाम रहबाक क्रम में, 1990 में एहिठाम देवता कें स्थापित कएल गेल छल। आदिवासीलोकनि अपन देवता के प्रसन्न करबा लेल मुर्गी के बलि सेहो देलनि।
सोहराय कें वंदना सेहो कहल जाइत छैक। ई पाबनि भाई-बहन के प्रेमक प्रतीक, पशु आ प्रकृति के प्रति श्रद्धा आ देवी-देवतालोकनिक प्रति अटूट विश्वासक प्रतीक छैक। एहि पर्व में महुआ शराब आ नव चावल सं तैयार हड़िया के विशेष महत्व छैक। एहि अवसर पर प्रत्येक संथाल परिवार बेटी,बहिन आ आन रिश्तेदारलोकनि कें आमंत्रित करैत छैक। खासकए,ई पाबनि भाए-बहिन के पवित्र रिश्ता के अपना में समेटने अछि। एहि पाबनि में देवी-देवताक अतिरिक्त गाय, भैंस, बरद, हल आ आनो औजार सभहक पूजा कएल जाइत छैक। ई पाबनि गोड़टांडी सं प्रारंभ आ बेझाटांडी सं समाप्त होइत छैक।
संथाल लोकनि अपन ईश्वर कें चांदो -बाबा आ देवी-देवतालोकनि कें बेंगा -बुरू कहैत छथि। मांझी गोगो आ मांझी बाबा मरांग बुरू हिनके सभहक देवी देवता छथिन्ह। सीमा बोंगा,हापडाम बोंगा आ सोहराय बोंगा संथाल सभहक गृह देवतालोकनि छथि।
तिलासंकराति धरि चलएबला एहि पाबनि में तीन दिन तक गाएक पूजा कएल जाइत छैक। पहिल दिन देवतालोकनिक सामूहिक पूजा होईत छैक। आदिवासी माता बेंगा बुरु अर्थात महादेव, गांसांय आयो अर्थात् पालन करनिहार माता आ पांच देवता -मिट्टी, वायु, जल, प्रकाश, ध्वनी केर पूजा कएल जाइत छैक। तुरूय कें देवता के पूजा सेहो कएल जाइत छैक-कुमारि मुर्गी चढ़ाकए । दोसर दिन भोर में, पशुधन केर पूजा होइत छैक आ राति में प्रत्येक परिवार अपन इष्ट देवता के पूजा के साथ पूर्वजलोकनि कें पूजा करैत छथि। तेसर दिन गाए-भैंसक संगहि लक्ष्मी केर पूजा होइत छन्हि। चारिम दिन लोकसभ सं भेंटघाट कएल जाइत छैक। पूरा गाम में नाच होई छैक। पांचम आ आखिरी दिन शिकार होईत अछि आ तीर-घनुष ल कए प्रदर्शन कएल जाइत अछि। एहि पाबनि में,आदिवासी सभहक टोल सं अबैत मांदर,झांझर आ बांसुरी केर मिश्रित स्वर-लहरी सं वातावरण मस्तमौला भ जाइत छैक। महंगाई बढि जाए त व्यापारी-वर्ग दीवाली नहिं मनएबाक घोषणा क दैत छैक। मुदा, संथाललोकनि बता रहल छथि जे भौतिक समृद्धि प्रसन्नताक लेल अनिवार्य नहिं छैक। ओकर उद्गम आओर कतहु सं होइत छैक।
सोहराय पाबनि केना शुरू भेल तहि संबंधी एक गोट तथ्यपरक आलेख लेल क्लिक करू।
सोहराय कें वंदना सेहो कहल जाइत छैक। ई पाबनि भाई-बहन के प्रेमक प्रतीक, पशु आ प्रकृति के प्रति श्रद्धा आ देवी-देवतालोकनिक प्रति अटूट विश्वासक प्रतीक छैक। एहि पर्व में महुआ शराब आ नव चावल सं तैयार हड़िया के विशेष महत्व छैक। एहि अवसर पर प्रत्येक संथाल परिवार बेटी,बहिन आ आन रिश्तेदारलोकनि कें आमंत्रित करैत छैक। खासकए,ई पाबनि भाए-बहिन के पवित्र रिश्ता के अपना में समेटने अछि। एहि पाबनि में देवी-देवताक अतिरिक्त गाय, भैंस, बरद, हल आ आनो औजार सभहक पूजा कएल जाइत छैक। ई पाबनि गोड़टांडी सं प्रारंभ आ बेझाटांडी सं समाप्त होइत छैक।
संथाल लोकनि अपन ईश्वर कें चांदो -बाबा आ देवी-देवतालोकनि कें बेंगा -बुरू कहैत छथि। मांझी गोगो आ मांझी बाबा मरांग बुरू हिनके सभहक देवी देवता छथिन्ह। सीमा बोंगा,हापडाम बोंगा आ सोहराय बोंगा संथाल सभहक गृह देवतालोकनि छथि।
तिलासंकराति धरि चलएबला एहि पाबनि में तीन दिन तक गाएक पूजा कएल जाइत छैक। पहिल दिन देवतालोकनिक सामूहिक पूजा होईत छैक। आदिवासी माता बेंगा बुरु अर्थात महादेव, गांसांय आयो अर्थात् पालन करनिहार माता आ पांच देवता -मिट्टी, वायु, जल, प्रकाश, ध्वनी केर पूजा कएल जाइत छैक। तुरूय कें देवता के पूजा सेहो कएल जाइत छैक-कुमारि मुर्गी चढ़ाकए । दोसर दिन भोर में, पशुधन केर पूजा होइत छैक आ राति में प्रत्येक परिवार अपन इष्ट देवता के पूजा के साथ पूर्वजलोकनि कें पूजा करैत छथि। तेसर दिन गाए-भैंसक संगहि लक्ष्मी केर पूजा होइत छन्हि। चारिम दिन लोकसभ सं भेंटघाट कएल जाइत छैक। पूरा गाम में नाच होई छैक। पांचम आ आखिरी दिन शिकार होईत अछि आ तीर-घनुष ल कए प्रदर्शन कएल जाइत अछि। एहि पाबनि में,आदिवासी सभहक टोल सं अबैत मांदर,झांझर आ बांसुरी केर मिश्रित स्वर-लहरी सं वातावरण मस्तमौला भ जाइत छैक। महंगाई बढि जाए त व्यापारी-वर्ग दीवाली नहिं मनएबाक घोषणा क दैत छैक। मुदा, संथाललोकनि बता रहल छथि जे भौतिक समृद्धि प्रसन्नताक लेल अनिवार्य नहिं छैक। ओकर उद्गम आओर कतहु सं होइत छैक।
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