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Sunday, April 06, 2014

रमण- दरिहरे- बिहारी नाम्ना तिथि चोर


रमण, बिहारी आ दरिहरेक कथा गोष्ठीक तिथि ८२ म सगर राति दीप जरयक तिथि ३१ म इ २०१४ घोषित भेलाक बाद भेल। मुदा ऐ तीनू लग मौलिकताक सर्वथा अभाव अछि। कोनो नव चीज ई लोकनि सोचि नै सकै छथि, हँ प्रतिक्रियावादी, धुरफंदी चीज करबामे ई लोकनि सभसँ आगाँ छथि। से रमण ७९ म कथा गोष्ठी ओरहामे विदेह साहित्य आन्दोलनक खिलाफ गोलैसी करबाक प्रयास केलन्हि, गोष्ठी प्रारम्भ हेबासँ पहिने सायास अही काज लेल पहुँचला, आ बजैतफिरला जे विदेह साहित्य आन्दोलन- तान्दोलन नै छिऐ, खाली गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डल अपन नाम कर' चाहै छथि, जे उत्तर भेटलन्हि तकर बाद ओ परदाक पाछाँ चलि गेला, जातिवादी बयान देलन्हि, हीरेन्द्र झाक उसकेलासँ अशोक मेहता सेहो ओइ गोष्ठीक बहिष्कार केलन्हि, इच्छा तँ रमणोक रहन्हि बहिष्कार करबाक मुदा हुनकर गाड़ी ड्राइवर समधियौर ल' क' चलि गेलन्हि, से कारण ओ मुन्नाजीकेँ कहलखिन्ह।
शंकरदेव झा बहुत पहिने सूचित केने रहथि जे जे रमण प्रबोध नारायण सिंहकेँ प्रबोध नारायण सिंह एण्ड कम्पनी कहै छला आ सएह आब नचिकेताक बडीगार्ड बनल छथि। ई अवसरवादिता रमणक चरित्रमे छन्हि से जखन ओ दरिहरे आ बिहारीक संग अपन साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग आ ओकरा द्वारा मान्यता प्राप्त फ़र्ज़ी संस्था द्वारा संपोषित कथा गोष्ठीक घोषणा केलन्हि तँ ओ सभ ३१ म इ २०१४ क तिथिये सोचि सकला, तकर दू टा कारण छलै हुनका सभमे मौलिकताक अभाव जे हिनकर सभक रचनामे सेहो दृष्टिगोचर होइत अछि, दोसर घृणित अवसरवादिता आ जातिवादी सोच। दरिहरे कहै छथि जे सगर राति हुनकर दलान अछि, ओइमे सर्वहाराक प्रवेश हुनका लेल कष्टकर छन्हि, बिहारीक कष्ट अही बात ल' क' छन्हि जे पहिने एक दू टा कम्पटीटर छल तँ अस्तित्व जोड़ तोड़सँ बनबैत छला, आब तँ मामले खत्म, रमण कतेक छल-प्रपंचसँ मोहन भारद्वाजकेँ सगर रातिसँ बाहर केलन्हि, मुदा आब नव समीक्षक सभ आबि गेला। से यात्री दिससँ अमर-सुमनकेँ गारि पढ़' बला आ अमर- सुमन दिससँ यात्रीकेँ गारि पढ़ैबला, ई दुनू ब्राहम्णवादी ग्रुप मैथिली साहित्यक विदेह साहित्य आन्दोलनक विरुद्ध मैथिली साहित्यमे जातिवादितापर ऐ घोर संकटक कालमे एक होथि, ई इच्छा राखैत "रमण- बिहारी- दरिहरे" कथा गोष्ठीक घोषणा केलन्हि, मुदा गजेन्द्र ठाकुर, विदेह आदि हुनका डरब' लगलन्हि से ओ एकटा चोरि केलन्हि, तिथिक चोरि, से किछु गोटे तँ कम हेतै जे सगर रातिमे ३१ मइ २०१४ केँ "रमण- दरिहरे- बिहारी" द्वारा घृणा कएल जाएबला गजेन्द्र ठाकुरक गाममे ओइ राति नै जा सकता। बड़ा आएल छथि आन्दोलनी, ब्राह्मणवादी घुरछीमे तेनाने फँसेबनि जे रमण- बिहारी- दरिहरेकेँ मोन रखता। हौ बाबू यएह छी असली विलेन, एकरा ख़त्म करू, विदेह आन्दोलन खतम आ मैथिली साहित्यपरसँ ब्राह्मणवादक पकड़ खतम हेबाक ख़तरा खतम, मैथिली जिबियेकेँ की फ़ायदा जँ अपना सभक वर्चस्व रहबे नै करए,, अखन यात्री ग्रुप, अमर- सुमन ग्रुप नै करू, सभ ऐ संकटमे मिलि जाउ, बादमे झगड़ा करब, नै तँ गजेन्द्र ठाकुर खोप सहित कबूतराय नम: क' देत।
मुदा की गजेन्द्र ठाकुरकेँ खतम केने मैथिली साहित्य आन्दोलन खतम भ' जाएत, की परिवर्तनक धारा जे भयंकर रूपेँ विदेह द्वारा छोड़ि देल गेल छै ओकर अस्तित्व गजेन्द्र ठाकुरसँ अलग नै भ' गेल छै, गजेन्द्र ठाकुरकेँ खतम केलासँ की ओकरा रोकलजा सकत? साहित्य अकादेमीसँ फ़ोन आएल जे ओकर मैथिली विभागमे जे गड़बड़ी भ' रहल छै ओइले साहित्य अकादेमी कोना ज़िम्मेवार अछि? किछु गोटेक फ़ोन आएल जे ओ सभ सगर रातिक अतिरिक्त रमण- दरिहरे- बिहारीक साहित्य अकादेमी संपोषित गोष्ठीमे सेहो जाए चाहै छथि कारण ओ पब्लिक फंडसँ आयोजित होइ छै, आ जँ सगर रातिक तिथि हम बदलि दी रमण- दरिहरे- बिहारी नाम्ना तिथि चोर की करता? आरती कुमारी संग कएल टॅार्चरक बाद रमण- बिहारी- दरिहरेक मोन जे बहसल से किए नै बूझि सकल ऐ परिवर्तनकेँ? मेडियोक्रिटी नै जानि कत' ल' जेतनि तीनूकेँ।