-विनीत उत्पल -
साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठी: सगर राति दीप जरय: एकटा बहन्ना
(सम्पूर्ण लेखमे लेखक सेहो शामिल अछि, हुनका परछाय कऽ नै देखल जाए)
लोकतंत्रक परंपरा अछि जे आलोचना हेबाक चाही। जौं आलोजना सहबाक क्षमता केकरोमे नै अछि तँ ओ लोकतांत्रिक तँ कोनो विधिए नै भऽ सकैत अछि। ओ तँ तानाशाह भेल। अहिनामे तँ समाजमे विकृति अएबे करत आ से विकृति मिथिलामे देखल जा रहल अछि। एकरा कहएमे कोनो संदेह नै अछि जे गारि सभ लोक संस्कृतिक हिस्सा अछि। मुदा कोनो भी रचनात्मक लोक अहि शब्दक प्रयोग, जातिवादी गारिक प्रयोग, कोना करैत अछि, अहि पर हुनकर योग्यता आ क्षमताक आकलन कएल जाइत अछि।
दिल्ली मे आयोजित साहित्य अकादमी कथा गोष्ठी तथाकथित ७६म सगर राति दीप जरय (!) संपूर्ण देश आ विदेश मे रहए बला मैथिली भाषीक आगू कतेको रास प्रश्न छोड़ि देलक। जइ राति ई गोष्ठी भऽ रहल छल, मात्र १८ लोक भोर धरि बचल, ३४ टा लोकक सोंझा अप्पन-अप्पन खिस्सा कागज देख कऽ सुना रहल छल, तखने राजधानी दिल्ली सँ एक हजार किलोमीटर दूर मिथिला क कतेको गाम मे रहए बला लोक द्वारा मचान आ चौबटिया पर कतेको रास लोक मुहजबानी खिस्सा-पिहानीक क्षमताक परिचय दऽ रहल छल। हुनका नै तँ कोनो माइकक जरूरत छल, नहिये मसनदक आ नहिये खाइ कऽ चिंता छल। ओ ओ लोक छल जे दिन भरि मजूरी कऽ सांझ केँ बैसि कऽ टाइम पास कऽ रहल छल।
एना मे जे दिल्ली मे कथा गोष्ठी भऽ रहल छल हुनकर आयोजक लोकनि लेल नहिये बंगला कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर महत्वपूर्ण छल (रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहित्य अकादेमीक मार्च क्लोजिंगक बचल फण्डक लूट बनि कऽ रहि गेलथि, कारण कथा रवीन्द्रमे रवीन्द्र छोड़ि सभ किछु छल) नहिये मैथिली/ हिन्दीक कवि बाबा नागार्जुन। ई वएह बरख छी जखैन रवीन्द्र नाथ ठाकुरक डेढ़ सएम बरखी मनाओल जा रहल अछि। तमाम संस्थान पाइ उगाहि रहल अछि। जखैन की ई बरख बाबा नागार्जुनक जन्म शताब्दी बरख सेहो अछि। बिहार सेहो अप्पन स्थापनाक सौवां बरख मना रहल अछि। अहि ठाम प्रश्न अछि जे की मैथिली भाषाक लेल रवीन्द्रनाथ ठाकुर अहम छथि वा बाबा नागार्जुन वा दुनू। तखन की मानल जाए जे पूंजी आम लोक आ संस्कृति पर हावी भऽ रहल अछि। एकटा कहबी अछि, पूंजी असगरे नै आबैत अछि, ओ अपना संगे एकटा संस्कृति सेहो आनैत अछि। यएह पूंजी मिथिला केँ खा रहल अछि। मुट्ठी भरि लोकक पाकेट भाषा मैथिली बनि रहल अछि, बाकी सभ मुँह ताकि रहल अछि।
रवीन्द्रक विरोध करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि मुदा बाबा नागार्जुन केँ बिसुरि कऽ हम हुनका सम्मान दैक प्रयत्नक विरोध तँ अवश्य हेबाक चाही। जखैन देशक राजधानी दिल्ली मे कथा गोष्ठी भऽ रहल अछि, तखन हम अप्पन भाषाक कवि बाबाक नाम फण्डक लेल नै लऽ कऽ कवि रवीन्द्रकेँ नेमप्लेट बना कऽ सम्मान दिऐ, ई केहन मानसिकता अछि। अप्पन दीपक नीचाँ अन्हार आ भरि शहर ढ़िंढोरा, केहन सिद्धांत अछि? अप्पन घर केँ अन्हार राखि कऽ दोसर घरक लेल दीप लेसी, ई केहेन विकृत दुनियाक दृश्य अछि। एखन जखैन किसान मरि रहल अछि, संपूर्ण मिथिला बाढ़ सँ त्रस्त अछि। ढेर रास लेखन समाजसँ बेरल लोक लिखि रहल अछि आ गद्य/पद्यमे प्रमुखतासँ शामिल अछि। अहि परिस्थितिमे एकटा सामान्य मैथिलीक लोक लेल कवि रवीन्द्र प्रासंगिक अछि वा बाबा नागार्जुन।
दिल्लीक लिट्ल थियेटर ग्रुप, मंडी हाउस मे हिन्दीक लेखक अज्ञेयक रचना पर हुनकर जन्म शताब्दीक लेल नाट्य प्रस्तुति केलक। मुदा जखैन जे संस्था अपनाकेँ नाट्य संस्था कहि कऽ पताका फहराबऽ चाहैत अछि, मुदा ओकरा भंगिमा, अरिपन, कोलकाता आ जनकपुरक रंगमंच आ विदेह समानान्तर रंगमंचक जानकारी नै अछि, ओकर सँ सभ कियो अपेक्षा करत जे ओ बाबा नागार्जुनक रचना पर कोनो कार्यक्रम जरूर करताह। मुदा, ई नहि भेल। किए? किएकि सरकार पाइ नै देलक। तखन सगर राति दीप जरयक माला उठेबाक कोन खगता छल, जोड-तोडसँ अर्द्धनारेश्वरक बोकारोक प्रस्ताव अस्वीकृत भेल (उमेश मण्डल जीक ऐपर विदेहमे विस्तृत रिपोर्ट आएल अछि। जखन राबड़ी बंटैत अछि तखन जे क्यो 'क्यू" मे ठाढ़ हेता, सभकेँ राबड़ी भेटत। मुदा, बलिहारी तखैन ने जखैन अहाँ लीक सँ चलि आ अप्पन शर्तक आधार पर सरकारी फंड लऽ सकी। फंडक लेल हम कोनो उत्सव करी, ई कतय क आ केहन सिद्धांत अछि।
जौ हम कनी कालक लेल मानि ली जे हम रविंद्र सँ प्रभावित छी तखन हुनका सँ सीखैक जरूरत अछि नै की फंड लऽ पेट भरबाक। आइ धरि बंगालक सभ घरमे रवीन्द्र संगीत गायल आ सुनल जाइत अछि मुदा मिथिलाक घर मे विद्यापति संगीतक केहन हाल अछि, ई केकरो सँ नुकायल नै अछि। जातिवादी मैथिली रंगमंच तँ मैथिलीकेँ लेलिये गेल छल मुदा विदेह समानान्तर रंगमंच ओकर सोझाँमे अवरोध बनि आबि गेल। जखैन की कवि विद्यापति कवि रविंद्र सँ कतेक पुरान छथिन, ई सभकेँ बुझल अछि। समूचा बंगाल घुरि कऽ आबि जाउ, ओतय बंगला भाषाटा बाजल जाइत अछि मुदा मिथिलामे अंगिका, वज्जिका जेहन कतेको भाषा अही जातिवादी लेखन आ रंगमंचक कारण मैथिलीसँ निकलि कऽ अप्पन अस्तित्व टा नै बना लेने अछि, मैथिली केँ चुनौती सेहो दऽ रहल अछि।
आइ जकरा काल्हिक जन्मल मैथिली क टुच्चा नाटककार आ नाटक कहि कऽ जातिवादी रंगमंचक भड़ैत भर्त्सना कऽ रहल छथि ओ टुच्चा कोना भऽ सकैत अछि, जे बिना कोनो तामझामक, बिना मीडिया प्रबंधनक, बिना प्रचारक, बिना कोनो संस्थागत सहयोगक, अप्पन रचनात्मकता मे लागल अछि। ओ टुच्चा कोना अछि जिनकर नाटक देखहि बला लोक केँ दू टाइमक रोटी नै भेटैत अछि, मुदा नाटक जरूर देखैत अछि। आ नाटको दलित विमर्शपर, सूचनाक अधिकारपर, जाति-पातिक कट्टरतापर, भ्रूण हत्यापर। हुनका लग अप्पन गाड़ी नै अछि, बुल्लै दू कोस धरि चलि कऽ नाटक देखैत अछि। भरि-भरि राति हुनकर नाटक देखल जाइत अछि, ६-६ घण्टाक नाटक, एतेक पैघ नाटक मराठीमे सेहो एकाधेटा अछि, मैथिलीक जातिवादी रंगमंचक नाटक आ हिन्दीक नाटकक तँ चर्चे ब्कार। आ नै हुनका लग लाइट लेल बड़का-बड़का बल्ब अछि, नै ओतेक तकनीक, मात्र प्रतिभा अछि, समाजकेँ बचेबाक लेल जातिवादी रंगमंचक विरुद्ध समानान्तर रंगमंचक संकल्पना अछि आ तखन ओ टुच्चा कोना अछि। हुनकर नाटक लेल गाम-घरमे, चौबटिया पर गप होइत अछि, मुदा अखबार, मैथिलीक जातिवादी संस्था सभक पत्रिका या विदेहक अलाबे इंटरनेट पर चर्चा नै आबैत अछि, तखन ओ टुच्चा कोना अछि?
जे कियो मैथिली केँ लऽ कऽ 'डिप्रेस्ड’ अछि, तँ ओहेन मानसिकता केँ किछु नै कएल जा सकैत अछि। हिन्दी राजभाषा अछि नै कि अप्पन सभक मातृभाषा। दुनियाक सभ भाषाक सम्मान करबाक चाही, मुदा अप्पन भाषाक दांव पर नै। ई छद्म रंगमंचकर्मी लोकनि अपन जातिवादी नाटकक तुलना हिन्दीक नाटकसँ कऽ गर्व अनुभव करै छथि, जखैन की सत्य अछि जे हिन्दीसँ पुरान साहित्यिक भाषा मैथिली अछि आ हिन्दीबला सभ ज्योतिरीश्वरक मैथिली धूर्त समागमक हिन्दी अनुवाद कऽ कहियासँ नै खेला रहल छथि, ऐ मैथिलीक जातिवादी रंगमंचकर्मी आ नाटककारकेँ ई बुझलो छन्हि जे भारतेन्दुक “अन्धेर नगरी...” ज्योतिरीश्वरक मैथिली धूर्त समागमक अनुकरण मात्र अछि?
जे कियो असली मैथिल होएत ओ अप्पन मां केँ बेचि कऽ नै खा सकैत अछि। अप्पन मिथिला सीताक मिथिला अछि।,माँकेँ सम्मान दैबला। हिन्दी पेट भरयबला, नौकरी भेटयबला भाषा अछि। मिथिला आ मैथिली सँ सभक आत्म सम्मान जुड़ल अछि। जेकरा लग आत्मा नै अछि ओकरा लऽ कऽ किछु कहल नै जा सकैत अछि।
आइ किछु लोक मिथिलाक गद्य/पद्य क हिन्दी मे अनुवाद कऽ रहल अछि। अहि ठाम सवाल अछि जे की अहि सँ मैथिली भाषाक प्रचार भऽ रहल अछि आ दोसर भाषा मजबूत भऽ रहल अछि? जखैन धरि आन भाषाक रचना मैथिली मे नै आएत ता धरि मैथिली मजबूत कोना होएत, आ जँ अहाँ घरमे मजगूत नै हएब तँ बाहरमे सम्मान भेटत? एक बेर अप्पन मोनमे ताकि कऽ हिम्मत करए पड़त जे हम अप्पन माँ मैथिली लेल की कऽ रहल छी। माँ अप्पन नेना केँ छातीक दूध पिआबै अछि मुदा ओ नेना पैघ भेले पर माँ केँ नै बेच दैत अछि। माँ, माँ होइत अछि। की अहाँ अप्पन माँ केँ जिंस-टॉप पहिरा कऽ बाजार मे लऽ जाइत छी? की अहाँ अप्पन माँ केँ बाजार मे ठाढ़ कऽ नीलाम करैत छी? की अहाँ कोनो पुरस्कार पेबा लेल अप्पन माँ केँ केकरो आर लग पोसिया लगाबैत छी, नै ने। तखन मैथिली संग ई किए कऽ रहल छी, एक बेर कनी सोचियौ तँ।