मानसूनक वर्षासँ गरमी मे थोड़े कमी तँ आयल अछि, मुदा बिहारक राजनीति अचानक किए गरमा गेलए, ई अन्वेषणक विषय थिक। मुदा करिया कक्काक कहब छनि जे ई नइं तँ खोजक विषय थिक आ ने कोनो अजगुत राजनीतिक घटना। कारण राजनीति गरमे नीक होइत छैक, ठंढा गेला पर ई बासि भात छी जकरा कुकुरो सुंघि कऽ छोड़ि दैत अछि। तँ, राजनीतिक मतलबे छै गरम-गरम। वातावरणकेँ जे गरमा नइं दिअय ओ राजनीति भइये नइं सकैत अछि। राजनीतिज्ञक प्रथम कर्तव्य होइत छनि जे ओ लोकनि एकरा गरम राखथु आ एहि लेल एक -दोसराक पुतला जरा कऽ राजनीतिक आगि धधक बैत रहथु आ कुरता पयजामा फाड़ि कऽ एहिमे हवा सेहो दैत रहथु, जाहिसँ राजनीति सदिखन गरमायल रहय। ओकर बाद हाथमे झंडा-बैनरक स्थान पर हथौड़ा लऽ एहि ताकमे घुमथु जे जखने चोट मारबाक उपयुक्त समय आबि जाय, चोट मारि दी। नइं बेसी, थोड़बो तऽ लगवे करतैक आ से लागि जेतैक तँ बुझू जे दू-चारि टा एमएलेक संख्या बढ़बे करत। छै कि नइं। आब तों सभ पूछबह जे अइ सँ जनताके की भेटितै? कहीं वहै नइं थुरा जाय। प्रश्न मे दम्म तऽ छह, किन्तु कोनो तुक नइं छह। एहि द्वारे जे जनतो कम नइं हौ। जेमहर देखी खीर तेमहर बैसी फीर। दोसर, जनतोकेँ रेडियो मिर्ची जकाँ सभ किछु ‘हॉटे’ नीक लगैत छैक, नेताक तँ कोनो बाते नइं। तकरे नतीजा छैक जे जनता भारतीय रेल सदृश कतहु आ कखनहुँ भिड़ जाइए, सड़क पर एक-दोसरकेँ ठोकि दइए। पाटीर्क सभामे तऽ देखिते छहक जे नेता-कार्यकर्ता कोना मारापिप्तीक अभ्यास करैत अछि आ जकर फाइनल होयत छै विधान सभा आ विधान परिषद में जा कऽ। एखन जे राजनीति गरमायल अछि से अही लऽ कऽ ने जे बिहार सरकार अरबो-खरबो रुपैयाक हिसाब पचेने अछि आ तकर जाँच हाईकोर्टक आदेश पर सीबीआई करतैक। हाकिम सभ विकास करबामे लागल रहैक। हिसाब कोना दइतय। बस्स। सत्ता पक्ष जे गरमायल होअय वा ठंढायल होअय, मुदा विपक्ष ततेक ने गरमा गेल अछि जे लगैए आब मुख्यमंत्रीक कुरसी पर बैसिये कऽ देहक गरमी उतारत। खाली सीबीआई अपन काज चुनाव सँ पहिने कऽ दै। सत्ता पक्ष ऊपर सँ जे ठंढायल लगैत होअय, लेकिन अन्दर सँ धधकि रहल अछि आ लगैत अछि विपक्षीक मनसुबाकेँ जरा कऽ भस्म कऽ दिअय। जे हौ, बिहारक राजनीति एखन गरमायले रहतह , जकरा झरी कि झीसी झमान नइं कऽ सकैत अछि..(वीरेन्द्र नारायण झा,हिंदुस्तान,पटना,31.7.2010)