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Wednesday, April 09, 2014

पंजी शास्त्र सँ अनभिज्ञ तनिका हेतु व्याख्या


जीनियोलोजिकल मैपिंग
(४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.) - मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध
भाग-२
पहिल भागक जइमे तीन खण्ड रहै ओकर नाम जीनोम मैपिंग रहए। वास्तवमे ओ आधुनिक जीनोम मैपिंग नै रहए, वर्न ओकर पहिल स्टेज, फैमिली हिस्ट्री रहए। वास्तवमे फैमिली हिस्ट्री भेल जीनियोलोगिकल मैपिंग। से ऐ दोसर खण्डक नाम सएह राखल गेल अछि।
किछु बिन्दुवार विवरण:
आर्यभट्ट वैज्ञानिक 476-550 आर्यभट्ट वैज्ञानिक 476-550
आर्यभट्ट (आदिभट्ट) माण्डर-काश्यप। पञ्जीमे आर्यभट्टक विवरण- (२७) (३४/०८) महिपतिय: मंगरौनी माण्डैर सै पीताम्ब र सुत दामू दौ माण्ड्र सै वीजी त्रिनयनभट्ट: ए सुतो आर्यभट्ट: (आदिभट्ट:) ए सुतो उदयभट्ट: ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचनभट (सुनयनभट्ट) ए सुतो भट्ट ए सुतो धर्मजटीमिश्र ए सुतो धाराजटी मिश्र ए सुतोब्रह्मजरी मिश्र ए सुतो त्रिपुरजटी मिश्र ए सुत विघुजटी मिश्र ए सुतो अजयसिंह: ए सुतो विजयसिंह: ए सुतो ए सुतो आदिवराह: ए सुतो महोवराह: ए सुतो दुर्योधन सिंह: ए सुतो सोढ़र जयसिंहर्काचार्यास्त्रस महास्त्र विद्या पारङगत महामहोपाध्या य: नरसिंह:।।
..गोनू झा 1050-1150
करमहे सोनकरियाम गोनू झाक वर्णन पञ्जीमे अछि- महामहोपाध्याय धूर्तराज गोनू। पञ्जीक अनुसार पीढ़ीक गणना कएलासँ गोनूक जन्म ( गोनूक सोनकरियाम करमहे-वत्समे २४म पीढ़ी चलि रहल अछि) आर्यभट्ट (आदिभट्ट)क बाद (आर्यभट्टक माण्डर-काश्यपमे ३९ म पीढ़ी चलि रहल अछि) आ विद्यापति ठक्कुरक पहिने (विद्यापतिक विषएवार बिस्फी-काश्यपमे १४म पीढ़ी चलि रहल अछि) लगभग १०५० ई.मे सिद्ध होइत अछि। कारण एहि तरहेँ एक पीढ़ीकेँ ४० सँ गुणा केला सँ आर्यभट्टक जन्म लगभग ४७६ ई. आ विद्यापतिक जन्म लगभग १३५० ई. अबैत अछि जे इतिहाससम्मत अछि।
महाराज हरसिंहदेव
मिथिलाक कर्णाट वंशक। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह। 1294 .मे जन्म आ 1307 . मे राजसिंहासन। घियासुद्दीन तुगलकसँ 1324-25 . मे हारिक बाद नेपाल पलायन। मिथिलाक पञ्जी-प्रबन्धक ब्राह्मणकायस्थ आ क्षत्रिय मध्य आधिकारिक स्थापकमैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त,आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक प्रेरणासँ- आ ई हरसिंहदेव नान्यदेवक वंशज छलाहजे नान्यदेव कार्णाट वंशक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहथि- नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके)...मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भक निर्णय कएलन्हि। पुनः वर्तमान स्‍वरूपमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि मिथिलेश महाराज माधव सिंहसँ १७६० ई. मे आदेश करबाए पञ्जीकारसँ शाखा पुस्तकक प्रणयन करबओलन्हि। ओकर बाद पाँजिमे (कखनो काल वर्णित १६०० शाके माने १६७८ ई. वास्तवमे माधव सिंहक बादमे १८०० ई.क आसपास) श्रोत्रियनामक एकटा नव ब्राह्मणउपजातिक मिथिलामेउत्पत्ति भेल।
मैथिलीक आदिकविविद्यापति
कवीश्वरज्योतिरीश्वर (लगभग१२७५-१३५०सँ पूर्व (कारण ज्योतिरीश्वरक ग्रन्थमे हिनक चर्च अछि),मैथिलीक आदिकवि। संस्कृत आ अवहट्टक विद्यापति ठक्कुरःसँ भिन्न। सम्भवतः बिस्फी गामकबार्बर कास्टक श्री महेश ठाकुरक पुत्र। समानान्तर परम्पराक बिदापत नाचमे विद्यापति पदावलीक(ज्योतिरीश्वरसँ पूर्वसँनृत्य-अभिनय होइत अछि।
महाकवि विद्यापति ठाकुर1350-1435
विद्यापति ठक्कुरः 1350-1435 विषएवार बिस्फी-काश्यप (राजा शिवसिंहक दरबारी) आ संस्कृत आ अवहट्ठ लेखक। कीर्तिलताकीर्तिपताकापुरुष परीक्षागोरक्षविजयलिखनावली आदि ग्रंथ समेत विपुल संख्यामे कालजयी रचना। ई मैथिलीक आदिकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व)सँ भिन्न छथि।
पञ्जी-प्रबन्धमे उपलब्ध किछु आधिकारिक आ सामाजिक शब्दावली
 पञ्जी-प्रबन्धमे उपलब्ध किछु आधिकारिक आ सामाजिक शब्दावलीक विवरण 11000 पंजी तालपत्रक जे.पी.जी. इमेजक अंवेषणक बाद संकलित कएल गेल अछि जे नीचाँ वर्णित अछि।
सांधिविग्रहिकधर्माध्‍यक्षकचतुर्वेदाध्‍यायीयाज्ञिकपार्णागारिकवार्तिकमहामत्तकभाण्‍डागारिक,स्‍थानान्‍तरिकराजवल्‍लभराजवल्‍लभस्‍थानान्तरिकराउल, खनतरी, कापनि, फूलहर,सन्धिबिग्रहिकपुरोहितकुल छेत्रोपार्यकआवस्थिककन्टकोद्धार्कारकज्‍योतिविर्वदपदांकितपण्डित राज पदांकित,उपाय कारकएकान्तरिकमाण्‍डर सँ वैदिक विश्‍वम्भरसिहौली माण्‍डरसँ पुरन्‍दर सुत वैदिक गोनू झानर वलि. सँ घनश्‍याम सुत वैदिक गणपति मिश्रखौआलसँ कमल सुत म. गुणाकर वैदिक पिताम्‍बरसिंहौलि माण्‍डरसँ वैदिक विश्‍वम्‍भर सुत म. कुलपति म.चतुर्भुज,दरिहरासँ रघुनाथ सुत म. माधव वैदिक विरेश्‍वरदरिहरासँ म. माधव सुत वैदिक भगीरथ,दरिहरासँ कीर्तिनाथ सुत वैदिक धननाथदरिहरासँ रामसुत वैदिक भगीरथसकराढ़ीसँ नकटू सुत वैदिक चन्दरक्तमाण्‍डर सँ वै. अच्‍छपति सुत वैदिक जीवपतिसोदरपुरसँ वैदिक होरीदरिहरा सँ राम द्दौo विभाकर सुतौ वैदिक विश्‍वम्‍भरसकराढ़ीसकराढ़ी सँ हरिश्‍वर द्दौo वैदिक:विश्‍वम्‍भर,माण्‍डर सँ वैदिक विश्‍वम्‍भरकमल सुतो कृष्‍णदेव महो गुणाकरौ (१०९//०४) वैदिक (१०९/०४) पीताम्‍बरा:माण्‍डरसँ माण्‍डरसँ भैरव द्दौo वैदिक विधूप्रo, वैदिक युदनाथ:वैदिकवैदिक विरेश्‍वर,वैदिकवैदिक भगीरथवैदिक विश्‍नाथवैदिक घननाथवैदिक चन्‍द्रदत्तदरिहरा सँ वैदिक जीवनाथवैदिक अच्‍छपतिवैदिकवैदिक बलदेवदरिहरा सँ वैदिक जीवनाथ दौहित्र दौ,वैदिकवैदिक कलाघरदरिहरा सँ राम सुत वैदिक भगीरथ दौवैदिक राजा महो गोशाईवैदिकमुकुन्‍दबेचू सुतो वैयाकरण धरनीघर वैदिक वनखण्‍डीकौवैदिक नित्‍यानन्‍दवैदिक सोनीवैदिकबद्रीनाथवैदिकवैदिक विधुहरिअम सँ मुक्तिनाथ द्दौoवैदिक तुलानन्‍दवैदिक चन्‍द्रदत्त प्रेमदत्त,सोदरपुरसोदरपुर सँ चित्रधर द्दौo वैदिक धननाथवैदिकवैदिक अमोदयानाथवैदिक हेमागंदवैदिक गणपति वैदिक कुलपतिकोबैदिक गुणपति सुता आँखी वैदिक कलाघरअपरा वैदिक कुलमणि,वैदिकवैदिक आदिनाथवैदिक कुलपति‍ज्‍यो.वैयाकरणवैयाकरण भैरवदत्तौवैयाकरण अमृतनाथ बुद्धिनाथ देवनाथवैयाकरण राम:वैयाकरणवैयाकरण राधनाथवैयाकरण परमेश्‍वर,सरिसबसरिसब सँ झोटह द्दौoवैयाकरण नन्‍दीपतिवैयाकरण गौरीशंकरवैयाकरणवैयाकरण रज्‍जे,खण्‍डबला सँ भगीरथ द्दौ. महा वैयाकरण दिनबन्‍धु सुता वैया. जीवनाथवैयाकरणवैयाकरण मतिनाथसकुरीपाली सँ वैयाकरण श्रीदत्त सुत वै. मनभरन दौवैयाकरण रूपनाथ,वैयाकरणवैयाकरण मतिनाथा:कविकवि हेमनाथ सुता वैयाकरण महिनाथवैयाकरण रामनाथ उँमानाथ:वैयाकरणवैयाकरण खुशिहालवैयाकरण भवानीदत्त देवीदत्तावैयाकरण हेमनाथ दौ,वैयाकरण हरिनाथा:वैयाकरणवैयाकरण ऋद्धिछक्‍कनछक्‍कन वैयाकरणमहो चण्‍डेश्‍वर सुतो वैयाकरण (२७६//०७) शिवेश्‍वर:खौआल सँ वैयाकरण मोदनाथ दौवैयाकरण (२०१/०४) मोदनाथवैयाकरण गोपाला:वैयाकरणवैयाकरण मेघनादौवैयाकरण चंलल:वैयाकरण ईश्‍वरीदत्त सुतोवैयाकरणवैयाकरण हर्षनाथ दौवैयाकरण (०४/०६) ब्रजगोपाल जयगोपाल वैयाकरणप्राध्‍यापक (Calcutta university Maithily Deptt.) खूद्दीका महिषी पाली सँ    दिनानाथ सुत शक्तिनाथ दौवैयाकरणवैयाकरण महावीरवैयाकरण हरिनारायणावैयाकरण नन्‍दीपति,वैयाकरण एकनाथकुजौली सँ गंगादत दौ वैयाकरण रघुनाथहरिअम सँ तुलसीदत्त द्दौ वैयाकरण खुद्दीअपरावैयाकरण सुता वैयाकरण भैये सुग्‍गेवैयाकरण चिन्‍तामनिदेयाम सँ वैयाकरण मधुकर,पिताम्‍बर सुतो वैयाकरण पद्मनाम:वैयाकरणवैयाकरण रवूदीकाहरिअम सँ हिंगु द्दौ वैदिक सोनी सुता वैदिक कुलमणि वैदिक वंशमणि कमलमणि परशमणि (२८०/०१) हर्षमणिका: दरिहरा सँ वैदिक जीवनाथ दौपाली सँ श्रीनाथ द्दौ पुरन्‍दर सुतो वैदिक गोनू वैदिक हेमाड्गदोवैदिकघनश्‍यामखौआलसँ काशीपति द्दौ वैदिक घनश्‍ययाम (१६०/०५) सुतो वैदिक गणपति वैदिक ब.,वैदिक गणपति सुता ऑंखी वैदिक कलाधर (२६८/०९) रकनी कविभानु वैदिकवैदिक केशव,वैदिक गोशाइका:वैदिकवैदिक गोशाँईसरिसब सँ चतुर्भूज द्दौo वैदिक गिरधारीआदिनाथा: ब.,माण्‍डरसँवैदिकविश्‍वम्‍मरआगमाचार्यक मo o उपाo (९६//०४) देवनाथआगमाचार्यक देवनाथ,एकहरा सँ आगमाचार्यक महो मुकुन्‍दकन्टकोद्धार्कारक मōō मधुसूदनतर्क पत्र्चानन मo oउपाo गोपीनाथविरेश्‍वर कविशेखर इति प्रसिद्वकटाइ सँ कवि केशरी मōō भीममाण्‍डर सँकविराज शुभंकरवलियास सँ कविशेखर पदांकित चन्‍द्रनाथसोदरपुरसोदरपुर सँ ढाका कवि महामहो गणपतिकुजौली सँ महो कृष्‍ण दाशसुत कवि गंगादाशकरमहा सँ कविन्‍द्र पदांकित रति देवदरिहरा सँ कविराज विसवकरमहा सँ कविन्‍द्र पदांकित रतिदेवटकवाल सँ कविराज लक्ष्‍मीपाणिपाली सँ कविशेखर पदांकित यदुनाथविस्‍फी सँ कवि भूपति पदांकित सोमेश्‍वर,माण्‍डर सँ कविशेखर पदांकित महो यशोधरजगति सँ महामहोकवि रत्न पदां. होरेपाली सँ घौघेसुत कविराज कृष्‍णपतिवलियास सँ कविशेखर पदांकित चन्‍द्रनाथवलियास सँ कवि मणि पदांकित पशुपतिगंगोली सँ कविराज गयनए सुतो महामहो विद्यापति गंगोली सँ मानकुढ़ वासी कविराज गणेश्‍वरसोदरपुरसँ कविराज महो भानुदत्तसोदरपुरसोदरपुर  सँ कवि जयरामतपोवन सँ कवि धनेश्‍वरअलय सँ शान्तिकरणीक रूदनरवाल सँ शान्तिकरणीक मधुकरकलिगाम सँशान्तिकरणीक भोगीश्‍वरमाण्‍डरसँ शान्तिकरणीक पाँखूदानाधिकारी मोदी हल्‍लेश्‍वरजगतिसँ मिमांशक म.म. मिरुस(मिमांशक) हरि देवधरापत्‍य-सिंघियामिश्रा (मिमांशक) सुधाधरपत्‍य उसरौली,मिश्र (मिमांशक) लाखू भूड़ी गणेश्‍वर-परमगढ़मिमांशक विभूमिमांशक माधवभवेश्‍वर सुतामिमांशक रूदनोने सुता मि‍मांशक मिसरूराम सुतो मिमांशक योगदत्त:मिमांशक मेघानाथ,मिमांशक मणिमिमांशक जयदेवमिमांशक धरनीमिमांशक योगदत्त:करमहा सँ मिमांशक योगदत्तजगतिसँ मिमांशक म.म. मिरुसजनार्दन सुत नैयायिक दुर्गाघरनैयायिक महौ दुर्गाधर,षट्शास्‍त्री नैयायिक दर्शनशास्‍त्रज्ञ उदयकान्‍तोदिघो सँ देवागारिक बाटेदिघो सँ देवागारिक बटेश्‍वरपार्णागारिक विरेश्वरदिघोयसँ पार्णागारिक जानू दत्तपार्णा गारिक स्थितिदत्त,धर्माधिकरणिक जानुदत्तपबौली सँ धर्माधिकरणिक रूदगंगोली सँ धर्माधिकरणिक जान्‍हव,धर्माधिकरणिक महामहो नरहरिधर्माधिकरणिक गदाधरसुरगन सँ धर्माधिकरणिक भास्‍कर,करिअमसँ म.म. धर्माधिकरणिक मरथखौआलसँ शर्म्‍मा धर्माधिकरणिक म.म. उ.हरिशर्म्‍मादिघोयसँ जयदत्त सुत धर्माधिकरणिक भट्टजीवेधर्माधिकरणिक म.म. (२३/०१०) नरसिंहधर्माधिकरणिकमहोमहोपाध्‍याय गदाघरधर्माधिकरणिक वाटूनैवंधिक- नैवंधिक वीरेश्‍वर, नैवंधिकधीरेश्‍वर,मुद्राहस्‍तक गुणीश्‍वसुत म.म. आभो एसुतमुद्राहस्‍तक कुल छेत्रोपार्यक राउलगढ़बेलउँच सँमुद्राहस्‍तक गुणीश्‍वरमुद्राहस्‍तक लक्षपतिमुद्राहस्‍तक लक्ष्‍मीदत्त
मंत्री गणेश्वर: मिथिलाक कर्णाट वंशक नरेश हरसिंहदेवक मंत्री। सुगतिसोपानमे मिथिलाक सांवैधानिक इतिहासक वर्णन
महाराज नान्यदेवमिथिलाक कर्णाट वंशक 1097 ई. मे स्थापना। 1147 ई. मे मृत्यु। मल्लदेव मिथिलाक कर्णाट वंशक संस्थापक नान्यदेवक पुत्र। मिथिलाक गंधवरिया राजपूत मल्लदेवकेँ अपन बीजीपुरुष मानैत छथि।
 मालद्वार – पंचप्रवर- करमहे नरुआर वत्सगोत्रीराजा रामलोचन चौधरी-मालद्वार- २५०० वर्ष पूर्व- राजा दुर्गा प्रसाद चौधरी-
-राजा बुद्धिनाथ चौधरी(मालद्वार)-कुमार वैद्यनाथ चौधरी
- छत्रनाथ चौधरी (दुर्गागंज)-टंकनाअथ चौधरी-कर्मनाथ/ शेषनाथ/ रुद्रनाथ
 एक छलि महारानी- डॉ. मदनेश्वर मिश्र
सुरगणे लौआम- गोत्र पराशर
लौआम गाम मूलतः बसैठीसँ पूर्णियाँक बीचमे- आब नहि छैक।
तिलैबार मूलक शाण्डिल्य गोत्री
बनैली गाम- अगरू राय- हिनकर जमाए सुरगणे लौआम मूलक प्राणपति- हिनक बालक समर झा
१५७५-१६२५ (लगभग १६म शताब्दी)दिल्ली सल्तनतसँ जमीन्दारी किनलन्हि आ समर चौधरी भऽ गेलाहमहाराज भऽ गेलाह।
लौआमक दू शाखा
-महाराज कृष्णदेव (पहसरा बसैटी)
-महाराज भगीरथ- सौरिया (कटिहार-सोनालीक बीचमे)- एकटा स्थान दण्डखोड़- एतए अपराधीकेँ सजा देल जाइत छल (सौरिया शाखा द्वारा)।

पाँच वंश बाद पहसरा बसैटी- कृष्णदेव-देवनारायण-वीरनारायण-रामचन्द्र नारायण (जॉन बुकानन पूर्णियाँ गजेटियरमे हुनकर वर्णन किंग ऑफ पूर्णियाँक रूपमे कएने छथि)- इन्द्रनारायण (बिना सन्तान) रानी इन्द्रावती(सासुरक नाम- असल नाम लीलावती) हिनकर मृत्युतिथि १५-११-१८०३ मृत्युस्थान पूर्णियाँसमए- मध्याह्ण कालश्राद्ध खर्चक हेतु पूर्णियाँ जजसँ प्राप्ति- रु.५०००/- माँग रु.१५,६७०/-( बोर्ड ऑफ रेवेन्युफोर्ट विलियममे २९.११.१८०३ ई. केँ कार्यवाही)। इन्द्रनारायणक समकालीन सौरिया दिश राजा राजेन्द्रनारायण आ राजा महेन्द्रनारायण। महाराज इन्द्रनारायणक मृत्यु १७७६ ई. मेतकर बाद २७ बर्ख धरि रानी इन्द्रावती राज कएलन्हि।
राज बनैली- रामनगर/ श्रीनगर/ गढ़बनैली/ सुल्तानगंज/ चंपानगर।
 श्यामा मन्दिर बनारसमे संस्कृत पढ़बाक वृत्ति- रानी चन्द्रावती- कोइलख (राजा पद्मानन्द सिंह,पुतोहु-कुमार चन्द्रानन्द सिंहक पत्नी)- रामनगर।
विशेश्वर झा बैगनी नवादासँ पहसरा नोकरी करबा लेल अएलाह। हिनकर बेटा दीवान देवानन्द फेर चातुर्धरिक मनसबदार परमानन्द- संध्यागायत्रीसँ लोप बनैली समर सिंहकेँ मानि लेलन्हि। दुलार चौधरी/ फेर सिंह (बनैली राज)बुकानन हिनका चौधरी कहि सम्बोधित करैत छथिमात्र एक बेर सिंह कहै छथि।
१६८०-१७०० ई.-दरभंगा राजकन्दर्पीघाटक लड़ाईराजा नरेन्द्र सिंह- दिल्ली सल्तनत आ जनताक बीचमेबागमती तटपर समस्तीपुर ब्रह्महत्याक आरोपी नरेन्द्र सिंहकेँ बारि ब्राह्मण सभ पूर्णियाँ सुरगणे लौआम महाराज समर सिंह सन्तति महाराज नरनारायणपहसरा बसैटी (कोशीक पूर्व)- फारबिसगंजसँ दण्डखोड़ा कटिहार तक बसाओल गेलाह। फेर माधव सिंहक समएमे दरभंगा आपस भेलाह।
खुद्दी झा/ परमेश्वर झाकेँ आशुतोष मुखर्जीक समए दरमाहा राज बनैली देलकैक।
 पञ्जीमे दरभंगा राजक विरुद्- विविध विरुदावली विराजमान् मानोन्नतमान् प्रतिज्ञापदर्योधिक परशुराम समस्त प्रक्रिया विराजमान् नृपराज महोग्रप्रताप मिथिलाङ्कार महाराजाधिराज माधव सिंह बहादुर कामेश्वर सिंह।
धकजरीक नवलक्षाधिपति लक्ष्मीपति मिश्र कोदरिये मूल शाण्डिल्य पाञ्जि भेटि गेलन्हिरमेश्वर सिंहकेँ १ १/२ लाख टाकाक चन्दा देलन्हिपिण्डारुछक चौधरी सभकेँ सेहो पाँजि भेटलन्हि (नित्यानन्द चौधरी)।

गुणाकर झा हरसिंहदेवक समकालीन ई.१३२६ ततैल ग्राम- १० खाढ़ी पाछाँ ककरौड़ गाम-जिला मधुबनी रघुदेव झा- आनन्द झा- देवानन्द प्रसिद्ध छोटी झा दरभंगा नरेश माधव सिंहक (शाखा पुस्तकक प्रणयन आदेश) समकालीन १६५० ई.क आसपास- मित्रानन्द प्रसिद्ध झोंटी झा- गोपीनाथ झा प्रसिद्ध होरिल झा- हरखानन्द प्रसिद्ध हरखी झा- एखसँ १५९ वर्ख पूर्क दिनकर टिपणी (जन्म) रसाढ़ पूर्णियाँ बनमनखी लग- श्री भोलानाथ प्रसिद्ध भिखिया झा- श्री मोदानन्द झा- पञ्जीकार विद्यानन्द झा प्रसिद्ध मोहनजी- मूल पड़ुआ(पण्डुआ) महिन्द्रपुर, गोत्र काश्यप त्रिप्रवर।
खाँ- कुजिलवार उल्लू- कात्यायन गोत्र
उतेढ़- सिद्धांत लिखबाक पहिने वर ओ कन्या पक्षक अधिकार ताकल जाइत छैक आ ई मात्र मूलक आधारपर बनाओल जाइत अछि आ समगोत्री विवाह नहि होअए ताहि लेल गोत्र आ प्रवर सेहो देखल जाइत अछि। मूलसँ गोत्र सामान्यतः पता चलि जाइत अछिकिछु अपवादो छैक। जेना ब्रह्मपुरा मूल- काश्यप/ गौतम/ वत्स/ वशिष्ठ (सात टा)करमहा- शाण्डिल्य (गौल शाखा)/ बाकी सभ वत्सगोत्रीदुनु करमहामे विवाह संभव।
चन्दा झा- माण्डर रजौरा
 रामोऽवेत्ति नलोऽवेत्ति वेत्ति राजा पुरुरवा।
अलर्कस्य धनं प्राप्य नान्यदेवोनृप भविष्यति॥
 नान्यदेव घोड़ापर चढ़ल हकासल-पियासल अएलाहगाछतरमे घोड़ा बान्हलन्हिघोड़ा लेल खाद्य छीलए लगलाह तँ फन काढ़ि साँप नाग आएलकिछु लिखल जे नान्यदेव मिथिलाक भाषा नहि पढ़ि सकलाह। कामेश्वर ठाकुर जे गाममे रहथि पढ़ि बतओलन्हि जे अहाँ मिथिला राजा नान्यदेव छी।
कामेश्वर ठाकुर संतति चण्डेश्वरकेँ हरसिंहदेव राज लिखितमे सौंपि पलाएन कएल। चण्डेश्वरक पाछाँ सिपाही आएल। एकरापर जल फेंकि ठाढ़ भऽ गेलदोसर खेहारलकओकरापर जल फेकलन्हि ओ आन्हर भऽ गेल (अन्हरा ठाढ़ी)।
वर्षकृत्य- अयलीह बिहुला देलन्हि पसारि,
गेलीह सामा लेलन्हि ओसारि।
 पञ्जी- अधिकारक नियमावली- पञ्जी अयाची मिश्रक पौत्र ढाका कवि- ढाकामे जागीर भेटलन्हि। हल्ली झा तांत्रिक आ शिव कुमार शास्त्रीक बीच शास्त्रार्थ- प्रत्याहार वाक तंत्र द्वारा हल्ली शिवकुमार शास्त्रीक वाक् बन्न कए देलन्हि।
 तस्कर केशवमंगरौनी नरौने सुल्हनी- पराशर गोत्र माण्डर सिहौल मूलक काश्यप गोत्री खगनाथ झा- गाम जमसम। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेलगाममे पोखरि खुनाओल,मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह। केशव झा लड़कीकेँ लए गाम आबि गेलाह। धोती रंगाइत छल। पता केनिहार जे आएल तकरा पकड़ि कन्यादान करबाओल। तकर बाद राजा की करताह, पञ्जीकारकेँ बजा कऽ ओकर नाममे तस्कर उपाधि लगबाओल। खगनाथ झा- श्रीकान्त झा पाँजितस्कर केशव श्रोत्रिय ओहिठाम विवाह कएलापर श्रोत्रिय श्रेणी विराजमान रहितन्हि। पाञ्जि आ पानि अधोगामीपछबारि पारक प्रथम श्रेणी आब नहि अछि।
शाण्डिल्य- ४३ मूलवत्स-४० मूलकाश्यप-२७ मूलसावर्ण- ७ मूल, कात्यायन- ५ मूल,पराशर- ७ मूलभारद्वाज- ५ मूलगर्ग- ३ मूल
 सूर्य- सिंह राशिमे (१६ अगस्त सँ १६ सितम्बर)किछु सुखेबाक होअए तँ सभसँ कड़ा रौद।
पाँ रघुदेव झाक लिखल माण्डर मूलक पोथी- अंकित तिथि- १७म शताब्दीक अन्तिम दशक आ १८म शताब्दीक पहिल दशकहुनकर पौत्र पाँ छोटी प्रसिद्ध देवानन्द झाक लिखल शाखा पुस्तक १७६०-१७७६ई.। ताल पत्रपर।
पाँ भिखिया झा शाखा पुस्तक क्वैलख वासी हरिअम्ब मूलक पाँ डोमाई मिश्रक लिखल । पाँ हर्षानन्द झा बला शाखा पुस्तक  जे पाँ झोंटी झा प्रसिद्ध मित्रानन्द झाक लिखल अछि। पाँ. झूलानन्द झा (पाँ भिखिया झाक भ्राता) बला शाखा पुस्तकपाँ मोदानन्द झाक शाखा पुस्तक जे हुनकर मौसा पाँ लूटन झा आ मसियौत पाँ निरसू झा बला शाखा पुस्तक जे १९२५ ई.सँ १९३५ ई. धरि सौराठमे लिखल गेल। एहि सभ शाखा पुस्तककगोत्र पञ्जी जाहि मध्य गोत्र ओ मूलक विवरणपत्र पञ्जी जाहि मध्य अपत्यक ज्ञान ओ मूलग्रामक विवरण भेटैत अछिजाहिसँ वासस्थान परिवर्तनक ज्ञान होइत अछिदूषण पञ्जी जाहिसँ वंशमे आएल कथित दोषक- कट्टरताक विरुद्ध प्रमाण सेहो- ज्ञान होइत अछि। तत्तत पुस्तकमे वर्णित तत्कालीन प्रचलित उपाधिक ज्ञान होइत अछि।
पारिभाषिक शब्दावली:- कोनो वंशक उल्लेखसँ पूर्व ओहि वंशक मूलक उल्लेख जाहि शब्दक बादसँ लागल हो ओ भेल मूल- तकर बाद व्यक्तिक नाम तखन ओहि व्यक्तिक पुंपत्यक उल्लेख- से सुतः वा सुतौ वा सुताः लिखल गेल भऽ सकैए। ओहि व्यक्तिक एकोटा पुत्र नहि परञ्च पुत्री तँ सुता वा सुताश्च लिखल भेटत- सुतः सुतौ सुताक बाद पुत्रक नाम तखन ओहि व्यक्तिक श्वसुरक मूल ग्रामक संगे मूलक उल्लेख। कतहु-कतहु मूलग्राम नहियो लिखल भेटतपुस्तकमे आगाँ बढ़लापर मूलक संकेताक्षर बिन्दु सहित जकर आगाँ सँ” नहि भेटत परञ्च पढ़ैत-पढ़ैत पाठक मूलसँ परिचित भऽ गेल रहताह। सँ=सं=सम्भूत। श्वसुरक नामक पहिने विशेष ठाम श्वसुरक पिताक नामकत्तहु-कत्तहु पितामहक नाम सेहोश्वसुरक नामक बाद दौ लिखल भेटत अर्थात् अर्थ भेल जनिक नामक आगाँ दौ. लिखल अछि ताहि व्यक्तिक दौहित्र भेलाह सुतः सुतौ सुताक उल्लेखक बाद लिखल नाम अर्थात् सुतादिक मातामह भेलाह दौ. लिखलसँ पूर्व नाम- तदुपरान्त श्वसुरक उल्लेख मूल सहित भेटत आ नामक बाद शब्द भेटत दौहित्र दौहित्र जे संकेताक्षरमे द्दौ. रहतपरञ्च ई बुझब आवश्यक जे शाखा पुस्तकक कोनो पृथक विषय सूची नहि रहि विषय-अनुक्रमणिका संगे रहै छै।
[गजेन्द्र ठाकुर- ई अछि दूषण पंजीक स्कैन कएल सिंगल पी.डी.एफ.। पंजीक हमर पोथीमे ओना तँ ११००० तालपत्रक जे.पी.जी.इमेज क डी.वी.डी. सेहो अलगसँ किनबाक व्यवस्था रहै आ ओइ डी.वी.डी.केँ कबिलपुरक सगर राति दीप जरएमे हम बाँटनहियो रहीमुदा ओइमे जे दूषण पंजी रहै तकर कारण कतेक पंचैती भेलकतेक गोटे सोझाँ आ फोनपर गारि पढ़लन्हि। अखनो बहुत गोटे पंजीमे ओकर चर्चासँ भितरे-भितरे गुम्हरैत रहैत छथि आ गपमे तामसे हाँफऽ लगै छथि जेना खून पीबि जेता। ऐ दूषण पंजीमे ब्राह्मणक आन जाति खास कऽ दलित आ मुस्लिमक संग विवाह,वा पतिक मृत्युक बाद विवाहक लिखित दस्तावेज छल। ओकरामे हेर-फेर केनाइ हमरासँ सम्भव नै छल। पंजीक पोथीमे शब्दशः एकर मिथिलाक्षरसँ देवनागरीमे लिप्यंतरण भेल अछि। एतए हम मूल ताड़पत्र आ बसहा पत्रपर लिखल पंजीक लिंक दऽ रहल छी। संगमे पंजीक लिंक सेहो। कियो नै कहि सकैत अछि जे ऐ मे एक्को रत्ती अशुद्धि अछि। गंगेशक जन्म पिताक मृत्युक ५ बर्ख बाद आ फेर हुनकर चर्मकारिणीसँ विवाह एतए वर्णित भेटत। ई वएह नव्य-न्यायक जनक गंगेश छथि। आनन्दा चर्मकारिणीसँ विवाह एतए सेहो भेटत जे हमरा द्वारा लिखित प्रेमकथा "शब्दशास्त्रम्"क आधार बनल।
दूषण पंजी- मूल मिथिलाक्षर लेख- ताड़पत्र सिंगल पी.डी.एफ.https://docs.google.com/a/videha.com/viewer?a=v&pid=sites&srcid=dmlkZWhhLmNvbXx2aWRlaGEtcG90aGl8Z3g6ZjFiNTA5NGI2YTVlNGEx
 मोदानन्द झा शाखा पंजी-http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/modanand_jha_shakha_panji.pdf
 मंडार- मरड़े कश्यप-प्राचीन-http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/mandar_marare_kashyap_prachin_complete.pdf
 प्राचीन पंजी (लेमीनेट कएल)-  http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/laminatedpanji.pdf
 उतेढ़ पंजी-  http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/panji_7_uterh_panji.pdf
 पनिचोभे बीरपुर- https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Panichobhe_Birpur.pdf?attredirects=0
दरभंगा राज आदेश उतेढ आदि https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/DARBHANGA_RAJ_ORDER_PANJI_PACHHBARI_ORDER_UTEDH.pdf?attredirects=0
 छोटी झा पुस्तक निर्देशिका-http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/panji_directory_chotijha_shakha_pustak.pdf
पत्र पंजी http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/patra_panji.pdf
मूलग्राम पंजीhttp://videha123.files.wordpress.com/2011/09/panji_8_moolgram_panji.pdf
मूलग्राम परगना हिसाबे पंजीhttp://videha123.files.wordpress.com/2011/09/panji_9_moolgram_parganawise_panji.pdf
मूल पंजी-2 http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/moolpanji_2.pdf
 मूल पंजी-३- http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/mool_panji_3.pdf
मूल पंजी-४ http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/mool_panji_4.pdf
मूल पंजी-५ http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/mool_panji_5.pdf
मूल पंजी-६ http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/moolpanji_6.pdf
 मूल पंजी-७- http://videha123.files.wordpress.com/2011/09/prachin_panji_last.pdf

पंजी-पोथी- http://www.box.net/shared/yx4b9r4kab
-गजेन्द्र ठाकुर]
एकटा पोथी आएल छल "मिथिला की सांस्कृतिक लोकचित्रकला",१९६२ (लेखक: चित्रकार श्री लक्ष्मीनाथ झा)आ दोसर पोथी "जीनोम मैपिंग: मिथिलाक पंजी प्रबन्ध- ४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)२००९ (गजेन्द्र ठाकुरनागेन्द्र कुमार झा पंजीकार विद्यानन्द झा)"पंजी-पोथी-http://www.box.net/shared/yx4b9r4kab -
आ पंजीक पात सब  
https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ पर। आब ऐ दुनू पोथीक किछु भाग चोरि कऽ दू गोटे अपना नामेँ छपबेलन्हि अछि आ तइमे हुनका लोकनिकेँ सहयोग सेहो भेटल छन्हि। सुशीला झा "अरिपन"२००८ नामसँ "मिथिला की सांस्कृतिक लोकचित्रकला" पोथीक अनुवाद अपना नामे कऽ लेने छथि,फोटो तक स्कैन कऽ चोरा लेने छथि आ तकरा भारतीय भाषा संस्थानमैसूर प्रकाशन अनुदान देने अछिई तथ्य ऐ पोथीपर लिखल अछि। डा. योगनाथ झा तँ सद्यः "जीनोम मैपिंग: मिथिलाक पंजी प्रबन्ध- ४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.),२००९ (गजेन्द्र ठाकुरनागेन्द्र कुमार झा पंजीकार विद्यानन्द झा)" केँ अपना नामेँ "पंजी-प्रबन्ध (वंश परिचय- प्रथमभाग२०१०)"- नामसँ छपबा लेलन्हि आ ऐ मे हुनका सहयोग भेटलन्हि श्रोत्रिय समाजक संगठन "महाराजा कामेश्वर सिंह सांस्कृतिक विकास मंच"क। ई श्रोत्रिय समाजक संगठन श्री लक्ष्मीनाथ झाजे श्रोत्रिय छलाहकेर पोथीक चोरिक विरोध कोना करतहिनका सभकेँ देख कऽ तँ पुरान चोर पंकज पराशर (http://www.box.net/shared/75xgdy37drसेहो लजा जाएत। दस बर्खक मेहनति दस मिनटमे चोरि करैबला ई महानुभाव डा. योगनाथ झा उर्फ योगनाथ "सिन्धु" उर्फ सिन्धुनाथ झा ७० बर्खक छथि!!
 

मूल विवरण:
अथ गोत्र पंजी प्रारभ्यते: मैथिल ब्राह्मण समाज मे गोत्र वंश बोधक थीक। मैथिल ब्राह्मणक गोत्र समस्त पितृ प्रधान ओ प्रत्येक गोत्र अपन-अपन वंशक प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक नाम थीकअस्तुगोत्र ओ गोत्रापत्य (अर्थात गोत्रक सन्तान) मध्य रक्त सम्बन्धक सूचना थीक। अर्थात शाण्डिल्य गोत्रधारी शाण्डिल्य मुनिक सन्तान थिकाह ओ भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण भारद्वाजक मुनिक सन्तान थिकाह। एहि प्रकारें आनो गोत्रक हेतु बुझवाक थिक। मिथिलामध्य कुल बीस (20) गोत्रक ब्राह्मण छथि। आगाँ हम गोत्र ओ गोत्रक अन्तर्गत आबऽ वाला मूलक प्राकृतिक उच्चारण तथा लोक भाषा मे मूलक उच्चारित स्वरूपक वर्णन कए रहल छी। एकरा गोत्र पंजी कहल जाइत छैक।
(1) शाण्डिल्य गोत्र-मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
दिर्घोष                    दिघवे
सरिसव                    सरिसवे
महुवा                     महुवे
पर्वपल्ली                   पवोलिवाड़ या पगोलिवाड़
खण्डवला                  खड़ौरय
गंगोली                    गंगोलिवार
यमुगाम                    यमुगामे
करियन                    करियने
मोहरी                     महुरिये
सझूआल                   सझुआड़य
मड़ार                     मड़ारै
पण्डोली                   पण्डुलवाड़
जजिवाल                   जजिवाड़य
दहिभत                    दहिभतवार
तिलय                    तिलयवार
माहव                     महबे
सिम्मूआल                  सिम्मूआलय
सिंहाश्रम                   सेहासमय
सोदरपुर                   सोदरपुरिये
कड़रिया                   कड़रिये
अल्लारि                   अलरिये (अन्हरिये)
होइयार                    होइयारय
तल्हनपुर                   तन्नहपुरिये
परिसरा                    परिसरे
परसण्डा                   परसण्डे
वीरनाम                    वीरनामय
उत्तमपुर                   उत्तमपुरिये
कोदरिया                   कोदरिये
छतिमन                    छतिमनय
बरेवा                     बरबय
मछुआल                   मछुआलय
गंगोर                     गंगोरय
भटौर                     भटोरय
बुधौर                     बुधोरय
ब्रह्मपुर                    ब्रह्मपुरिये
कोइयार                   कोइयारय
करहिवार                  करहिवारय
गंगुआल                    गंगुआलय
घोषियाम                   घोषियामय
छतौनी                    छतियौनय
भिगुआल                   भिगुआलय
ननौती                    ननौतिवार
तपनपुर                    तपनपुरिये
(2) अथ वत्स गोत्र अन्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
पाली                     पलिवाड़
हरिअम्ब                   हरिअम्मय
तिसूरी                    तिसूरीवार
राउढ़                     रउढ़े
टंकवाल                   टकवाड़य
घुसौत                    घुसौतय
जजिवाल                   जजिवाड़य
पहद्दी                     पोहद्दीवार
जल्लकी                   जलैवार
भन्दवाल                   भन्दवालय
कोइयार                   कोइयारय
करहिवार                  करहिवारय
ननौर                     ननौरय
डढ़ार                     डढ़ारय
करम्महा                   करमहे
बुधवाल                    बुधवाड्य
लाही                     लाही
सौनी                     सौनीवार
सकौनय                   सकुनय
फनन्दह                   फन्नेवार
मोहरी                     महुरिये
वंठवाल                    वण्ठवालय
तिसउॅत                   तिसौतय
बरूआली                   बरूआड़ी
पण्डोली                   पण्डुलीवार
बहेराढ़ी                    बहिरवाड़
बरैवा                     बरवय
अलय                     अड़ैवार
भण्डारिसम                  भण्डारिसमय
बभनियाम                   बभनियामय
उचति                     उचितवार
तपनपुर                    तपनपुरिये
बिठुआल                   बिठुआलय
नरवाल                    नरवालय
चित्रपल्ली                  चित्रपलिये
जरहटिया                  जरहटिये
रतवाल                    रतवालय
ब्रह्मपुरा                    ब्रह्मपुरिये
सरौनी                    सरौनी
(3) अथ काश्यप गोत्रक अन्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
ओइनी                    ओइनवार
खौआल                    खौवाड़य
संकराढ़ी                   सकड़िवार
जगति                    जगतिवार
दरिहरा                    दरिहरे या दलिहरे
माण्डर                    मड़रय
बलियास                   बलियासय
पचाउट                    पचाउटे या पचौटे
कटाई                    कटैवाड़
सतलखा                   सतलखे
पण्डुआ                    पडुए
मालिछ                    मालिछ
मेरन्दी                    मेरण्दी
भदुआल                   भदुआलय
पकलिया                   पकड़िये
बुधवाल                    बुधवाड़े
पिभूया                    पिभूया
मौरी                      मौरिये
भूतहरी                    भूतहरी
छादन                     छाजन
विस्फी                    विषयवार
थरिया                    थरिये
दोस्ती                    दोस्तीवाड़
भरेहा                     भरहे
कुसुम्बाल                  कुसमाड़य
नरवाल                    नरवाले
लगुरदह                   लगुरदहे
(4) अथ सावर्ण गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
सोन्दपुर                   सोन्दपुरिये
पनिचोभ                   पनिचोभे
बरेबा                     बरबय
नन्दोर                    ननोरय
मेरन्दी                    मेरन्दीवार
(5) अथ पराशर गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
नरउन                    नरौनय
सुरगन                    सुरगनय सुगरगनै (अपभ्रंश)
सकुरी                    सकुरिवार
सुइरी                     सुइरी
सम्मूआल                   सम्भुआलय
पिहवाल                   पिहवाड़ै
नदाम                     नदामय
महेशारि                   महेशारि
सकरहोन                  सकरहोनय
सोइनी                    सोइनी
तिलय                    तिलयवाड़
बरैवा                     बरवय
(6) अथ भारद्वाज गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
एकहरा                    एकहरे
विल्वपंचक                  बेलौंचे
देयाम                     देयामय
कलिगाम                   कलिगामे
भूतहरी                    भूतहरिये
गोढ़ार                     गोढ़ारय
गोधूलि                    गोधोली
(7) अथ कात्यायन गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
कुंजोली                   कुजिलवाड़
ननौती                    ननौतिवार
जल्लकी                   जलैवार
वतिगाम                    वतिगामय
(8) अथ कौशिक गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
निखूति                    निखूतिवार
(9) अथ गर्ग गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
वसहा                     वसहे
वसाम                     वसामय
ब्रह्मपुरा                    ब्रह्मपुरिये
सुरौर                     सुरौरय
बुधौर                     बुधोरय
उरौर                     उरौरय
(10) अथ गौतम गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
ब्रह्मपुर                    ब्रह्मपुरिये
उत्तिमपुर                   उतिमपुरिये
कोइयार                   कोइयारय
(11) अथ जातुकर्ण गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
देवहार                    देवहारे
कटाई                    कटैवार
परसण्डा                   परसण्डे
(12) अथ कौण्डिल्य गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
एकहरा                    एकहरे
परौन                     परौन
परसण्डा                   परसण्डे
(13) अथ विष्णुवृद्धि गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
वुसवन                    बुसवड़े
(14) अथ उपमन्यु गोत्र
(15) कपिल गोत्र
(16) वशिष्ठ गोत्र
(17) अथ मौद्गल्य गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
रतवाल                    रतवाड़े
मालिछ                    मालिछ
दिर्घोष                    दिघवे
कपिंजल                   कपिंजल
जल्लकी                   जलैवार
(18) अथ कृष्णात्रेय गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
लोहना                    लोहना
बुसवन                    भूसवड़े
पदौनी                     पदौनी
(19) अथ अलाम्बुकाक्ष गोत्रान्तर्गत मूल
मौलिक उच्चारण              लौकिक उच्चारण
वसाम                     वसामय
कटाई                    कटैवार
ब्रह्मपुरा                    ब्रह्मपुरिये
(20) तण्डि गोत्र
कटाइ                    कटैवाड़
परसण्डा                   परसण्डे

मूलग्राम विवरण
प्रत्येक मूलक कतिपय मूलग्राम होइत छैक यथा-सोदरपुर मूल मे
सोदरपुरिये               सरिसव               सोदरपुर तेतरिहार
सोदरपुर                 मानी                 सोदरपुर सिमरवाड़
सोदरपुर                 दिगउन्ध               सोदरपुर जगौर
सोदरपुर                 कटका               सोदरपुर सुन्दर
सोदरपुर                 रैयाम                सोदरपुर महिया
सोदरपुर                 हसौली               सोदरपुर पचही
सोदरपुर                 हाटी

उपरोक्त सोदरपुर मूलक व्यवहार प्रत्येक मूलग्रामक संगे होएतैक। मूलक अर्थ भेल ओ प्राचीनतम ग्राम जतऽ कोनो मूलक प्राचीनतम पुरुषा वा बीजी पुरुष वास करैत छलाह। जखन हम सोदरपुर मूलक चर्चा करब तऽ समस्त सोदरपुर मूलक सभ उपशाखाक बीजी पुरुष एकहि होएताह। एहि मूलक प्राचीनता लगभग 15 सय वर्षक अछि। बादक काल मे पंजीकार लोकनि एकहि मूलक विभिन्न शाखाक नामकरण लगभग 13, 14, 15म शताब्दीक समयक ग्रामक आधार पर कएलैन्हि अर्थात सोदरपुर मूलक जे ब्राह्मण उपरोक्त शताब्दी मे सरिसवमानीदिगउन्धकटकारैयामहसौली इत्यादि ग्राम मे बसल छलाह तनिक सबहक मूल संगे एहि मूलग्राम सँ चिन्हल जाए लगलैन्हि। पंजी प्रबन्धक उद्देश्य कखनहु छोट-पैघ दर्शाएब नहि छल। परंच जखन खण्डवला कुलक शासन 16म शताब्दी मे मिथिला मे आएल एहि तरहक राज्यादेश होइत गेल ओ राज्यादेश सँ पंजीकार लोकनि कें बाध्य कएलैन्हि जे मूलक श्रेणियन कए उच्चता ओ न्यूनताक बोध कराओल जाए। उदाहरण स्वरूप खण्डवला मूलक प्रधान पुरुष म000 शंकर्षण प्रसिद्ध साँईं ठाकुर स्वयं थरिया मूलक कान्हक दौहित्र छलाह। परंच बादक काल मे ओ थरिया मूल छोट बुझल गोल। बुधवाल मूल जे एक उच्च मूल बुझल-मानल जाइछ तनिकर प्रारम्भिक पुरुषा लोकनि मे वामनक पुत्र पुरास्तकौशलदूबे हिरूक मातामह सुइरी मूलक प्रज्ञाकर छलखिन्ह जे सुइरी मूल वर्तमान मे छोट बुझल जाइत अछि से सभ खण्डवला (खड़ौरय)क प्रभावे। मूलतः वंशक उच्चता वा न्यूनताक आधार कर्म संस्कार ओ समाजक हेतु कएल गेल कोनो वंश द्वारा शास्त्रीय योगदान अछि। जाहि सँ मिथिला समृद्ध होएत रहल। शास्त्रीय रचना जतैक कार्णाट वंशीय शासन ओ ओइनवार वंशक शासनकाल मे मिथिला मे भेल से परवर्ती शासनकाल मे नहि भऽ सकल। अस्तुजे से। पुनः मूल विषय पर अबैत छी।
उपरोक्त तरहें आनो मूल कें मूलग्राम जोड़ि सम्बोधित होएब शुरू भेल यथा- माण्डर (मड़रय) रजौरा,मड़रय सिहौलिमड़रयकनसमपलिवाड़ मंगरौनीपलिवाड़ हाटी इत्यादि कटाइ सँ कटैवार अन्हड़ाकटैवार,मलंगिया इत्यादि। एहिना सभ मूल कें बुझल जएबाक चाही। मूलक दू खण्ड मिलाकें बाजल जाएत अछि। तात्पर्य भेल प्राचीन ओ अर्वाचीन ग्राम। नीचां हम किछु मूलक ओ विवरण दऽ रहल छी। कोनो मूलक जे भिन्न-भिन्न शाखा भेल से मूल बीजी सँ कतैक नीचां आबि कोन व्यक्ति सँ कोन शाखा फूटल अर्थात मूलग्रामक विभाजन कोन पुरुषा सँ। एहि विवरण कें पत्र पंजी कहल जाइत छैक।
मूल:- खण्डवला (खड़ौरय) मूलक विभिन्न मूलग्रामक वासी आदिपुरुष: ठक्कुर हराई सन्तति भखराँइ,सोमेश्वरापत्य बुसवनकछरा। ठ0 अनन्तहरि। सन्तति लखनौरभोगीश्वरापत्य गोपाल सन्तति-हरड़ी। गदाधरापत्य-पौरामरत्नाकरापत्य तेतरियाहड़री। ठक्कुर दूबे सन्तति भौर। लाखू-महिपति सन्तति बेहटयमुगाम सोन्दपुरसरपरब कुरहनी। डीह खण्डवला शुभदत्तापत्य देशुआल। झामू सन्तति-रैयाम गुरदी। वास्तु वागु हिरू सन्तति-द्यौरी। गोपालापत्य-गढ़। देवे सन्तति चनुआरी। पक्षधरापत्य-तेतरिया। दिनकरापत्य-पौराम ब्रह्मपुर,बथयी बिहारीउमथगोराढ़ी। साधु सन्तति बथयी। लक्ष्मीपति सन्तति-खरशा। गणेश्वरापत्य-गुलदी। हल्लेश्वरापत्य- बेलारी। जीवेश्वरापत्य- अलय। सोमकंठ- सरपरब। रवि सन्तति-गौर ब्रह्मपुर। जयकर सन्तति-सजनी। भासे-डीह। देवश्वरापत्य-देशुआल। पक्षीश्वरापत्य-यमुगाम। गिरीश्वरापत्य- देशआल। विन्ध्येश्वरापत्य- बैकुण्ठपुर खुट्टी शितिकण्ठ सन्तति। रत्नेश्वरापत्य-गुलदी। एते खण्डवला मूलग्राम।
अथ गंगोली मूल (गंगुलवार) मूल ग्राम-गोत्रापत्य वासी: म000 सुपट सन्तति गोम-कटमा वासी। होरे सन्तति-विस्फीहारू सन्तति देशुआल। हरि सन्तति डुमरा। दिवाकरापत्य-दिगौन। गौरीश्वर सन्तति जगन्नाथापत्य-धर्मपुर। कुमर गंगोली वासी। कमलपाणि सन्तति-बैगनीबड़गाम। डालू-सन्तति सकुरी। गयन सन्तति खरसौनी-एते गंगोली ग्राम।
अथ पर्वपल्ली (पवौलीवाड़) मूल- गोत्रापत्य मूलग्राम वासी: रवि सन्तति- बिरौली। उदयकर सन्तति-सपतादेशुआल महिपति सन्तति-कोशीपार डुमराही। हरिपाणि सन्तति-गोधनपुर। लक्ष्मीदत्तापत्य- गोनोली। नारू सन्तति-भतौनीडहुवा। रूद सन्तति-बछौनी। रूद सुत पाठक भीम सन्तति-मिरडोआ। जागू सन्तति-रयपुरा। विशो सन्तति-चणौर। वासु गौरी सन्तति-महरैल। केशवगोविन्ददामादेरापत्य-राजे। शिवदत्तापत्य-बढ़ियाम। गोगे सन्तति-सहुड़ी। यशोधरापत्य-मैयाम। दामू सन्तति-अस्माँ या अम्मा। पुण्याकरापत्य -पैकटोल। प्रतिहस्त उदयि-धेनु। मधुकररत्नकरप्रभाकरविभाकरापत्य-जगति।
अथ सोदरपुर मूल गोत्रापत्य मूलग्राम वासी: ग्रहेश्वरापत्य-सोदरपुरिये धउल। रूद्रेश्वरापत्य सोदरपुरिये वीरपुर। धीरेश्वरापत्य सोदरपुरिये सुन्दर। विश्वेश्वरापत्य-भवेमाधव सन्तति-सोदरपुरिये हसौली। रामापत्य- सोदरपुर रमौली। वाटू सन्तति-सोदरपुरिये बड़साम। रूचिवासुदेव सन्तति-सोदरपुरिये कुसौली। जटाधरापत्य- सोदरपुरिये पचही। गयनापत्य-सोदरपुरिये रोहाड़ एवं बहेड़ा। रतिहरि सन्तति-सोदरपुर हाटी। वास्तु सन्तति-सोदरपुरिये तेतरिहार। रूपे सन्तति-सोदरपुरिये सिमरवाड़। वसाउनापत्य-सोदरपुर कन्होली। कामेश्वरापत्य सुरेश्वरापत्य रामनाथपत्य- सोदरपुरिये भौआल। कान्हापत्य सोदरपुरिये सुखेत। त्रिपुरे सन्तति सोदरपुर अकडीहा। रतिनाथापत्य-डालू सोदरपुरिये कटका। वाटू सुत हलधर श्रीधर-सोदरपुर केउॅटगामा। सुधाधरापत्य-सोदरपुरिये गौर। म000 रविनाथ सुत म000 जीवनाथापत्य- सोदरपुर दिगोन। म000 रविनाथ सुत महामहो भवनाथ प्रसिद्ध अयाची सुता म000 शंकर महो महादेव महो भासे महो दाशे सन्तति सोदरपुर सरिसव। भवनाथ प्र0 अयाची सन्तति शम्भुनाथ रूद्रनाथापत्य- सोदरपुरिये वाली। म000 देवनाथापत्य- सोदरपुर दिगौन (दिगउन्ध) रघुनाथापत्य- सोदरपुरिये रैयाम। जोर सन्तति सोदरपुरिये बिठौलीमिसरौली। म000 गोपीनाथपत्य- सोदरपुर मानीजगौर। म000 जीवेश्वर सुत गणपति हरदत्त-सोदरपुर महिया। लोकनाथापत्य-सोदरपुर मझियामखोरि। हरदत्त-माधवापत्य-सोदरपुरिये रोहाड़। सुहथरि (सुन्दर) देव सन्तति-सोदरपुरिये महिया।
अथ गंगोर मूल गोत्रापत्य मूलग्राम वासी: वीनू वासू सन्तति-गंगोरे भौआल कुरूम। केशवापत्य-गंगोरे अहियारीपौनद। सनाथ सन्तति-गंगोरे बिरनी। भोरे सन्तति गंगोरे महिन्द्रपुर। बिठू सन्तति गंगोरे बैंकक।
अथ पाली (पलिवाड़) मूल गोत्रापत्य मूलग्राम: बीजी-हलधर सन्तति-पलिवाड़ वलाइनि। म000 उॅमापति सन्तति-पलिवाड़ समौलीवारीजरहटिया। रूपनाथ सन्तति गिरपतिपशुपति-पलिवाड़ समौली। नरहरि सन्तति रघुपति सन्तति-पलिवाड़ समौली। देवधरापत्य-पलिवाड़ कछराद्यौरी। दिवाकरापत्य-पलिवाड़ द्यौरीमोहरी,सकुरीकटैया। घोटक रवि सन्तति-पलिवाड़ कटैया। ग्रहेश्वरापत्य-पलिवाड़ कछरा। रामकरापत्य- पलिवाड़ मालय। नितिकरापत्यराजमतिश्वरापत्य-सिम्मुनाम। कान्हापत्य- पलिवाड़ पण्डोली। विरमिश्रापत्य-पलिवाड़ ततैल। रामदत्त सुत केशव सन्तति कान्ह- पलिवाड़ हाटी। महाई सन्तति-पलिवाड़ फूलदाहा। माधवापत्य-पलिवाड़ दिवड़ा। दूवे सन्तति-पलिवाड़ बेहटा। नरसिंहापत्य- पलिवाड़ हरिपुर। मुरारी सन्तति-पलिवाड़ मुराजपुर। भोगीश्वरराजेश्वरपत्यपुरे सन्तति-पलिवाड़ अलय। वंशधरापत्य- पलिवाड़ अलय। गोविन्दापत्य पलिवाड़ रैयाम। किठो सन्तति-पलिवाड़ कठड़ा। किठोरामवाटू सन्तति-पलिवाड़ नंगवाल। प्रभाकरापत्य-पलिवाड़ पर्जूआरि शशिधरापत्यहरि सन्तति-पलिवाड़ खागी। नादू सुत छिताई सन्तति-पलिवाड़ पर्जुआरि। हिताई सन्तति विरूपाक्षापत्य-पलिवाड़ बैकुण्ठपुर। हारू सन्तति-पलिवाड़ नैकन्धा। कविराज सन्तति- पलिवाड़ मछेटा। सिंहेश्वरापत्य मित्रकरापत्य- पलिवाड़ ननौरराजखण्ड पाली। जयकरापत्य-पलिवाड़ कुसमाल,पिण्डारूछवारहता रतहास पाली-कछरा पाली तपनपुर पाली। माधवापत्यगौरीश्वरापत्यगणपतिगांगू सन्तति-पलिवाड़ अहियारी। यशु सन्तति-पलिवाड़ कुरूम। वागू प्र0 वागीश्वर सन्तति-पलिवाड़ रोहालकटैया। गोविन्दापत्य इचलू सुत दिवाकरापत्य पलिवाड़ सुदय। प्रतिहस्त होराई सन्तति-पलिवाड़ अहियारि। रूद्रेश्वरापत्य-पलिवाड़ भड़गाम। वाटू सन्तति-पलिवाड़ सन्दला हरि परली पाली विषानन्दापत्य-पलिवाड़ ब्रह्मपुर। जलकौर पाली थेतनि सन्तति। चन्दोत पाली दुर्गादित्यपत्य-पलिवाड़ महिषी। देवादित्यापत्य-पलिवाड़ महिषीबिहार समेत। रतनाकर प्र0 रतनू सन्तति-पलिवाड़ महिषी यशारि। धोधनि सन्तति-पलिवाड़ यशारि। विशो श्रीकर शुचिकरापत्य-पलिवाड़ पुरोही। जीवे सन्तति पलिवाड़ तिमौनी। वाढ़न सन्तति-पलिवाड़ आसी। सुधाधरापत्य मांगु सन्तति-पलिवाड़ मौनी। भवदत्तापत्य-पलिवाड़ पुरोही। शुभंकरापत्य-पलिवाड़ जमदौली। पाँचू सन्तति-पलिवाड़ परसौनीजरहटियासकुरी। कुसुमाकर सन्तति पलिवाड़ जमदौली। जटाधरापत्य-पलिवाड़ सकुरी। जीवेश्वरापत्य-पलिवाड़ सकुरी। बुद्धिधरापत्य-पलिवाड़ ततैल। कान्हापत्य इन सन्तति-पलिवाड़ सकुरीअलई। मुरारी सन्तति रामापत्य-पलिवाड़ महिन्द्रवाड़। विशो सन्तति रूद्रेश्वरापत्य- पलिवाड़ कोलहट्टा। गणेश्वर नन्दीश्वरापत्य- पलिवाड़ महिन्द्रवाड़। गोविन्दापत्य-पलिवाड़ हरिपुर। विरेश्वर नरसिंहापत्य-श्रीधरापत्य- पलिवाड़ राढ़ी। गुणीश्वरापत्य-पलिवाड़ कोइलख। ग्रहेश्वरापत्य-पलिवाड़ चहुरा। गोपालापत्य हरिपाणि सन्तति-पलिवाड़ समैया। वाछे सन्तति-होरेश्वर मतीश्वर- पलिवाड़ मंगरौनी। वाटू सन्तति-पलिवाड़ कटौना। यशु सन्ततिरातू सन्तति-पलिवाड़ सकुरी। गणपतिभीगव सन्तति-पलिवाड़ पचाढ़ी। गुणाकरापत्य-पलिवाड़ वरहेतासोन्दवाड़। पुरादित्यापत्य-पलिवाड़ मृगस्थली। एते पल्ली (पाली ग्राम)।
अथ हरिअम मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: लाखू सन्तति हरिअम्बे रखवारी। केशवदामू प्र0 दामोदर सन्तति-हरिअम्बे मंगरौना। मांगूनरसिंहापत्य-हारू सन्ततिहरिअम्बे शिवा। नरहरि सन्तति हरिअम्बे बलिराजपुर। चाणदिनू सन्तति-हरिअम्बे कटमा। परमूलाखू सन्तति हरिअम्बे आहिल। रति गुणे सन्तति-हरिअम्बे कटमा माधव सुत रति सन्तति-हरिअम्बे भच्छी। एते हरिअम्ब ग्राम।
अथ टंकवाल (टकवाड़े) मूल अन्तर्गत मूल ग्राम बीजी: कविराज लक्ष्मीपाणि सन्तति-टकवाड़े नीमा। सुरेश्वरापत्यदामोदरापत्य-टकवाड़े पटनियाँगंगोली। रविशर्म्म लक्ष्मीशर्म्म-टकवाड़े ब्रह्मपुर। पतरू शिरू सन्तति-टकवाड़े- पटनियाँपोखरौनीभौरसकुरी। माधवापत्य- टकवाड़े सकुरी। जागे सन्तति टकवाड़े रतनपुरा। महाई सन्तति टकवाड़े परिहार। देवदत्तापत्य-टकवाड़े पिलखवाड़। रविदत्तापत्य-टकवाड़े बहेड़ा। पाँखू सन्तति- टकवाड़े श्रीखण्ड। वसन्त रविकरादि-टकवाड़े श्रीखण्ड। हरि सन्तति टकवाड़े श्रीखण्ड। सुपनसारू सन्तति-टकवाड़े नरघोघ। हराई शुचिकरप्रीतिकरापत्य-टकवाड़े अकुसी हरिब्रह्म सन्तति-टकवाड़े पौराम। दामोदरापत्य-टकवाड़े बेहटा। उॅमापति सन्तति-टकवाड़े ततैल। एते टकवाल ग्राम।
अथ घुसौत मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: रतिकान्हापत्य-घुसौते पचही। रूचिकरापत्य-घुसौते नगवाड़। रूद सन्तति-घुसौते यमुथरि। रूचिकरापत्य घुसौते-गन्धराइनि। गणपति सन्तति-घुसौत घनिसमा। कृष्णपति सन्तति घुसौते खजुरी। पृथ्वीधरापत्य-घुसौते सकुरी। रूद्रचन्द्र सन्तति-घुसौते डीह एते घुसौत ग्रामाः।
अथ करम्बहा (करमहा) मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: इन्द्रनाथापत्य-करमहे कोइलख। सौरीनाथापत्य-करमहे दिगही। रामशर्मापत्य-करमहे ब्रह्मपुर। रतिकरापत्य- करमहे मझियाम बुद्धिकरैव। बुद्धिकर सन्तति कान्हापत्य-करमहे ककरौड़। हचलू सन्तति करमहे कनपोखरि। गणेश्वरापत्य-करमहे केउरहम। लान्हि सन्तति-करमहे गुरदी। सादू सन्तति-करमहे ककरौल। मांगू सन्तति सोन-करमहे कोइलखमछेटा समेत। मधुकापत्य-करमहे दोलमानपुर। लान्हि सन्तति गोढ़ि करमहे रौतानवासी। सदुपाध्याय रूचि सन्तति हरदत्तापत्य-करमहे धनकौली। नितिकरापत्य-करमहे वघाँत। नोने सन्तति करमहे बेला। सदु0 उपा0 गिरिश्वर सन्तति नरसिंहापत्य-करमहे नरूआड़। श्री वत्स सन्तति करमहे बेहट। सदु0उपा0 केशव सन्तति करमहे श्रीखण्ड। महो0 बराह सन्तति-करमहे तरौनी। रामापत्य-करमहे तरौनी। कान्ह श्रीधर सन्तति-तरौनी। रूघुदत्त रूचिदत्त सन्तति-करमहे रूचौली। सदु0उपा0 माधवापत्य-करमहे मझौरा। सदु0उपा0 रामापत्यगुणीश्वरापत्य-करमहे झंझारपुर। सदु0उपा0 भवेश्वरापत्य-करमहे अनलपुर। हरिवंशापत्य-करमहे मुजोनियाँ। शिववंशापत्य-करमहे रोहाड़। धूर्तराज म000 गोनू सन्तति-करमहे पिण्डोखरि। एते करमहा मूल।
अथ बुधवाल मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: रविकरापत्य-बुधवाले खड़रख सुरसर समेत। सुपे सन्तति-बुधवाड़े ब्रह्मपुर। रामचाण सन्तति-बुधवाड़े मझियाम। ढ़ोढ़े सन्तति-बुधवाले बेलसाम। डगरू सन्तति-बुधवाड़े सतलखा। कान्हापत्य- बुधवाले बेलसाम। दूवेहरिकर हरिनाथदामोदरापत्य-बुधवाले सकुरी। बुद्धिकर सन्तति-बुधवाले सकुरी। डालू सन्तति-बुधवाड़े ब्रह्मपुर। राम दिनू सन्तति- बुधवाड़े सुन्दरवाल। गंगादित्य सन्तति-विक्रम -सेरी। सदुपाध्याय भानु सुत गणेश्वरापत्य- बुधवाड़े परियाम। गुणीश्वरापत्य-बुधवाड़े उजान। कोने सन्तति-बुधवाड़े पिलखा। गंगेश्वरापत्य-बुधवाड़े मलिछाम। रूचिकर रतिकर सन्तति बुधवाड़े गंगोरा। महेश्वर सन्तति-बुधवाड़े फरहरा। गौरीश्वर सन्तति- मदिनपुर। विशो सुधाकर सन्तति-बुधवाड़े डुमरी। सूर्यकर सन्तति-बुधवाड़े सिउॅरी। ग्रहेश्वरापत्य-बुधवाड़े महिषी। भोगीश्वर सन्तति-बुधवाड़े चिलकौली। वासूबोधरामउदयकर बुधवाड़े आरी। पाँथे-बुधवाड़े मुठौली। कान्हापत्य-बुधवाड़े बुधवाल। जगन्नाथापत्य-बुधवाड़े सिंघिया। एते बुधवाल ग्राम।
अथ सकौना मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: वाटन सन्तति-सकौना सिंघिया। हरिश्वरापत्य-सकौना दिबड़ा। सोमेश्वरापत्य- बघाँत बानू सन्तति-सकौना डीहा। रतिगोपालदिनपति-सकौना तरौनी। रूद सन्तति जगन्नाथपुर। गुणे महिपति-सरिरभ। शुचिनाथापत्य-सकौना परसौ ग्राम। भासे सन्तति सकौना ततैल। एते सकौना मूल।
अथ तिसउॅत मूलग्राम बीजी: पण्डित सुपाई सन्तति-तरौनी। रघुपति सन्तति- तिसउॅत पतौना। जीउॅसर सन्तति-कुआ। एते तिसउॅत ग्राम।
अथ बभनियाम मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: जयकरापत्य सुधाकरापत्य- कड़राइनिमुराजपुर। गोनन सन्तति- बभनियाम कटमागंगोलीबैंकक समेत। किठो सन्तति बभनियामे कटमा। साठू सन्तति-विसाढ़ी दोलमानपुर। रूद सन्तति- गंगोली। कुशल गुनिया सन्तति-बभनियामे भटगामा जालय। एते बभनियाम ग्राम।
अथ फनन्दह मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: श्री करापत्य बथैया। कुसुमाकर मधुकरकिठो सन्तति-फनन्दह विट्ठोब्रह्मपुर। हाठूचाण सन्तति-फनन्दह बसौनीब्रह्मपुर। सुखानन्दगुणे सन्तति-फनन्दह गांग,सकुरी मतीश्वरपाँखू सन्तति-फनन्दह चोप्ता। शंकर सन्तति-फनन्दह खयरा। गोंढ़ि सन्तति- फनन्दह खनाम। महेश्वर सन्तति-डीहा। सोम गोम माधव केशव सन्तति-फनन्दह भटगामा। बिरेश्वरापत्य-फनन्दह सिंघवाड़ सिहुवार। लक्ष्मी सन्तति-फनन्दह सकुरी। भवाई रूद सन्तति-फनन्दह वोड़वाड़ी भदुआलदरिहरामुजौना समेत। एते फनन्दह ग्राम।
अथ अलय (अलयवाड़) मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: शंकरापत्य-अलय गोधनपुर सिंघिया समेत। श्री करापत्य अलय इजरा। हेलू सन्तति-अलयवाड़ सुखेत। मिश्र हरि देवधरापत्य-अलयवाड़ सिंघिया। वासू सन्तति-अलयवाड़ जरहटियावाढ़ वासी। रविशर्म्म सन्तति-अलयवाड़ जरहटिया। धारू सन्तति-बेहटा। सिरू सन्तति-अलयवाड़ धर्मडीहाकादिपुरा। गोविन्द सन्तति-अलयवाड़ बेहटा। महो गदाधर सन्तति-अलयवाड़ उसरौली। सोमदत्त सन्तति-उसरौली। परभूबुद्धिकर सन्तति- अलयवाड़ बैगनी। रत्नधर सन्तति-अलयवाड़ भट्टपुरा। शिवदत्त सन्तति-अलयवाड़ अजन्ता। मिश्र सुधाधरापत्यविश्वेश्वर मतीश्वर- अलयवाड़ उसरौली। लक्ष्मीधरापत्य हलधर सन्ततिगंगाधरापत्य-अलयवाड़ यमुगाम। शशिधररघुजादूजीवेश्वर सन्तति- अलयवाड़ अलय। मिश्र लाखू सन्तति अलयवाड़-भूड़ी। गणेश्वर सन्तति अलयवाड़ परमगढ़। सिधू सन्तति-अलयवाड़ बीरवन। दोर्दण्ड सन्तति-अलयवाड़ लोआम। जसाई सन्तति-अलयवाड़ डीहा। रूद सन्तति- अलयवाड़ खड़हर। रमाई सन्तति-अलयवाड़ राजे वासी। वेद सन्तति-अलयवाड़ मलंगियानान्यपुरअलइसिमरीरहुवा समेत गंगुआल बाथै राजपुर वासी। एते अलयी मूलग्राम।
अथ खौआल मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: श्रीकरापत्य-खौआड़े महनौरा। रतिकरसुधाकरहरिकर,चन्द्रकररूचिकरापत्या-खौआड़े महुवा। महिन्द्रपुर। स्थितिकरापत्य-खौआड़े महिन्द्रवाड़ दिवाकरापत्य-खौआड़े कोवोली। बाछेढ़ोढ़े वेणी सन्तति-खौआड़े रहुवा। उॅमापति सन्तति-खौआड़े नाहस। विश्वानाथापत्य- खौआड़े आहिल। बुद्धिनाथ रूचिनाथापत्य- खौआड़े खड़ीक। रघुनाथापत्य-खौआड़े द्वारम या दड़िमा। विष्णु सन्तति द्वारम। साधुकरापत्य-खौआड़े द्वारम। नारायण प्र0 नोने जगन्नाथापत्य-खौआड़े बुसवन राम मुरारी शुक सन्तति-खौआड़े पण्डोली। वाढ़ू सन्तति-ब्रह्मपुरतिरहट मोण्डु। हरानन्द सन्तति-खौआड़े अहियारी। भवादित्यापत्य- खौआड़े नाहसदेशुआल। भवे सन्तति- धर्मकरापत्य-देशुआल। डालू सन्तति-खौआड़े दड़िमा। दामोदरापत्य-तरहट ब्रह्मपुर। राजनापत्य-खौआड़े यमुआन। प्रीतिकरापत्य- खौआड़े पचाडीह (पचाढ़ी) पतौना खौआल दिवाकरापत्य-खौआड़े धुधुआ। भवादित्यापत्य-खौआड़े ककरौड़ खंगरैठा समेत। बैद्यनाथ प्रजाकारक रघुनाथ कामदेवापत्य-मौनीपरसौनी। गोपालापत्यकृष्णापत्य-कुमरबेलई। शशिधरापत्यनरसिंहापत्यदामोदरापत्य-बोड़बाड़ीकोकडीह। नयादित्यापत्य-खौआड़े बिजोली। द्वारि सन्तति जयादित्यपत्य-खौआड़े सुखेतसर्वसीमा। शुचिकरापत्यजिवेश्वरापत्य- खौआड़े दिगौन। आङू सन्तति रघुनाथापत्य- खौआड़े मुराजपुरब्रह्मपुर। भवे सन्तति-खौआड़े भिट्ठी सतेढ़ बेहटा। दूवे सन्तति ब्रह्मपुर हेलू रविकर सन्तति-सतेढ़। प्रसाद मधुकर सन्तति,गंगादित्यपत्य-खौआड़े बेहटा। दिवाकरापत्य-खौआड़े पिथनपुरा। गंगेश्वरापत्य-खौआड़े कुरमालोहपुर। लम्बोदर सन्तति-कुरूमा। नादू सन्तति दिपनपुरा। राजपण्डित सह कुरूमा रामकर सन्तति भिट्ठी खंगरैठा। आंगनि सन्तति खौआड़े सौराठ। मतिगहाईकेउॅट सन्तति-खौआड़े सिमरवाड़-एते खौआल ग्राम।
अथ संकराढ़ी (सकड़िवाड़) मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: प्रत्येक मूलग्राम संगे मूल जोड़ि कें देखल जाए। एहि तरहें पूर्व लिखल मूल ओ बादक लिखल मूल देखब जाहि सँ हम लेखकीय सुविधा पाबि सकी ओ पुनरूक्ति दोष नहि हो।
महामहो कारू सन्तति-जगद्धरगोविन्द-सकड़िवाड़ सकुरी। प्रीतिकर सन्तति-कदिगामा। शुभे सन्तति-अलय। महामहो हरिहरापत्य-सुन्दरौलीगोपालपुर। जयादित्यापत्य-भलुनीसराबय। परमेश्वर सन्तति-सकड़िवाड़ नेयाम। सदुपा0 सुपे सन्तति-हरड़ी। रामधरापत्य-अलय। हरिशर्म्म सन्तति-सिधम मुरहद्दी। रेकोरा सकराढ़ी- होरे चाँड़ो सकड़िवाड़ परहट। सोम-गोम शक्तिरायपुर। हरिश्वर-सकराढ़ी वासी। जीवेश्वरापत्य-बेला। उधगाँव। गयन-द्वारिकादि सन्तति-सकड़िवाड़ हरड़ी। धनेश्वर सन्तति-कनाइनमझिायामलोहना समेत। लाखू सन्तति-कनाइन। चाण सन्तति-रतिश्वर छामू वासी। रामकरकृष्णकर सन्तति-थूगामा वासी। भोगे सन्तति शंकर गुदे-दिबड़ा। दूवे सन्तति-जरहटिया। देवेगोंढ़े-रहड़ा। गोढ़नचाण-सरिसव वासी। पुरोहित गोपाल सन्तति-सारू बरूआर। सखवाड़। श्रीकर सन्तति-पैकटोल। गौरीशंकर सन्तति-तेकुना। मिश्र भगव सन्तति-पुरामनिहरा। चक्रेश्वर सन्तति हरि- सकड़वाड़ दहुराकठहड़ा वासी। देहरिसोम सन्तति-सकड़िवाड़ ततैल। सान्हि सन्तति- गोधनपुर। रताई देवे सन्तति कादिकापुर गोना सकराढ़ी-चितिकरापत्य। आंगा वासी मझियाम समेत। बुधौरा सकराढ़ीदूवा सकराढ़ी वरगामा सकराढ़ी। एते संकरवाड़ मूलग्राम।
अथ दरिहरा मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: त्रिपुरारी सन्तति-दरिहरे सिंहाश्रम। हरिकरबुद्धिकर रूपनादि सन्तति दरिहरा विजनपुर। यशस्पति गणपति सन्तति भड़ेली दरिहरा। गुणपति सन्तति-दरिहरा पठौंगी। विद्यापति पुण्डरीक-दरिहरा मछदी। केशव सन्तति-दरिहरा अमरावती। सिरू सन्तति-दरिहरा कुरूम। सोने सन्तति-दरिहरा भौआल। शिव सन्तति-दरिहरा यमुगाम। गुणाकरùकर सन्तति-दरिहरा मधुकरपट्टो। प्रज्ञाकरापत्य कुसुमाकर-दरिहरा बड़गाम। मित्रकरापत्य- दरिहरा जरहटिया। प्रसाद गौरीश्वरापत्य- दरिहरा भरौड़ा,सन्दवाल समेत। दिवाकरापत्य-दरिहरा अलय। दिनकरापत्य- दरिहरा सोनतौला। रतिशर्म्मापत्य-दरिहरा सकुरी। भवशर्मापत्य-दरिहरा ब्रह्मपुर। धराधर-जटाधरापत्य-दरिहरा ब्रह्मपुर। शशिधरापत्य-दरिहरा पनिहारी। बाबूगोग सन्तति-दरिहरा तरहट। गोविन्दकान्ह सन्तति-दरिहरे पचही। नारू सन्तति-दरिहरे यशराजपुर। वाढ़ू सन्तति-दरिहरे ब्रह्मपुर। इन्द्रपति सन्तति-दरिहरे हरिनगर। आग्नेय। झोंट पाली दरिहरा सिमरी सॅ कोइलख। विश्वनाथापत्य-दरिहरा महिसान कोइलख समेत। विधुपति सन्तति-तत्रैव। होरे सन्तति डढ़ार वासी। गांगू सन्तति-दरिहरा कछरा। रघुपति सन्तति-दरिहरा कठड़ा। कान्ह सन्तति-दरिहरा कटैया। जाटू सन्तति- दरिहरा हदहरा। कृष्णपति गुणीश्वर सन्तति- दरिहरा फूलमती। सुन्दर गांगू तत्रैव। मतीश्वरापत्य सुन्दर अलयी समेत। सुरपति-दरिहरा अलयीगोलहटी समेत। गिरीश्वरापत्य-दरिहरे उड़िसम। पण्डोली दरिहरा हरिकर सन्तति-दरिहरा सिंहौली। शंकर प्रसिद्ध गोंढ़े सन्तति-दरिहरा नवहथ। कान्हापत्य-दरिहरा नवहथ। पामो सन्तति- दरिहरा चिलकौरी। भादू सन्तति-दरिहरा ततैल। तेतरिया सिमराकनसम। गोंढ़ि सन्तति-दरिहरा बढ़ियाम। सुपन सन्तति- दरिहरा गांगू भिट्ठी। विशौ सन्तति तत्रैव। हिम सावे सन्तति-दरिहरा दिघिया। धीरेश्वर सन्तति-दरिहरा तारडीह। जलकौर दरिहरा- मिश्र कान्हा सन्तति-दरिहरे मतौना। गंगेश्वर सन्तति मिश्र दुर्गादित्यापत्य-दरिहरा चदुआल। देवधरापत्य-दरिहरा कुड़मा। अग्निहोत्रिक म000 हरि सन्तति-दरिहरे नेतवाड़। नारू सुत रूचि सन्तति-दरिहरे महुआन। विभाकरापत्य-दरिहरे सिंघिया। प्रभाकर सुत युधे सन्तति-दरिहरा परसा। नोने सन्तति-दरिहरे जगुआल। नारू सुत वाढ़ू प्रभृतयः-दरिहरा अन्दोली। गोंढ़ि सन्तति-दरिहरा धनकौली। मिश्र हरि सुत चण्डेश्वर-चण्डग्राम (चण्डगामा)। नारायण सन्तति-दरिहरे नुने। मिश्र मतिकरा सन्तति- दरिहरा बधोली। धामू सन्तति-दरिहरा पौआरी। शूलपाणि सन्तति-दरिहरे रतौली। नीलकंठ सन्तति-दरिहरा पोखरिया। रूपन सन्तति-दरिहरे रतौली। खाँतर सन्तति- दरिहरे बड़गाम। वासू सन्तति-दरिहरे वासी। विरेश्वर प्र0 मुनी दिवाकरापत्य-दरिहरे राजनपुरा सरिसव समेत। गुणाकर सन्तति- दरिहरे सिठिवाल। हरिकर-दरिहरे जरहटिया ततैल समेत। ब्रह्मेश्वरापत्य रत्नाकरापत्य- दरिहरे पंचारी। विश्वरूप सन्तति-दरिहरे पनिहारी। शूलपाणि भ्राता नीलकंठ सन्तति- दरिहरे वो (चे0) थरिया। रूपन सुत भोगे गिरी-रतौली। यवेश्वर-दरिहरा जरहटिया। ब्रह्मेश्वर तत्रैव। एते दरिहरा ग्राम।
अथ माण्डर (मड़रे) मूल अन्तर्गत मूलाग्राम बीजी: गढ़माण्डर कामेश्वरापत्य जीवे सन्तति-मड़रैवथमा। महत्तकजोर सन्तति-मड़रै बघाँत। सदु उपा0 भवादित्यापत्य-मड़रै कनाइनमुठौली समेत। दिवाकरापत्य-मड़रै जोंकीमटिझमना समेत। हरदत्त सन्तति म0 खनतिया। गुणाकर जयकर तत्रैव। माधवापत्य-म0 अरड़िया। रतिडालू सन्तति-मड़रै भौआलदोलमानपुरबेंगुडीहा समेत। खांतू ठाकुर सर्वाइ केउॅट सन्तति- म0 भौआल। गदाई सन्तति-म0 दोलमानपुर। केशवापत्य-मड़रै असमाँ। कान्हापत्य-मड़रै असमाँ। सुपे विभू सन्तति-कटमा। विभू भानुकर सन्तति-मड़रै पिलखा। कविराज शुभकरापत्य-मड़रै कटमा। बागीश्वरापत्य- भड़रै महिषी गांगे। रूपधरापत्य-मड़रै मंगरौनी। रविदत्तापत्य विशो-मड़रै देउरी। हरिकर सन्तति-मड़रै विजहरा। खाँतू सन्तति-म0जरहटिया। हरि सन्तति-मड़रै मंगरौना। होरे सन्तति मड़रै केउॅटगामा। सुधाकर सन्तति-मड़रै वारी। प्रसाद शुभंकर सन्तति-मड़रै मंगरौनी। पशुपति सन्तति गुणपति-मड़रै ओकी। म0 शिवपति महो इन्द्रपति सन्तति-मड़रै रजौरा। कृष्णपति सन्तति-मड़रै पतौनी। रघुपति सन्तति-मड़रै जगौर। प्रज्ञाकर सन्तति-मड़रै अमरावती। छीतर सन्तति-मड़रै जगौर। आंगनि सन्तति कुलपति-मड़रै कटैया। नरपति सन्तति-मड़रै दहुला (दहौरा)। रविपति सन्तति-मड़रै कटका। महादेव सन्तति-मड़रै श्रीखण्ड (सिरखड़िया)। रतिपति सन्तति-माण्डर (मड़रै) सिंहौली। दूवे सन्तति मड़रै दुवौली पाँखू सन्तति-मड़रै बिठुआल। धनपति सन्तति-माण्डर (मड़रै) सरहद। विधुपति सन्तति मड़रै पतनुका। सुरपतिरतन सन्तति-मड़रै कनसम। सोम सन्तति-मड़रै बेहटा। भवै महेश सन्तति-मड़रै कटैया। गुणीश्वरापत्य-मड़रै कटाई। पिताम्बरापत्य- मड़रै जजुआल। देवनाथापत्य मिश्र नन्दी सन्तति-माण्डर बेहटा। जीवेश्वरापत्य-मड़रै उरामसिंगोई ननौरा दुगाईतेतरिहारनगाई- कोइलख। बागीश्वरापत्य-मड़रै सकुरी। रूचिकरापत्य शिरू-मड़रै जरहटियासकुरी। लक्ष्मीकान्तापत्य-म0 त्रिपुरौली। हरिकान्तापत्य-मड़रै दहिला। उमाकान्तापत्य -म0 ब्रह्मपुर। सुगन्ध सन्तति-मड़रै कनसी। महेश्वरापत्य-मड़रै मझौली। गुणेमिश्रापत्य थुवे-मड़रै खड़िका। सौरिमिश्रापत्य-म0 ब्रह्मपुर। गयन मिश्र वीर मिश्रापत्य-मड़रै वारीसकुरी। हरिशर्म्मापत्य सुधाकरादि- मड़रै मृगस्थली। थेघ मिश्रापत्य-म0 अन्दोली। सुरेश्वरापत्य ग्रहेश्वरापत्य-मड़रै कटउना। हरि मिश्रापत्य-मड़रै कटउना। ऋषि मिश्रापत्य-मड़रै बेलौंचा(जा)। यति मिश्रापत्य-म0 कटउना। कीर्ति मिश्रापत्य मतीश्वरापत्य-म0गोआरी। गिरीश्वरापत्य- मड़रै मिसरौली। होरे मिश्रापत्य-म0 खयरा। बाछे मिश्रापत्य-मड़रै हर्षोली। हेलन,नरदेव- मड़रै नैषधिया। शिवाई सन्तति-मड़रै बलियारघयपुरा। सर्वानन्ददलवय सन्तति-म0 सकुरी,असगन्धी। चन्द्रकरापत्य-म0 कोवड़ा। कुलधररामकरापत्य-मड़रै दिप्तीवेतावाड़ी। चोथू-मोथू सन्तति-मड़रै परिहारपुर गोआरी समेत। गोपाल सज्जन सन्तति-मड़रै ब्रह्मपुरजगतपुर। मित्रकरापत्यरूपनापत्य-मड़रै महिषीसकुरी। सुथवय सन्तति-मड़रै कनपोखरिजहरौनी(ली) रतिधरशुभे कनपोखरितरौनी। हरि सन्तति-मड़रै निकासीयमुगाम। एते माण्डर (मड़रै) मूलग्रामाः।
अथ बलियास मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: भिखेचुन्नीनितिकरापत्य- बलियासम जालय। दुबे-सन्तति-बलियास सकुरी। सुरानन्द सन्तति-बलियास बैकक। रति सन्तति-बलियास खड़का। शिवादित्यापत्य-बलियास मुराजपुरओगाहीयमुथरि। शुभकरापत्य-बलियास ततैलकुमरौनी नन्दी सन्तति-बलियास भौआलअलय सतलखा। सुधाकरापत्य-बलियास जरहटिया। रामशर्मापत्य जाटू-बलियास घरौरा। केशव सन्तति-बलियास यमसम। शक्तिश्रीधर सन्तति नारायण-बलियास सिमरीजालयखड़का। महनू सन्तति- बलियास माड़रि। शिरू सन्तति-बलियास विसाढ़ी। रूद्रादित्यापत्य-बलियास बिठौली। रूचि सन्तति उदयकरापत्य-बलियामय नरसाम। एते बलियास ग्राम।
अथ सतलखा मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: गुणाकर सन्तति-सतलखे डोकहर। विभू सन्तति भाष्करापत्य दिवाकरापत्य- सतलखा सतौली। चन्द्रकरापत्य-सतलखा कजौली। शंकरापत्य सतलखे सतालखा। लोहटापत्य,नन्दीश्वरापत्यजीवेश्वरापत्य- सतलखा कछरा। एते सतलखा मूलग्राम।
अथ एकहरा मूल अन्तर्गत मूलाग्राम बीजी: श्रीकर सन्तति-एकहरे तोड़नय। जादू सन्तति-एकहरा सरहद। शुभे सन्तति-एकहरा मैनी। सोन सन्तति-एकहरा मण्डनपुरा। लक्ष्मीकरापत्य-एकहरा संग्राम। रूद्र सन्तति-एकहरा आसी। गढ़कू सन्तति- एकहरा कसरउढ़। वाटू सन्तति-एकहरा सिंघाड़ी। थीते सन्तति-एकहरा खड़का मिते सन्तति-एकहरा कन्हौली। गणपति सन्तति- एकहरा पतौना। जाने सन्तति-एकहरा ओड़ा। कोचे सन्तति-एकहरा रूचौली। शुचिकरापत्य-एकहरा मुराजपुर। धाम सन्तति-एकहरा नरौछजमालपुर। चित्रेश्वरापत्य-एकहरा नरौछ। एते एकहरा मूलग्राम।
अथ विल्वपंचक (बेलउँच) मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: धर्मादित्यापत्य- बेलउँचे सिसौनी। रामदत्त हरदत्त नोनादित्या सन्तति-बेलउॅच रतिपाड़। सुधे सन्तति-बेलउॅच सुदय। शीरू सन्तति-बेलउॅच द्वारम। गयादित्यापत्य- बेलउॅच ओगही। महादित्य सन्तति-बेलउॅच कर्मपुरबछौनी समेत। जीवादित्य सन्तति-बेलउॅच उजान। रूद्रादित्य सन्तति-बेलउॅच दिपसुदय। सर्वादित्य सन्तति-बेलउॅच तरियाड़ी। देवादित्य सन्तति -बेलउॅच ब्रह्मपुर। रत्नादित्य सन्तति-बेलउॅच काको। मित्रादित्यापत्य-नारू सन्तति- बेलउॅच काको। बासू सन्तति-बेलउॅच देवरिया। प्राणादित्यपत्य-बेलउॅच हरि गयन सन्तति-बेलउॅच कन्होली। सुपे सन्तति- बेलउॅच कोलहट्टा। रूद्रादित्यापत्य-बेलउॅच ओझोली। केउटूँ सन्तति-बेलउॅच सकुरी। महथू सन्तति-बेलउॅच सकुरी। चावे सन्तति- बेलउॅच सतलखा। गढ़बेलउॅच नोने विभू सन्तति-बेलउॅच सिंघिया। सुपन सन्तति-बेलउॅच कुनौली। कौशिक सन्तति- बेलउॅच कुसौली। लक्ष्मीपाणि सन्तति-बेलउॅच सुशारी। पाँथू सन्तति-बेलउॅच देयरही। एते बेलउॅच मूलग्राम।
अथ नरउन मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: बेलमोहन नरउन जटाधरापत्य मदनपुर। रातू सन्तति-नरउन करियन। गर्वेश्वरापत्य-नरउन सिंघिया। डालू सन्तति- रूचिकर नरउन मलिछाम। चन्द्रकर तुने सन्तति-नरउन सुल्हनी। विशो सन्तति- नरउन त्रिपुरौली। हेलू सन्तति-नरउन भखरौली। दिवाकरापत्य-नरउन सुरसरकवई। दिनकरापत्य-नरउन पुड़े। खाँतू कोने-नरउन वत्सवाल। शक्तिरायपुर नरउन- दामोदरापत्य-नरउन जरहटिया। मुरारी सन्तति-नरउन तेघरा। योगीश्वरापत्य-नरउन ओझोली कसियाम। जगद्धरापत्य-नरउन वोड़ियाल। चक्रेश्वरापत्य-नरउन शक्तिरायपुर। नोने सन्तति-नरउन मलंगियाकरहियापचरूखी। होरे सन्तति-नरउन नयगामा भखरौली समेत। एते नरउन मूलग्राम।
अथ पनिचोभ मूल अन्तर्गत मूलग्राम बीजी: मधुकरापत्य पनिचोभ तरौनीझौवापद्मपुर समेत। शिवपति गुणीश्वरापत्य- पनिचोभ सुल्हनी। विशो रातू प्र0 रत्नाकर सन्तति-पनिचोभ अमौ (सौ)नी। भवेश्वरापत्य- पनिचोभ मैलाम। जोन सन्तति-पनिचोभ आहिल। यशु अदितू सन्तति-पनिचोभ आहिल। बाबू पाठकादि-पनिचोभ मैलाम,कटउनाविस्फी समेत। कामेश्वरापत्य- पनिचोभ पौनीगन्दियाल। देहरि सन्तति- पनिचोभ कनौड़ीतरौनी। लान्हू सन्तति- पनिचोभ उल्लू। जगन्नाथापत्य हरदत्त- पनिचोभ खड़काबगड़ाबयना समेत। आंगनि सुत पद्मादित्यापत्य-पनिचोभ मंगनीश्रीखण्डमहालठीलोहीचकरहदकर्णमानतनकी समेत। हरिनाथापत्य-पनिचोभ मखनाहाकंजोली समेत। चण्डेश्वरापत्य हरिवंश सुत रत्नाकरापत्य-पनिचोभ बथैया। चक्रेश्वरापत्य -पनिचोभ कुरसौ। वाटू सन्तति-पनिचोभ चक्रहद सिउली वासी। बिरपुर पनिचोभ रातू सन्तति-पनिचोभ सुन्दरवाल। हारू सन्तति- पनिचोभ करियन। वास्त सन्तति-पनिचोभ भिट्ठी। महेश्वरापत्य-पनिचोभ देशुआल। दिनकरमधुकरापत्य-पनिचोभ जरहटिया। रामेश्वर सन्तति चन्द्रकरापत्य-पनिचोभ अलदाश। वीर सन्तति केशवापत्य-भटौरशहजादपुरबलिया समेत। वासुदेव सन्तति- पनिचोभ ददरी। सोने सन्तति-पनिचोभ ब्रह्मोली। धरादित्य प्रसाद धराई सन्तति- पनिचोभ अमरावती। रत्नाकर प्र0 रातू सन्तति- पनिचोभ करहियाउसरौली,आदित्यडीह। हरिश्वरापत्य-पनिचोभ डीहा। सोमेश्वरापत्य- पनिचोभ बघाँतडीहा। रघु सन्तति-पनिचोभ रभिपुर डीहा। रवि गोपाल सन्तति-पनिचोभ तरौनी। हरिशर्म्मापत्य-पनिचोभ महुवा। वाटनापत्य-पनिचोभ तरौनीबैगनी। रूचिशर्मा जगन्नाथापत्य-पनिचोभ मटिरम। शुचिनाथापत्य-पनिचोभ ततैल। शशिधर सन्तति-पनिचोभ ब्रह्मपुर,नेहरा। भवनाथापत्य -पनिचोभ पुरुषौली। देवादित्यापत्य-पनिचोभ पुरुषौली। एते पनिचोभ ग्राम।
अथ कुजौली मूल अन्तर्गत मूलाग्राम बीजी: गोपाल सन्तति हरिहरयशोधर- कुजिलवाड़ बेहटा। सूपन,नाथूपाँथू लक्ष्मीकर सन्तति-कुजिलवाड़ भखरौली। जीवे जोर सन्तति कुजिलवाड़ मलंगिया। मेधाकर सन्तति -बनकुजौली। रातू सन्तति-कुजिलवाड़ सिझुनाथ कन्धराइन। सुरपति सन्तति- कुजिलवाड़ बड़साम। गणपति सन्तति- कुजिलवाड़ दिगउन। लक्ष्मीपति-कुजिलवाड़ महिन्द्रवाड़। चन्द्रेश्वरहरि-कुजिलवाड़ दिगओन। सोने सन्तति-कुजिलवाड़ लोआममहोखरि। विष्णुकर सन्तति-कुजिलवाड़ परसौनी। रूपन सन्तति-कुजिलवाड़ कन्धराइन। सोंसे सन्तति-कुजिलवाड़ लोआम। राजू सन्तति-सुधाकर-कुजिलवाड़ सरावय। लक्ष्मीकर सुत प्रज्ञाकर अमृतकर- कुजिलवाड़ बेजौली। देवादित्यापत्य- कुजिलवाड़ दिसौड़ी। चन्द्रकरापत्य- कुजिलवाड़ खयरा। गिरिपति सन्तति- कुजिलवाड़ चन्द्रदिया। विधुकर सन्तति- कुजिलवाड़ मंगरौनी। हरिकर तत्रैव। सोम सन्तति-कुजिलवाड़ कथहर। गांगू सन्तति- कुजिलवाड़ थाहर। शशिकर सन्तति- कुजिलवाड़ डुमरालहना। प्रीतिकर सन्तति- कुजिलवाड़ बेल्हवाड़। वेद सन्तति-कुजिलवाड़ डीह कुजौली। विरेश्वर सन्तति-कुजिलवाड़ रूदनिगाम। भवे सन्तति-कुजिलवाड़ बैककमल्दडीहा। परान सन्तति-कुजिलवाड़ नेयाम। एते कुजौली मूलग्राम।
उपरोक्त प्रकारें बुझल जाए जे कोनहु मूलक उपशाखा मूलक बीजी सँ कतैक नीचां आबि पृथक भेल ओ भिन्न-भिन्न मूलक तत्कालीन शाखा कोन ग्राम मे वास कए रहल छलाह। एहि सँ कोनहुं गामक प्राचीनताक बोध होइत अछि। मूलक नामकरण मात्र मिथिलेक ग्रामक आधार पर नहिं अछि। एहि मे मध्य भारतक गाम सभ सेहो चर्चित अछि। यथा खण्डवला = खण्डवावाला = खड़ोरय। खण्डवला मूलक प्राचीन संज्ञा गंगोली (गंगुलवार) थीक। परंच जखन म000 शंकर्षण ठाकुर अपन शिक्षणशाला खण्डवा प्रान्त सम्प्रति मध्य प्रदेश मे पा्ररंभ कएलैन्हि तँ ओ स्वयं आ हुनक संतति लोकनि दीर्घकाल धरि ओतहि वास कएल ओ एखनहु हुनकर किछु अपत्यापत्य लोकनि ओतहि ठाकुर आस्पद सँ चिन्हल जाइत छथि। परंच शंकर्षण ठाकुरक आठम पीढ़ी मे ठ0 सुरपति मिथिला मध्य आबि बसलाह। ओ हुनक सन्तान खण्डवला (खड़ौरय) मूलक घोषित भेलाह। एहि तरहें बहुत मूलक इतिहास अछि। मूलग्रामक रूप मे मधुबनीसीतामढ़ीबैशालीदरभंगामुजफ्फरपुरसहरसा,सुपौलमुंगेरप्राचीन पूर्णियाक कतिपय गाँव चर्चित अछि। एकर अतिरिक्त परवर्तीकाल मे जखन भिन्न-भिन्न मूल ओ भिन्न-भिन्न मूलग्रामक बीच उच्चता-न्यूनताक विचार प्रसारित कएल गेल तँ एक नवशब्द डेरा सेहो चर्चा मे आएलजे अमुक-अमुक मूल ओ अमुक-अमुक मूलग्राम मे किछु कथित विशिष्ट घरक उल्लेख कए तकरा श्रेष्ठ डेरा कहल गेल। बिना कोनो बौद्धिक आधारक सहयोग लेने। मिथिला मे गोलैसी (गुट) शब्द व्यवहार मे आएल अछि। छोट-छोट तात्कालिक व्यवहारक मौखिक उल्लेख कए कहय जाए लागल जे अमुक-अमुक डेरा तकर पालन करइत छथि तँ ओ श्रेष्ठ भेलाह ओ बांकी ओहि वंशक न्यून कहल जाए लगलाह ओ स्थिति जातीय एकताक हेतु विनाशक सिद्ध भेल। तत्कालीन समाज किछु अदुरन्देशी अव्यावहारिक विद्वानक मुखापेक्षी भए दिग्भ्रमित होएत रहलतकर अवशेष एखनहु गाम-गाम मे देखना जाइछ। पंजी प्रबन्धक उद्देश्य से नहिं छल आ एहनो सोच पंजी प्रबन्धक नहिं छल जे एकर उपयोग समाज कें बाँटवा लेल कएल जाएअपितुव्यापक ओ महती अभिज्ञान जोगौने आबि रहल अछि पंजीक पुस्तक ओ वंशक परिचयक रक्षक संवर्द्धक ओ उन्नायक थिकाह आंगुर पर गिनल जाए वाला पंजीकार। पंजीक पुस्तक मे उल्लेख कएल जाइत अछि- आनुवंशीक इतिहाससमय-समय पर कएल गेल स्थान परिवर्त्तनकवंशक शैक्षणिक स्थितिकवंश मे आएल गुण-दोषक। प्रत्येक नारी ओ पुरुषक विवाहक। समय-समय पर प्रचलित शैक्षणिक उपाधि ओ सभसँ महत्त्वपूर्ण बात जे पुरुष प्रधान समाज मे नारीक नामोल्लेख विस्मृत भए जाएत अछि से पंजी प्रबन्ध पीढ़ी सँ पीढ़ी धरि नारी नामक उल्लेख कएने जाइत अछि। नारी नामक चर्च करइत मोन पड़ैत छथि परम बिदुषी धर्मशास्त्रक व्याख्यात्री अलौकिक प्रतिभासम्पन्न ओ ओजस्वी वक्तृताक अधिकारिणी ठकुराइन लखिमा। ठकुराइन कहने हुनका ठाकुर आस्पदधारी नहिं बुझि एहि अर्थ मे लेल जाए जे शास्त्रोक्त वचन उचित समय पर युक्ति-युक्त कहबाक प्रतिभा जनिका मे हो से महिला। आ 13, 14म शताब्दी अर्थात् हुनकर जीवनकाल (महाराज हरिसिंहदेवक शासनकाल) मे सेहो कहल जाइल छल। पंजी प्रबन्ध ओ पंजीकार रूपी संस्थाक गठन मे हुनकर यथेष्ट योगदान छलैन्हि। कुमारिल भट्टक (सातम शताब्दी) समय मे प्रचलित पंजी प्रबंधक पूर्व स्वरूप समूह लेख्य प्रथाक जखन हृास भए रहल छल आ परिचयक अभाव मे अनेकों विवाह मनु याज्ञवल्क्यक निर्देशक विरूद्ध भेल तऽ धर्मपालनक चिन्ता ब्राह्मण मध्य पसरल। विवाह कोन कान्या सँ करी आ कोन कान्या सँ निषेध हो एहि लेल वंश परिचयक आवश्यकता छल। समाजक विद्वत वर्ग चिन्तन कए सकैत छी जे 13, 14म शताब्दी मे भारतक शासक वंश मे जे परिवर्त्तन आएल से छल सनातन बिरोधी शासक वंश। समस्त हिन्दू जनता धर्मरक्षाक चिन्ता मे त्राहिमाम कए रहल छल पूरा समाज विश्रृंखल भऽ रहल छल। सनातन धर्मावलम्बी यत्र तत्र पलायन कऽ रहल छलाह। मिथिलाक महान शासक ओइनिवार वंशक महाराज शिवसिंहक शासन सँ पूर्वहिक वार्ता थीकजे बिदूषी लखिमा प्राचीन पूर्णियाक श्रीपुर परगन्नाक दरिहरा मूलक मताओन शाखाक रति मिश्रक पुत्री अलयवाड़ बैगनी मूलक म00 रामेश्वर जे बनैली राजवंशक पूर्व पुरुषा छलाह तनिक धर्मपरायणा पत्नी पंजीक वर्त्तमान स्वरूप मे अनवा मे वैचारिक ओ सक्रिय सहयोग प्रदान कएलैन्हि ओ पण्डुआ महिन्द्रपुर मूलक सदुपाध्याय गुणाकर जे हमर उन्नीसम पीढ़ीक पुरुषा रहैथि आ स्वेच्छया आनुवंशिक रूपें ब्राह्मणादि वर्गक परिचय संग्रहण मे लागल छलाह तिनकर अन्वेषण कए महाराज हरिसिंहदेव (कार्णाट वंश) सँ राज्यादेश कराए पंजीकार नियुक्त करवौलन्हि से एकटा भिन्ने इतिहास थीक। तकर सविस्तार चर्चा हम अपन आन पुस्तक मे करब।
पंजी प्रबन्ध भारत वर्ष भरि मे मिथिलाक गौरव पताका थीक। प्रमाणस्वरूप हम कहि सकैत छी जे महर्षि मनु महर्षि याज्ञवल्क्यशातातपलिखितशंख नारद प्रभृति धर्मविचारक लोकनि जे जनकल्याणक हेतु श्रेष्ठतम श्रृष्टि पर विचार कएलैन्हि चिन्तन कएलैन्हि आ एहि निष्कर्ष पर पहुँचलाह जे विवाहक हेतु युग्मक चयन कोन रूपें हो तकर निर्देश कएलैन्हि से अग्रलिखित अछि-
प्रथम निर्देश ‘‘मातृतः पंचमी त्यक्त्वा पितृतः सप्तमी त्यजेत्।’’ (परवर्तीकाल मे भजेत्) अर्थात कोनो कन्या जाहि व्यक्ति सँ पाँचम पीढ़ी धरि पड़ैत हो से व्यक्ति वरक मातृ पक्ष मे नहिं पबैत हो तथा जाहि व्यक्ति सँ सातम पिढ़ी धरि पड़ैत हो से बरक पितृ पक्षक व्यक्ति नहिं। परंच एकर बाध मे ई वचन राखल गेल जे वरक मातृ पक्ष आ पितृ पक्षक सीमा अनन्त नहिं हो ताहि हेतु वचन आएल-‘‘पंचमात् सप्तमात् उर्ध्वं मातृतः पितृतस्तथा। सपिण्डता निवर्तेत सर्व वर्णेष्वयं विधिः।’’ अर्थात वरक मातृ सपिण्डता पाँच पीढ़ी धरि ओ पितृ सपिण्डता सात पीढ़ी धरि।
एहि तरहें हम देखैत छी जे असपिण्डा कन्या विवाहक हेतु अनुमोदित होइत छथि। जीवविज्ञान मे गुण सूत्रक सिद्धान्त ;ज्ीमवतल व िब्ीतवउवेवउेद्ध एहि रूपक अछि।
द्वितीय निर्देश: कन्या-वरक गोत्र एक नहिं हो अर्थात समगोत्र नहिं हो।
तृतीय निर्देश: कन्या-वरक प्रवर एक नहिं हो अर्थात समान गुरुकुलक शिष्य वर्ग मे नहिं पड़ैत हो। तँय वत्स गोत्र ओ सावर्ण गोत्र मध्य विवाह सम्बन्ध निषेध होइत अछि। कारण दूनूक प्रवर एकहि थिकाह।
चतुर्थ निर्देश: काष्ठ मातुल (कठ मामक) सन्तान नहिं हो। अर्थात वरक विमाताक (सतमायक) भायक सन्तान कन्या नहिं हो।
पाँचम निर्देश दोहराओल गेल अछि जे मातृ सपिण्ड मे कन्या नहिं होसे जखने मातृ सपिण्ड विचार प्रथम निर्देश मे भऽ गेल तऽ ई नियम अनुपयुक्त अछि। परवर्तीकाल मे किछु आन-आन कारण सँ पंजीकार मुखापेक्षी भए अनुचित व्याख्या दए चलवैत रहलाह जे मातृ सपिण्ड सात पिढ़ी धरिएहन वचन धर्मशास्त्र मे कतहु नहिं अछि। पंचमात् उर्ध्व मातृ सपिण्डताक निवृतिक सूचना स्पष्ट प्राप्त अछि।
उपरोक्त सभटा निर्देश समस्त ब्राह्मण (पंच गौड़ पंच द्रविड़) लेल छल। एहि हेतु पिढ़ीक गणना ओ मातृ पक्ष ओ पितृ पक्षक विवाहक विवरण प्राप्त होएब आवश्यक। एहि कार्य मे मात्र मैथिल ब्राह्मण सक्षम भेलाह ओ अद्यावधि पालन कए रहल छथि सहस्त्र वर्ष व्यतीत भेल। लिखित रूपें कोनो जातिगत व्यवस्था आन कोनो समाज मे एतेक सुदीर्घकाल सँ नहिं प्राप्त होएत अछि-सरिपहुँ ई गौरवक विषय थीक सबंधित समाज एहि इतिहास कें वर्त्तमानक संगे भविष्यहुक हेतु सुरक्षित ओ संवर्द्धित करवाक चेष्टा करथु। अवसर उपलब्ध अछि,भावी पीढ़ी इतिहास नष्ट करवाक कलंक नहिं लगाबथि। आब तऽ परिचय संग्रह करवाक हेतु अनेक माध्यम उपलब्ध अछि।
अन्य दोसर प्रकरण: जेना पूर्वहिं कहि अएलहुँ आ इतिहासप्रेमी समाज एहि तथ्य सँ अनभिज्ञ नहिं होएताह जे तेरहम शताब्दीक उपरान्त मिथिला मे सनातन धर्मावलम्बी समाज पर उत्तरोत्तर प्रताड़ना बढ़िते गेल आ वलात धर्मान्तरण समाज कें घोर निराशा मे धकेल देलक। ब्राह्मणक मूल प्रकृति थीक धर्म शास्त्रक चिन्तन करब ओ भावी पिढ़ीक हेतु धार्मिक वाङ्गमयक विस्तारण करब। पुनर्लिपिकरण कार्य बाधित होबऽ लागल। कोनहु प्रकारक राजकीय संरक्षण विद्वत वर्ग कें नहिं रहि गेलेन्हि तँय ओ लोकनि केन्द्रीय मिथिला कें त्यागि मिथिलाक परिधि मे यत्र-तत्रवर्त्तमान उत्तराखण्ड राज्यक गढ़वाल क्षेत्र मेमध्य भारतक क्षेत्र मेराजपूताना मे,ब्रज क्षेत्र मेबंग प्रान्त मेउत्कल मे पसरि गेलाह। एखनहुँ किछु प्रतिष्ठित मूलक पूर्व मे गढ़वालक गढ़ उपसर्ग युक्त अछि। यथा गढ़ खण्डवलागढ़ माण्डरगढ़ घुसौतगढ़ बेलउॅच इत्यादि। एहि प्रकारें अठाहरम शताब्दीक उत्तरार्द्ध धरि मैथिल ब्राह्मणक पुनर्वासन भिन्न-भिन्न क्षेत्र मे होइते रहल। तहि काल मे अर्थात सोलहम-सतरहम शताब्दी मे बहुत राश ब्राह्मणपूर्णिया परिसरक प्रतापी राजा सुरगन लोआम राजवंशक संस्थापक महाराज समर सिंह ओ हुनक उत्तराधिकारीक शासनकाल मे हुनक सहयोग पाबि प्राचीन पूर्णिया जिला मे आबि बसलाह। परंच ताहि सँ पहिनहु सँ एहि ठाम मैथिल ब्राह्मण छलाह जेना महाराज समर सिंह स्वयं हुनक मातृकुल तिलयवार मूलकनरौन मूलकबेलमोहन शाखारउढ़े वारीकुजिलवाड़ नेयाम आदि।
कुलीन ब्राह्मणक जे पैंतीस गोट मूल चर्चित अछि से सभ एहि काल मे पूर्णिया प्रान्त मे आबि बसलाह,तखन जे ग्राम सँ प्रसिद्धि पाओल ताहि मे रशाढ़धर्मडीहापद्मपुरसौरियाकालशरगुणमति-यज्ञपल्ली (जगैली)चणकाडिहियानिखरैलदाँतीब्राह्मणगाँव (बभनगाँव)भारीडीहनेपड़ामेढ़ोलपहुँसरारमै,सतघरारहुआसिंघियाचिकनीबनैली आदि। छिटफूट रूपें पुरान ग्राम यथा- सुखसेनाचुनापुरकाझी,रघुनाथपुरहेमनगरबहोरासरसी वर्तमान अररिया जिलाक प्रवाहा (परवाहा)रमैसहबाजपुरभद्रेश्वरबीरबन,स्तम्भगढ़ (खम्भगढ़)खमगड़ाजमुआश्रीपुर प्रान्तक सतघरा जे सब पुनः पुनर्वासित भए जहानपुर बसाओल बरदबट्टा-भटवाड़फूलवाड़ीमदनपुर ग्राम पुरान वासीक संगे सहवासी भेलाह। अररिया जिलाक सुलतानपुर परगना मे लगभग पचासेक गाम अछि जे सम्प्रति सघन ब्राह्मण आबादी वाला क्षेत्र अछि आ एहि ठामक ब्राह्मण सनातन धर्मक पोषकश्रमजीवी विद्वानक सम्मान कएनिहार आ कौटुम्बिक आत्मियता सँ परिपूर्ण। परंच एखन हम सहर्ष चर्चा करब श्रीपुर प्रगन्नाक जहानपुर गामक।
श्रीपुर प्रगन्ना ओ तकर मुख्य ग्राम सतघरा जहानपुर अति ऊर्जावानपुरुषार्थ सँ परिपूर्ण रचनात्मक अवसरवादिता मे निपुण लेकिन संस्कृति रक्षक सनातन धर्मक प्रति अत्यन्त स्नेह ओ भक्ति। सक्रियताक संगे सामाजिक कार्य मे योगदान देवऽ वाला। एहि सुचर्चित सुप्रतिष्ठित गाँव पर एकटा विस्तृत आलेख विद्वान शिक्षक श्रीयुत् महिनारायण बाबू सँ प्राप्त भेल से एहि ठाम उद्घृत करब उचित- प्राचीन पूर्णिया जिला सँ 19900 मे पृथक भए एकटा नव जिला बनल-अररिया जिला (नामकरणक इतिहास अछि जे जखन अंग्रेजी शासन छल ताहिकाल मे वर्त्तमान अररियाखडहि़या बस्ती छल। पूर्णिया जिलाक अंगक रूप मे अंग्रेज शासक लोकनि एहि क्षेत्र कें-आर0 एरिया अर्थात् रूरल एरिया अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र संबोधित कएलक। सैह आर0 एरिया परवर्तीकाल मे अररिया कहौलक) बनल। एहि अररिया सँ पच्चीस किलोमीटर पूर्व दिशा मे एकटा ग्राम अछि-जहानपुर। एहि गामक मातृ गाम थिक एकर अव्यवहित (सटल) पश्चिमोत्तरक गाम सतघरा जतऽ पनिचोभ झौवा,खण्डवला एकमा मूलक लोक सोलहम शताब्दीक प्रारम्भे सँ अवस्थित भऽ गेल छलाह। पनिचोभ झौवा मूलक निकाई-रकाई झा दु भाय ओ खण्डवला एकमा मूलक हरिदेव ठाकुर ओ गोविन्द ठाकुर दूनू भाय प्रेमपूर्वक वास कए रहल छलाह। ई दूनू घर परम पुरुषार्थी ब्राह्मणक छल। परंच हिनका लोकनिक तेसर पीढ़ी अबैत-अबैत वास परिवर्त्तन भए गेल ओ शास्त्रानुसार पूर्वाभिमुख भए जहानपुर गाम बसौलैन्हि निकाइक पौत्र उमानाथ प्र0भक्त ओ प्रपौत्र जमीन्दार ठाकुर सिंह आओर खण्डवला एकमा मूलक भैयाराम ठाकुर। ई दूनू जन (व्यक्ति) गाम कें खूब सजौलन्हि। सभ वर्णक चिन्ता कए गाम मध्य बसौलैन्हि। गामक चतुर्दिक मे यवनाधिक्यता छल परंच ई दूनू घर सौमनस्यताक भावनाक प्रचार-प्रसार मे लागल रहलाह तँय कोनो प्रकारक धार्मिक मनोमालिन्यता नहिं प्रस्फुटित भेल। उत्तरोत्तर गामक विकास होएत रहल। दूर-नातिदूर गामक रक्षक सेहो रहल जहानपुर गाम। क्रमशः आन-आन मूलक लोक सभ सेहो आबि बसलाह एहि गाम मे हिनका लोकनिक स्नेह ओ सौजन्यता पाबिकें। ताहि मे खौआल सिमरवाड़ मूलदरिहरा रतौली मूल ओ जजिवाल भड़गाम मूल।
भैयाराम ठाकुर प्रसिद्ध भैया ठाकुरक खुनाओल वृहदाकार पोखरि एखनहुँ विद्यमान अछि जे ताहि दिन मे अर्थात अठारहम शताब्दीक पूर्वार्द्ध मे एहि गामक सभ जन कें जलक आपूर्ति करबैत छल। परंच उचित देख-रेखक अभाव मे सुखायल नोर वाला आँखि भऽ गेल अछि ई पुरुषाक जलदायिनी पोखरि। एना तऽ होइते छैक,अस्तु आगाँ बढ़ी-
एहि गामक शक्तिदायिनीप्रेरणादायिनी थिकीह श्रीश्रीश्री 108 दशभुजा भगवती ओ अष्ट भुजा दुर्गा।1708 ई0 मे एहि गाम मे विष्णुनरसिंहराधा-कृष्ण ओ भगवती दुर्गाक विग्रहक स्थापना करायल जे पूर्वोक्त भक्त-प्रवर लोकनि कें स्वप्न मे दर्शन दए स्थान निर्देशित करैलखिन्ह जतऽ खुदाई कएला सँ विग्रह (प्रतिमा) प्राप्त भेलैन्हि। ओ भक्तिभाव सँ तकर स्थापना कएल गेल। ताहि दिन सँ गाम मे पूर्वहुँ सँ बेसी उत्साहक संचार होमय लागल। परवर्ती काल मे अर्थात उन्नीसम-बीसम शताब्दी मे एहि गाम मे गज-अश्वक व्यापार प्रारम्भ भेल तँ एहि गामक जमीन्दार लोकनि दुर्गा पूजाक अवसर पर बेल नौती ओ बेल तोड़ी अश्व-गज कें सजा कें एकटा महिमामयबैभवमय वातावरण मे भगवतीक आराधना करथि। किछु रूपान्तरित रूपें एखनहुँ ओ भक्तिभाव एहि ग्रामवासीक मध्य देखल जाइत अछि। एखनहु स्व0 बलभद्र ठाकुरक सन्तति लोकनि समस्त गामक सहयोग पाबि एहि पूजा कें सोत्साह सम्पन्न करैत छथि भक्तिभाव सँ। एहि गामक अति प्राचीन घर पनिचोभ झौवा परिवार एक अप्रतिम विद्वानराजनेताकुशल वक्तासामाजिक संगठनकर्त्ता ओ स्वतंत्र भारतवर्षक बिहार राज्यक विधान सभा हेतु एक यशस्वी विधायक पं॰ पुण्यानन्द झाक रूप मे प्रदान कएलक जे ईमानदारीक हेतु सतत् एक मापदण्ड बनल रहताह। हुनकहि वंशक सकल मोहन झा जे प्रतिभा सँ दैदीप्यमान कएलैन्हि जहानपुर गाम कें परन्तु देवात् अल्पायु भेलाह। पं0 पुण्यानन्द झा प्राचीन पूर्णिया जिलाक प्रथमतः स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्तकर्त्ता मे सँ एक छलाह। हुनक साहित्यिक अवदान मैथिली साहित्यकार समाजक हेतु विशिष्ट चर्चाक विषय रहल अछि। जमीन्दारी प्रथाक काल मे जे थोड़-बहुत ब्राह्मण जमीन्दार एहि क्षेत्र मे छलाह ताहि मे स्व0गिरानन्द ठाकुर अत्यन्त न्यायनिष्ठसमाज हितैषी ओ पुरुष पुंगव सिद्ध भेलाह। गामक मर्यादा ओ भरि गामक शुभेच्छा मे अपन समस्त जीवन बिताओल। अपन कुटुम्बक संग-संग भरिगामक कुटुम्ब कें अपनहिं कुटुम्ब बुझि सत्कार करथि। स्व0 गिरानन्द ठाकुर अंग्रेजीफारसीक कुशल ज्ञाता छलाह। एहि गामक दरिहरा रतौली मूलक राशमोहन झा ऑनरेरी मजिस्ट्रेट भेलाह। ओ अपन उदारता एवं सरलताक हेतु चिरस्मरणीय रहताह। एहि परोपट्टा मे जतैक स्वतंत्रता सेनानी भेलाह ताहि मे सबसँ अधिक जहानपुर गामक सपूत राष्ट्रक हेतु अपन जीवन समर्पित कएलैन्हि ताहि मे अग्रगण्य छलाह स्व0 पं0 बलभद्र ठाकुरस्व0 पं0 रामसुन्दर ठाकुरस्व0पं0 सुरेन्द्र मोहन ठाकुरस्व0 पं0 गोखूलानन्द ठाकुर एवं स्व0 पं0 सूर्यमोहन ठाकुर हिनका लोकनिक अवदान कें श्रीपुर परगन्ना कोना बिसरि सकत। एहि गामक स्व0 शिवनारायण ठाकुर (भू0पू0 मुखिया)स्व0 पं0विनेशदत्त ठाकुर (संगीत मर्मज्ञ)स्व0 ब्रजनन्दन ठाकुर (सरपंच)स्व0 हरिनन्दन ठाकुर (समयोचित वार्त्ताक धनी)स्व0 शिवशंकर झा (युनियन बोर्डक अध्यक्ष)स्व0 देवनारायण झा (प्राकृतिक चिकित्साक पक्षधर) एहि तरहें अनेक स्वनामधन्य नागरिक भेलाह जे जहानपुरक श्रीवृद्धि कएलैन्हि। ओ गामक यशोगाथा चहुँदिश पहुँचाओल।
सम्प्रति एहि गामक नवयुवक देश-देशान्तर मे पसरि गामक प्रतिष्ठाक चिन्ता करैत छथि। ओ गाम कें एकताक सूत्र मे बन्हने छथि। जे हृदय कें आह्लादित करैत अछि। सेवा निवृत दीर्घकालीन मुखिया सिंहौलि माण्डर मूलक श्रोत्रिय वंशावतंश श्रीयुत् हरिश्चन्द्र झाप्रसिद्ध बेचन झाक पंचायतक राजनैतिक विकाशक चेतना जागृत करबाक सतत चेष्टा ओ समाजक निःस्वार्थ सेवा सरिपहुँ हुनका नेता बनबैत अछि। एखनहु श्री बेचन बाबू गामक विकासक चेष्टा मे निमग्न रहैत छथि। श्रीयुत पोलो झाक ग्रामक विकाश मे चिरस्मरणीय योगदान श्रीयुत् वासुकीनाथ ठाकुरक (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त) अवदात अध्यापकीय योगदान। अन्ततः चि0 श्रीयुत् अविनाश प्र0 गुड्डू ओ प्रभाकर ठाकुरक युवा नेतृत्व गामक विकाश मे अद्वितीय योगदान श्लाघनीय अछि।
एहि श्रीपुर प्रगन्नाक एकटा छोटछीन गाम चोपड़ा बखारी। ई गाम सौ वर्ष पूर्व जतैक बृहत छल ततैक आई नहिं अछि। लेकिन सभ सुसंस्कृत अतिथिप्रेमी पूर्वहुँ मे एहि गामक खण्डवला बेहट मूल परिवार जे तिरहुत सँ पद्मपुर कटिहार बसल छलाह। विद्वानक वंश मानल जाईत अछि। आ एखनहु शिक्षाक प्रति मात्र झुकाव। एहि ठाम महादेव दिग्धीअसुरातुलसियाअन्धासूर इत्यादि गाँव अछि। जाहि मे असुरा सभ सँ बेसी पुरान ओ सघन आबादी वाला क्षेत्र परन्तु कनकई नदी सँ आक्रान्त। एहिठाम पूर्णिया जिलाक पूर्वोत्तर भूभाग जे परगन्ना आसजा (आसंगा शुद्धरूप शब्दकोषीय अर्थ जतऽ लोक अनुरक्त भऽ जाएनीक साहचर्य पाबएसंयोग सम्मिलनक अवसर प्राप्त हो बन्हा कऽ रहि जाएचिपकि जाएअनुरागाधिक्य हो इत्यादि) परगन्ना अछि जाहि मे बेगमपुरएकम्बाविष्णपुरअसर्नासकमाभवानीपुर ओ उफरौल ग्राम अछि ताहि मे विष्णुपुर ग्राम सर्वोत्तम-एहि गाम मे मूलतः दू मूलक ब्राह्मण छथि-हरिअम्ब अहिल आ खौआड़े कुरमा। खौआड़े कुरमा मूलक राजबनैलीक मित्रनाथ झा फारसीवेत्तातहसीलदार ओ परम पुरुषार्थी व्यक्तित्व वाला छलाह। एखनहु हिनकर सन्तति लोकनि नीक सामाजिक सरोकार वाला आ संस्कृति पोषक छथि। वर्त्तमान मे एहि वंशक नवयुवक सब उत्तम शिक्षा पाबि नीक-नीक पद प्राप्त कएने छथिओ संस्कृति रक्षा मे उत्साहपूर्वक सहयोग करैत छथि। श्री नवीन बाबू समाजक सभ सँ पैघ हितैषी। हरिअम्ब आहिल मूलक झुकाव बीसम शताब्दी मे शिक्षक प्रति अभूतपूर्व रूपें बढ़लैन्हि। लाल मिश्रक चारि पुत्र मे सर्वश्रेष्ठ श्रीमान् सदावर्ती गुणानन्दùानन्दतीर्थानन्द ओ गजानन्द मिश्र परिवारक प्रतिष्ठा बढ़ौलैन्हि। गुणानन्द मिश्र समाज हितैषिताक संगे आधुनिक शिक्षाक प्रचार-प्रसार हेतु विभिन्न विद्यालयक स्थापना कएलैन्हि ओ विपत्काल मे समाजक सहयोग कएलैन्हि। हिनक पुत्रद्वय श्री नागेश्वर मिश्र (एम00) ओ प्रो0 डॉ0 लक्ष्मीश्वर मिश्र (सेवा निवृत उपाचार्य) सदाशयताक उच्च मापदण्ड बनौने छथि। स्व0 पं0 तीर्थानन्द मिश्रक ज्येष्ठ पुत्र योग्यतम विद्वान पूर्णिया महाविद्यालयक स्थापना कएनिहारप्राचार्य,मिथिला विश्वविद्यालयदरभंगाक संस्थापक कुलपति अत्युच्च कोटिक शोधपरक लेखक आ बिहार सरकारक आर्थिक सलाहकार भेलाह। पूर्णिया परिसरक आर्थिक इतिहासक मूल गवेषक छलाह। हिनक ज्येष्ठ पुत्र डॉ0प्रो0 रत्नेश्वर मिश्र अपन विद्वता मे अपन पिताक मान रखनिहार छथि। दीर्घकाल धरि मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगाक स्नातकोत्तर इतिहास विभागक प्रधान रहलाह। परंच साम्प्रतिक सरकारक संकीर्ण विचारक कारणें उच्च पद नहिं पाबि सकलाह। एखनहु भारतक इतिहासकारक मध्य अग्रगण्य विद्वान मानल जाईत छथि। भारतीय इतिहास कांग्रेसक सम्मानित सदस्य।
हवेली (नशिरा परगन्ना): हवेली प्रगन्नाक ब्राह्मण जे सांस्कृतिक रूपें नशिराक (नेति शिरा अर्थात् जिनका सँ श्रेष्ठ दोसर नहिं हो) ब्राह्मण सम्मानपूर्वक कहल जाइत छलाह से सभ बड़ सूक्ष्म आचार-विचारवाला। एहि क्षेत्र मे श्रोत्रिय ब्राह्मण लोकनि दीर्घकाल धरि वास कएलैन्हि। सुरगन लोआम राजवंशक छत्रछाया पाबि। कालान्तर मं श्रोत्रिय लोकनि खण्डवला वंशक शासक महाराज माधव सिंहक शासनकालक समय सँ (1760ईस्वीक उपरान्त) तिरहुत वापस होबऽ लगलाह। परंच नशिराक गरिमा बनल रहल। मध्यकाल मे जे ब्राह्मण मिथिला सँ बंगालक प्रवास पर छलाह ताहि मे किछु परिवार बंगाल मे बेर-बेर पड़ऽ वाला अकाल ओ दुर्भिक्षक कारणें नशिरा आबि बसलाह। एहि मे एकटा वैयाकरणीय वंश अछि गंगोलीवार दिगौन मूलक राय परिवार। एहि राय आस्पदक (उपाधि) इतिहास थीक बंगाल प्रवास। सम्प्रति एहि वंशक लोक अरिहाना (सोनाली-कटिहार) मे रहल छथि। शिक्षाक प्रति झुकाव वो मानवीय सदाशयता सँ परिपूर्ण कुल अछि ई राय परिवार। परन्तु वर्तमान मे नशिरा परगन्नाक अधिकांश गाम सुप्त बुझा रहल अछि।
सौरियाकालसरपद्मपुरभारीडीहबभनगाम आदि गाम लुप्त भऽ गेल। सौरिया जे सुरगन लोआम राजवंशक राजधानी छल तकर आब ब्राह्मण गामक रूप मे चर्चो नहिं अछि। सौरिया आ ऋगा नदीक कछेर पर भारीडीह मे एकहिं रूपक प्राचीन शिव मन्दिर अछि। सोलहम सँ अठारहम शताब्दी धरि जे यावनी अत्याचार सँ पीड़ित समाज छल अपन समक्ष मन्दिर ओ देवमूर्तिक भंजन देखी रहल छल प्रतिकार करबाक कोनहुटा मार्ग दृष्टिगोचर नहिं होएत छलैक। तखन सनातन प्रेमी लोक निर्गूण पंथ अपनौलक ताहि मे नाथ सम्प्रदायक चलन बढ़लैक। ओ लोकनि निर्गुण गबैत टोलीक-टोली मिथिला सँ बंगाल प्रवास पर जाए लगलाह नशिरा प्रगन्नाक अनेक ग्राम कदवाभड़रीगोपीनगर इत्यादि तकर साक्ष्य अछि। भड़री सँ पूब दिश गोपीनगर गामक सन्निकटहिं मानीकनाथ नदी प्रकट भेल छलीह। एहि गामक दुर्दांन्त जमीन्दारक विनाशक हेतु। एहि जमीन्दार वंशक नाश कए ओ नदी विलुप्त भेलीह आ गाम श्रापित भेल। एहि प्रकारक अनेक सत्य घटनाक कथा एहि क्षेत्र मे सुनल जाईत अछि। मैथिली भाषाक प्रथम शब्दकोषक रचनाकार ज्योतिरीश्वर ठाकुर नशिरहि बसैत छलाह।
धर्मपुर (धरमपुर) परगन्ना: पूर्णियाअररिया ओ कटिहार जिलाक पश्चिमी भाग धरमपुर प्रान्त या परगन्ना बुझल जाईत अछि। मध्यकाल मे एहि क्षेत्र पर खण्डवला मूलक मिथिलेश ओ सुरगन लोआम मूलक पहुँसराधीस पूर्णियाक राजाक शासन छल। मिथिलेश राजा राघव सिंहक समय मे हुनकहि राजस्व अधिकारी वीरू कुरमी अपन एकटा किला बनौलक वीरनगर किला आओर राज के राजस्व पठौनाई बन्द कए देलक। ओकरा विरूद्ध सेना पठाओल गेल। ओहि युद्ध मे वीरूक बेटा मारल गेल आ स्वयं वीरू पराजित भेल। ओकरा संबंध मे एकटा कहावत एहि क्षेत्र मे प्रचलित अछि जे निम्नांकित अछि-
‘‘वीरनगर वीर शाहक बसै कौशिका तीर।
का पति राखे कौशिका का राखे रघुवीर।।’’
तत्कालीन पूर्णियाक कलक्टर बुकाननक पूर्णिया रिपोर्ट मे वर्णित अछि जे वीरूक धृष्टतापूर्ण क्रिया-कलापक समाचार सुनि सरमस्त अलीखाँक सेनापतित्व मे दिल्ली सँ सेना पठाओल गेल। कौशीकीक तट पर युद्ध भेल। पहिल बेर तँ सेना हारल मुदा दोसर प्रयास मे महाराज दरभंगा राघव सिंहक मदति सँ वीरू पराजित भेल। महाराज राघव सिंहक नेतृत्व समस्त धर्मपुर परगन्ना पर भेलैन्हि परंच बाद मे नाथपुर ओ गोराढ़ी तालुका हुनका सँ लए पूर्णियाक सुरगन लोआम वंशक राजाक अधीन कए देल गेल। एहि क्षेत्र मे बनमनखी सँ सटले पश्चिम मे जानकीनगर परिसर मे महन्थ रामदाशक आध्यात्मिक शासन छलजे बड़ प्रखर ओ सनातनक रक्षक छलाह। ओ यवनक विरूद्ध सनतान प्रेमी मे उत्साह भरैत छलाह। सिद्ध साधनाक बलें ओ सिंहक सवारी करैत दूरस्थ प्रान्त धरि यात्रा करथि। म्लेच्छ यवनक प्रताड़ना सँ ओ सनातन प्रेमीक उद्धार करैत छलाह। हुनक शिष्य परम्परा मे महन्थ राघवदाश सेहो प्रशस्त ओ उल्लेखनीय व्यक्तित्व भेलाह। एहि धर्मपुर प्रगन्नाक रशाढ़ ग्राम अपन आढ़्यताक हेतु प्रशस्त छल। काशी सँ शिक्षा प्राप्त विद्वान एहि ठाम आबि शास्त्रार्थ करथि ओ सम्मान पाबथि। एहि मे म000 हरिश्वर मिश्र सर्वोपरि छलाह। एहि परिसर मे धमदाहा (धर्मडीहा) ग्राम अत्यन्त उच्च कोटिक विद्वत सन्तति पाबि आह्लादित छल। एहि मे म000 चित्रपति झा000 श्याम सुन्दर ठाकुर सारस्वत परम्पराक ध्वजवाहक छलाह। परन्तु एक पंजीकारक रूप मे दायित्व निर्वहन करैत हमर अपन मत एहि क्षेत्रक प्रति निराशाजनक बनल अछि। ई क्षेत्र एखन संस्कृति विमुख भए रहल अछि। येन-केन प्रकारेण अर्थोपार्जनक अतिरिक्त आओर कोनो गतिविधिक उच्च संस्कृतिक वाहकक रूप मे दृष्टिगोचर नहि भए रहल अछि। निष्कर्षतः कहि सकैत छी जे पूर्वक गरिमाक क्षरण भए रहल अछि। ईश्वर सँ प्रार्थना जे एहि परिसर मे बसऽ बला नागरिक अपन पूर्व गौरवपूर्ण इतिहासक रक्षा करथि। धर्मपुर प्रान्त मूलतः विष्णुक उपसनाक क्षेत्र रहल अछि तैंय एहि प्रान्त मे नृसिंहराम ठाकुरकृष्णक स्थानक अधिकता अछि। अस्तु,भगवान विष्णु एहि क्षेत्रक धार्मिक भावनाक विकास करथु से एहि रूपक प्रार्थना हम पंजीकार विद्यानन्द प्रसिद्ध मोहनजी करबद्ध भए ईश्वर सँ कए रहल छियैन्हि।
अन्ततः सभसँ आवश्यक वार्ताक उल्लेख परमावश्यक अछि जे एहि आनुवंशिक इतिहासक सार्व जनकी करणक सभटा श्रेय छैन्हि मेहथ झंझारपुर वासी सम्प्रति वसन्त कुंज दिल्ली वासी पनिचोभ बीरपुर वंशावतंस अभियंता स्व0 कृपानन्द ठाकुरक सुपुत्र भगीरथावतार श्रीयुत गजेन्द्र ठाकुरजीक। श्री गजेन्द्र बाबू अपन अद्वितीय इच्छाशक्तिकर्मनिष्ठा ओ मिथिलाक संस्कृति ओ इतिहास रक्षणक गुरूत्तर दायित्व कें सोत्साह ग्रहण करैत अपन सर्वस्व झोंकि एहि मिथिलाक गौरवपूर्ण इतिहास कें संसारक समक्ष प्रस्तुत कए रहल छथि। इुनकहि सत्प्रेरण ओ सहलेखकीय प्रयास सँ मैथिल ब्राह्मण समाजक समक्ष प्रस्तुत भऽ रहल अछि ई जीनोम मैपिंगक (मिथिलाक पंजी प्रबंध) द्वितीय भाग।
पारिभाषिक शब्दावली
एहि पुस्तकक पाठकक सुविधार्थ किछु दिशानिर्देश:-
आनुवंशिक इतिहास लिखबाक जे पुरान परिपाटी अछि ताहि सँ इतर ढ़ंगे पुस्तक लिखब दुरूह छल तँयबिन परम्परा भंग कएने पुस्तकक लिप्यंतरण ओ संवर्द्धन कएल। सामान्य जन जे पंजी शास्त्र सँ अनभिज्ञ छथि तनिका एहि पुस्तक सँ अपन-अपन वंशक ज्ञान प्राप्त होइन्ह ताहि हेतु व्याख्या प्रस्तुत कए रहल छी-
सं या सँ (संभूत) अर्थात् प्रथमतः कोनहु वंशक सभसँ प्राचीन गाम जे मूल कहौलक। वाक्य मे जाहि शब्दक आगाँ सँ या सं भेटत ओ शब्द मूल थीक। मूलक दूखण्ड अछि-मूल ओ मूलग्राम। यथा-सोदरपुर सरिसवदरिहरा राजनपुरामाण्डर या मड़रै सिंहौलिखण्डवला या खड़ौरे एकमा पण्डुए महिन्द्रपुरनरौने या नरउनय शक्तिरायपुर। एहि सब मे क्रमशः सोदरपुरदरिहरामाण्डर या मड़रैखण्डवला या खड़ौरेपण्डुए नरौने मूल भेल। आओर सरिसवराजनपुरासिंहौलीएकमामहिन्द्रपुरशक्तिरायपुर मूलग्राम थिक। परन्तु जतय कतहुँ सरिसवे खांगुड़ भेटत ओहि ठाम सरिसवे मूल कहाओत आओर खांगुड़ वा छादनसकरी मूलग्राम कहाओत सरिसव मूलक हेतु। एहिना सभ मूलक संग बुझवाक थिक। पंजीकार लोकनि अपन पुस्तक मे मूलग्राम पूर्वहि लिखैत छथि आओर मूल बाद मे जखन कि बाँकी लोक मूल पहिने बजैत छथि आ मूलग्राम बाद मे एहि मे कोनो दोष नहिं। एहि पुस्तक मे दोनों तरहक प्रयोग भेटत।
वाक्य व्याख्या: उदाहरण स्वरूप आसंगा (आसजा) प्रान्तक हरिअम्ब आहिल मूलक एक वंश विष्णुपुर गाम मे बसैत छथि। एहि मे चर्चा मे आएल अछि जे मिश्र लाल प्र0 डोमन सुता गुणानन्दतीर्थानन्दùानन्द,गजानन्दाः लोहना सकराढ़ी सँ जुड़ाओन सुत दयानाथ दौ सरिसव सोदरपुर सँ दयानन्द दु दौ। यज्ञवती पुत्र सुताच। आउएकर व्याख्या देखी-हरिअम्ब मूल थिकआहिल मूलग्रामलाल मिश्र एहि हरिअम्ब आहिल मूलक एक व्यक्ति जे डोमन मिश्र सँ लोक मे प्रसिद्ध छलाह तँय हेतु लाल प्र0 (प्रसिद्ध) डोमन लिखल गेल। प्र0प्रसिद्धताक द्योतक थिक। लाल प्र0 डोमन कें चारि बालक (पुत्र) तँय सुता’ लिखल अछिएक पुत्र रहनेसुत’, दूई पुत्र रहने सुतौ’ आ तीन या तीन सँ अधिक मे सुता। अस्तु एतऽ लाल सुता लिखल आगाँ चारू पुत्रक नाम अछि। ताहि सँ आगाँ लिखल अछि। लोहना सकराढ़ी सँ अर्थात् लोहना मूलग्राम भेल ओ सकराढ़ी (सकड़िवाड़) मूल थिक। एहि मूलक जुड़ाओन झाक बालक दयानाथ झाक पुत्री मे लाल प्र0 डोमनक विवाह अस्तु हुनक चारू बालक दयानाथ झाक दौहित्र (नाती) भेलाह तँय दौ। दौहित्रक संक्षिप्त रूप लिखल अछि। ताहि सँ आँगा लिखल अछि सरिसव सोदरपुर सँ श्यामनाथ दु दौ। अर्थात् श्यामनाथक पुत्री मे दयानाथक विवाह अस्तु बुझबाक थिक जे श्यामनाथक दौहित्री मे लाल मिश्रक विवाह तनिक पुत्र चारू भाय अर्थात् दौहित्री पुत्र तँय श्यामनाथक आगाँ दु दौ’ लिखल भेटत। आगाँ बढ़ी-यज्ञवती लाल मिश्रक धर्मपत्नी छलखिन्ह तँय लिखल जे यज्ञवती पुत्र अर्थात् गुणानन्दादि चारि भाय। सुताच अर्थात् यज्ञवतीक पुत्री परंच हुनका पुत्री नहिं छलखिन्ह तँय सुताक आगाँ किछु नहिं लिखल अछि।
द्रष्टव्य-अपवाद: कतहु-कतहु सुताक आगाँ नाम नहिं अर्थात् सुताक रूप जे नाम अछि तनिका बालक नहिं। अर्थात् जनिका एकहुटा पुत्र नहिं ततहु सुता लिखल जाईत अछि।
आब आगाँ बढ़ी: श्रीमान् गुणानन्द सुतौ नागेश्वर लक्ष्मीश्वरौ मल्हनी देशे परशरमा वासी सरिसव सोदरपुर सँ डोमन सुत दामोदर दौ सतौली सतलखा सँ रघुनाथ दु दौ। सुताच गंगा कौशिल्या यमनिकाकें। एहि ठाम गुणानन्द मिश्रक धर्मपत्नीक नाम नहिं लिखल अछि। परंच सुताच अर्थात् हुनक तीनटा पुत्रीक नाम अछि। आओर हुनका लोकनिक विवाहक उल्लेख अछि जे आद्या नाहर वासी नरसाम बलियास सँ अनन्त सुत परमानन्द पत्नी। ए सुतौ मनबोध भगवानदेवौ। एहिठाम आद्याक अर्थ थीक प्रथम पुत्री गंगा जनिक विवाह नाहर गामक बलियास मूलक नरसाम मूलग्रामक अनन्तक पुत्र परमानन्द सँ जाहि परमानन्दक दु बालक मनबोध ओ भगवानदेव एहि तरहें बाँकी पुत्री कें विवाहक उल्लेख अछि।
आगाँ बढ़ेत छी: श्रीमान् नागेश्वर सुत प्रदीप कुमार प्र0 मोहनजी सुखैत खौआल सँ पिलखवाड़ (तिरहुत) वासी म000 चुम्बे सुत पिताम्बर दौ भट्टसिम्मरि वासी नगवाड़ घोसोत सँ गुंजेश्वर दु दौ। पन्ना पुत्र सुतेच बच्चू दाय ................।
एहि मे श्री नागेश्वर (एमएप्रधानाध्यापक उच्च विद्यालय)क पुत्र भेलखिन्ह प्रदीप कुमार प्र0 मोहनजी ओ पत्नी भेलखिन्ह पन्ना दाय जे तिरहुत प्रान्तक खौआल सुखेत मूलक महामहोपाध्याय चुम्बे झाक पौत्री ओ पिताम्बर झाक पुत्री छलीह तथा भट्टसिम्मरि गामक घुसौत मूलक नगवाड़ मूलग्रामक गुंजेश्वर ठाकुरक दौहित्री (नतिनी) छलीह। हमरा बुझने एतेक व्याख्या पर्याप्त अछि उपरोक्त वाक्यक। कोनहु-कोनहु मूल मे एकनामा वंशावली लिखल अछि कतिपय कारण सँ।
आद्याक अर्थ प्रथम, ‘अपराक अर्थ तकर बादक इ क्रम सन्तानक उल्लेख समाप्ति धरि चलत। किछु ठाम अपरा नहिं लिखि नामहिं लिखल अछि।
उपाधि सभक चर्चा सेहो आएल अछि एहि मे म000 अर्थात् महामहोपाध्याय। सदु उ0 सदुपाध्याय,वैया0 अर्थात् पाणिनीय व्याकरणक विद्वान वैयाकरणज्यो0 अर्थात् ज्योतिर्विद ज्योतिषशास्त्रक विद्वान एहि तरहें आगमाचार्यक अर्थात् तंत्र विद्याक श्रेष्ठ ज्ञातातर्क पंचानन अर्थात् तर्कशास्त्रक समस्त आयामक ज्ञाता इत्यादि एहि तरहें बहुत राश राजकीय पदक सूचक शब्दावली अर्थात शान्ति विग्रहिकपार्णागारिकवार्तिक नैवन्धिक,महामहत्तकसप्रक्रय महा सामन्ताधिपतिभाण्डागारिकस्थानान्तरिकमुद्राहस्तकराजवल्लभधर्माध्यक्षक,धर्माधिकरणिकप्रतिहस्तकरियादार इत्यादि व्यवहार मे आएल अछि पाँजिक पुस्तक मे से सभटा अनुसंधानक विषय थिक। कोनहु व्यक्तिक एकाधिक विवाह रहला सन्ताँ प्रथम विवाहक उल्लेखनोपरान्त द्वितीय विवाहक उल्लेख मे व्यक्तिक नामक पूर्व सेहो अपरा लिखल भेटत-तात्पर्य हुनक दोसर वा तेसर विवाह।
धरमपुरश्रीपुरनशिरा (हवेली)आसंगा (आसजा)सुलतानपुरसूर्यापुरमल्हनीनिशंखुड़ (निशंकपुर),हराउतछईकवखण्डकाकयोनि इत्यादि परगन्नाक उल्लेख भौगोलिक दृष्टि सँ कएल गेल अछि जे कोन गाम,कोन क्षेत्र मे अवस्थित अछि। ई परगन्ना सभ देशक आजादीक पूर्व देशक नाम सँ सेहो बुझल जाइत छल। तँय धरमपुर देशे सुलतानपुर देशे पुस्तक मे लिखल भेटत।
पंजी प्रबंधक पृष्ठभूमि
आर्यावर्त्तक (आदर देवाक योग्य) सर्वोत्कृष्ट स्वरूप मिथिला अपन निस्तुकी वा ठोस ;ब्वदपितउ वत ैवसपकद्ध विचारक हेतु दुनियाँ भरि मे सुख्यात रहल अछि। एहि ठामक जीवन दर्शन धर्मप्राण लोकक हेतु मार्गदर्शक सिद्ध होएत आएल अछि। गूढ़ धर्मशास्त्रीय वचनक व्याख्याक हेतु मिथिलाक व्यवहार प्रमाण बनल-धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिलाव्यवहारतः। समस्त शास्त्रीय परम्पराक पालन समयानुसार संस्कारित कए संशोधित ओ संवर्द्धित कए मिथिला भारतीय सनातन धर्मी समाज कें युगोचित मार्गदर्शन करवा मे समर्थ रहल अछि। मानवजीवनक विकास यात्रा मे पुंसवन संस्कार सँ लऽ कें मृत्योपरान्त सम्पादित संस्कार सभ पर सनातन धर्मग्रन्थ ओ स्मृतिग्रन्थादिसम मे जे निर्देश प्राप्त अछि ताहि मे मिथिलाक विद्वानक अद्वितीय योगदान अछि। सर्वोपरि विवाहक प्रसंग मे किएक तँ विवाह आओर परिवारमानव जाति मे आत्म संरक्षणवंशवृद्धि आओर जातीय जीवनक निरंतरता कें सुरक्षित रखबाक सर्वप्रमुख साधन थीक। अनित्य मनुष्य एहि माध्यमें अमरता प्राप्त करैछ। ब्रह्मपुराण मे कहल गेल अछि-
‘‘अमृते नामरा देवाः पुत्रेण ब्राह्मणादयः ब्रह्म0पु0 104/9, ऋग्वेद मे पुत्र द्वारा अमृतत्व प्राप्तिक उल्लेख अछि-प्रजाभिरग्ने अमृतत्वश्याम-मि0तै0 सं0-1-4-46-1 इत्यादि। विवाहक माध्यमें मनुष्य सन्तान प्राप्त कऽ कें अपनाकें विस्तारित करैत अछि ओ संगहिं अमरता सेहो। एहि हेतुएँ संस्कृत मे बच्चाकें संतति सन्तान तनय इत्यादि कहल जाईत अछि। ई सभटा शब्द विस्तारवाची तनु धातु सँ बनल अछि। सन्तानक रूप मे पिताक पुनर्जन्म होईत छैक। एक दिश जँ मनुष्य कें अवश्यम्भावी मृत्युक दुख छैक तँ दोसर दिश इहो सन्तोष रहैत छैक जे सन्तान द्वारा ओ अनन्त काल तक जीवित रहत। एहि हेतुएँ विवाह कें समाजक केन्द्रीय सत्ता मानल गेल छैक। अस्तुएतेक जे महत्वपूर्ण कार्य विवाहजाहि पर श्रृष्टि टिकल अछि से कोन रूपें कएल जाए,कोन कन्या सँ विवाह कए सन्तान प्राप्त करीताहि पर याज्ञवल्क्यादि ऋषिगण जे अपन मिमांशा विभिन्न स्मृति ग्रन्थ सभ मे प्रस्तुत कएने छथि तकर सर्वतोभावेन पालन मिथिलहि टा मे संभव भए सकल अछि।
विवाहक प्रसंग ऋषि लोकनिक द्वारा देल गेल निषेध-विधेय वचन अछि से निम्नोक्त अछि-(1) वर-कन्या स्वजाति हो (2) समान गोत्र ओ प्रवरक नहि हो (3) कन्या जाहि-जाहि पूर्वज सँ छठम स्थान धरि हो से वरक पितृ पक्षक सपिण्ड नहिं हो ततः पर कन्या जाहि-जाहि पूर्वज सँ पाँचम स्थान धरि हो से वरक मातृ पक्षक सपिण्ड नहिं हो अर्थात् असपिण्डा कन्या सँ विवाह करी सपिण्डताक परिधि निर्धारित अछि। ‘‘पंचमात् सप्तमात् उर्ध्वं मातृतः पितृतस्तथा सपिण्डता निवर्त्तेत सर्ववर्णेष्वयं विधि’’। एकरा दोसर रूपें बुझक हो तँ निम्नोक्त व्याख्या देखू- मातृतः पंचमी त्यक्त्वा पितृतः सप्तमी भजेत् (पूर्वकाल मे त्यजेत्)। वरक दूटा कुल होइत अछि पितृकुल ओ मातृकुल। पिता- पितामहादिक पितृकुल ओ मातृकुल वरक हेतु पितृकुल भेल-एहि मे जँ कोनो पितृपक्षक सपिण्ड पूर्वज सँ कन्या छठम स्थान धरिक अभ्यन्तर छथि वा मातृपक्षक सपिण्ड पूर्वज सँ कन्या पाँचम स्थान धरिक अभ्यन्तर छथि तँ ओहि कन्या सँ वरक वैवाहिक अधिकार नहिं। मूलार्थ अछि सपिण्डता निवृति- असपिण्डाकन्या विवाहार्थ अनुमोदित कएल गेल छथि। सपिण्डताक सीमा स्मृति सँ निर्धारित कएल गेल अछि। वरक पितृ पक्ष मे सात पीढ़ी धरि एकर अतिरिक्त आन कोनो दोसर प्रकारक सपिण्डताक चर्चा स्मृति ग्रन्थादि मे नहिं अछि। (4) कन्या-वरक कठमामक (विमाता अर्थात् सतमाय) सन्तान नहि हो। (5)वरक मातामह तथा पितामहक सन्तान कन्या नहिं हो (6) ज्येष्ठ कें अविवाहित रहला पर विवाह नहिं करबाक घोषणाक बादे छोटक विवाह हो (7) जीवित पत्नीक सोदर बहिन सँ विवाह नहिं हो। जीव विज्ञानक गुणसूत्रक;ब्ीतवउवेवउेद्ध सिद्धान्त आ धर्मशास्त्रक सपिण्डता मे एहि सन्दर्भ मं एकवाक्यता अछि। अस्तुविवाहक हेतु उपरोक्त निषेध ओ विधेय विज्ञान सम्मत अछि। वर्तमान जीवविज्ञान एवं आनुवंशिकी सिद्ध करैछ जे ‘‘जीन’’अपन समस्त गुण-दोषक संगे कुल परंपरा मे अग्रसर होइत रहैछ। सातम (संशोधित छठम) ओ पाँचम पीढ़ीक बाद समस्त गुणसूत्रताक निवारण होइत छैक।
एहि सभ निर्देशक एक मात्र उद्येश्य अछि उत्तरोत्तर गुणवत्ता सँ परिपूर्ण सन्तान प्राप्त हो जे संसारक श्रीवृद्धि मे अपन सर्वश्रेष्ठ क्षमता लगा सकथि। वस्तुतः ई संसार ईश्वरक एक प्रयोगशाला थीक। जतऽ प्रत्येक चिन्तनशील समाज अपन सुचिन्तित सुविचारित सिद्धान्त कें व्यावहारिक रूप देबा लेल उत्कंठित रहैत अछि। अस्तु एहि सब सिद्धान्तक व्यावहारिक परीक्षण तखनहिं संभव जखन सपिण्डताक ज्ञान प्राप्तिक हेतु वर ओ कन्याक यावतो परिचय उपलब्ध हो तँय वंश परम्पराक इतिहास राखब परमावश्यक रामायणमहाभारत,वायुपुराणादि ग्रन्थ मे हम देखैत छी जे विभिन्न वंशक वंशावली अत्यन्त प्रयासपूर्वक लिखल गेल अछि। रामायण मे मर्यादा पुरुषोत्तम राम ओ जगज्जननी सीताक विवाहक प्रसंग मे हुनका लोकनिक कुलक वर्णन क्रमशः वशिष्ठ ओ सांकाश्याक राजा कुशध्वज कएने छथि।
प्रदाने हि मुनिश्रेष्ठ कुलं निरवशेषतः।
वक्तव्यं कुलजातेन तन्निबोधमहामते।। बाल्मीकी रामायण- 1/7/12
ताहि सँ आगाँ बढ़ी तँ इशाक सातम् शताब्दी मे विद्यमान कुमारिल भट्टक रचित तंत्रवार्तिक मे विवाह संबंध मे प्रवृति-निवृति तय करबाक आधार रूप मे समूह लेख्यक परम्पराक संकेत प्राप्त होईछ-
विशिष्टे नैव हि प्रयत्नेन महाकुलीनाः परिरक्षन्ति आत्मानम। अनेनैव हि हेतुना राजाभिर्ब्राह्मणैश्च स्वपितृ पितामहादिपारम्पर्याविस्मरर्णार्थं समूह लेख्यानि प्रवर्तितानि। तथा च प्रति कुलं गुणदोषस्मरणात्तदनुरूपाः प्रवृति निवृत्तयो दृश्यन्ते।। तन्त्रवार्तिक-1-11-21
अर्थ: ओहि समय मे ब्राह्मण ओ क्षत्रीय लोकनि अपन-अपन पिता-पितामहादिक परम्पराक स्मरण रखवाक हेतु ओ विवाहक अवसर पर विभिन्न कुलक गुण-दोषक विचार कए नवीन संबंधक हेतु सम्मुख वा विमुख होएबाक लेल प्रयासपूर्वक वंश परिचय ‘‘समूह लेख्य’’क रूप मे रखैत छलाह। ई ‘‘समूह लेख्य’’ कुलक मान्यजन रखैत छलाह आ बेर पड़ला पर उपस्थित करैत छलाह। शताधिक वर्ष धरि एहिना चलैत रहल। परंच जेना कि पूर्वहिं लिखल अछि म्लेच्छ यवनक उत्पीड़न सँ जखन समाज छिन्न-भिन्न होमय लागल। एकहि कुलक भिन्न-भिन्न शाखा देश-देशान्तर मे पलायन करैत गेलाह तखन ‘‘समूह लेख्यक’’ परम्परा सेहो विनष्ट भऽ गेल। बहुतो विवाह शास्त्र विरूद्ध होईत रहल। कतहुँ त्राण नहिं। समाज क्लेश मे निमग्न छलएहि दुःकालक एकटा घटनाक चर्चा करब अनुचित नहिं। तेरहम श्ताब्दीक उत्तरार्द्ध मे जखन मिथिला मे कार्णाट वंशक शासन छल तऽ महाराज हरिसिंहदेवक राज्य सभाक धर्माध्यक्षक पद पर धर्मशास्त्रक प्रसिद्ध विद्वान हरिनाथ उपाध्याय पदासीन छलाह। दुर्योग सँ समुचित परिचयक अभाव मे हुनक विवाह गंगोर मूलक नयनाथक कान्या सँ अनधिकार मे भऽ गेलैन्हि आ विवाहोपरान्त शीघ्रे बूढ़-पुराणक मूँह सँ जे विवाहक अवसर पर विलम्ब सँ उपस्थित भेल छलाह तनिका सँ एहि दुर्घटनाक ज्ञान भेलैन्हि। सन्तप्त हृदय सँ ओ पत्नी कें अपन वृद्ध माताकें आश्रय मे राखि राजधानी चलि अएलाह। पत्नीकें सेहो एहि दुर्घटनाक ज्ञान भेलैन्हि। वर्त्तमान जीवनकें निस्सार बुझि शिवाराधना मे लागि गेलीह। प्रतिदिन गामक एकटा शिव मन्दिर मे पूजाक हेतु जाथि आ वृद्ध सासुक सेवा करथि। एहि मे जीवन बीतऽ लगलैन्हि। दीर्घकाल बीति गेल। एक बेर वर्षाक समय मे पूजाक हेतु मन्दिर गेलीह। पूजोपरान्त जे गाम दिशि विदा भेलीह तऽ वर्षा प्रारंभ भए गेलैक ओ ठमकि गेलीह। तखनहि एक हरवाहा वर्षा सँ बचवाक हेतु मन्दिर मे आएल। वर्षा रूकि गेला पर दूनू गोटे एकहिं बेर मन्दिर सँ प्रस्थान कएलैन्हि। ताहि स्थितिक लांछन लगाए गामक किछु अवण्ड युवक द्वारा पण्डितजी कें एहि मिथ्या कलंकक सूचना देल गेलैन्हि। ई सुनि पण्डिताईन अत्यन्त व्यथित भए गेलीह ओ तकर निवारणार्थ राज दरबार गेलीह आ अपनाकें निष्कलंक सिद्ध करबाक प्रार्थना राज सभा सँ कएलैन्हि। ताहि दिनक जे प्रायश्चित्तक विधान छल ताहि मे प्रथम प्रयासें ओ दोषी सिद्ध भेलीह। परंच ओ तऽ परम पवित्र छलीहमात्र स्वजना विवाहक चलैत जे दोष हुनका मे व्याप्त छलैन्हि ताहि दोषें ओ प्रायश्चित्ति भेल छलीह। पुनश्च ओ अपन समस्या ओहि समयक सर्वश्रेष्ठ विदुषी धर्मशास्त्रक मर्मज्ञा लखिमा ठकुराइनक (ई लखिमा श्रीपुर प्रगन्नाक फूलसरा ग्रामक दरिहरा मताओन मूलक मिमांशक रति मिश्रक आत्मजा छलीह ओ अलयवार मूलक महामहोपाध्याय रामेश्वरक धर्मपत्नी छलीह) शरणागत भए अपना समस्या रखलैन्हि। ओ हिनक जीवनक पूर्वापर घटना जानि प्रायश्चित्तक मंत्र ‘‘नाहं चाण्डाल स्वजना गामी’’ कें बदलि ‘‘पतिर्भिन्ना नाहं चाण्डाल स्वजनागामी’’ कए देलखिन्ह। एहि बेर ओ निर्दोषी सिद्ध भेलीह।
उपरोक्त घटना सँ प्रभावित भए महाराज हरिसिंहदेव अपन राज्यक विद्वान ब्राह्मण लोकनि कें आमंत्रित कए हुनका लोकनिकें एहि लेल प्रेरित कएलखिन्ह जे पूर्वक समूह लेख्यक परम्पराक विनष्ट भेला सँ जे धर्मक लोप भऽ रहल अछि तकर समाधान ताकथि। ब्राह्मण लोकनि दीर्घकाल धरि एहि पर कार्य कए एहि निष्कर्ष पर पहुँचलाह जे समस्त ब्राह्मणक्षत्रीय ओ कर्ण कायस्थ समाजक वंशी परिचयक संग्रहणक ओ संरक्षणक दायित्व समाजक योग्यतम व्यक्तिकें देल जाए। ओ व्यक्ति धर्मशास्त्रज्ञ होथि ओ समाजक धर्मक रक्षाक हेतु तत्पर रहथि। विवाहक अवसर पर हुनकहिं सँ स्वस्ति पाबि ब्राह्मणादि वर्ग विवाह करिथ। परिचयक पुस्तक पंजी कहौलक ओ परिचय रखनिहार व्यक्ति पंजीकारक संज्ञा सँ विभूषित भेलाह। पहिल पंजीकार पण्डुआ ततैल (महिन्द्रपुर) मूलक सदुपाध्याय गुणाकर भेलाह जनिक परिचय एहि पुस्तकक लेखकक पूर्वजक परिचयक सन्दर्भ मे आएल छैन्हि। कालान्तर मे हुनक अनेकशिष्योपशिष्य भेलैन्हि। पूर्व मे पंजीकारक सहयोगक हेतु गामे-गाम परिचेता सेहो होएत छलाह। जकर स्वरूप हैवनिधरि देखबा मे अबैत छल। महाराज हरिसिंहदेवक सभा मे जे पंजीकारक दायित्व सदुपाध्याय गुणाकर कें भेटल छलैन्हि ताहि सन्दर्भक श्लोक निन्मोक्त अछि:
नन्देन्दु शुन्यं शशि शाकवर्षे (1019)
तत्छ्रावणस्यधवले मुनितिथ्यधस्तात्।।
स्वाती शनैश्चरदिने सुपुजित लग्ने।
श्री नान्यदेव नृपतिर्व्यदधीत वास्तं।।1।।
शास्तानान्यपतिर्वभूव नृपतिः
श्री गंगदेवोनृपतत्सूनून्नरसिंह देव
विजयी श्री शक्तिसिंह तत्सुतः
तत् सूनू खलु रामसिंह विजयी
भूपालवन्तः सुतो जातः श्री हरिसिंहदेव नृपतिः
कार्णाट चूड़ामणिः।।2।।
श्रीमन्तं गुणवन्तमुत्तमकुलस्नाया विशुद्धाशयं
संजातानु गवेषणोत्सुक तयात्सर्वानु व्यक्तिर्क्षमं।
चातुर्यश्चतुराननश्च प्रतिनिधि कृत्वाच्चतुर्द्धामिमां पंचादित्य कुलान्विता विवजया दित्ये ददौ पंजिकाम्।।3।।
भूपालावनि मौलि रत्न मुकुटालंकार हिरांकुर ज्योत्सो ज्वाल यटाल भाल शशिभिः लिलंच चंचल मुखः। शोभा भाजि गुणाकरे गुणवतां मानन्द कन्दोदरे। दृष्टवासभां हरिसिंहदेव नृपतिः पाणौददौ पंजिकाम्।।4।।
दृष्टवासभां श्री हरिसिंहदेव विचार्यचित्ते गुणिने सहिष्णौगुणाकरे मैथिलवंशे जाते पंजी ददौ धर्म विवेचणार्थम।।5।।
वालाùियुग्म शशि सम्मित शाकवर्षे
पौषस्य शुक्ल नवमी रवि सूनूवारे
त्यक्त्वा सुपट्टन पुरी हरिसिंहदेवो
दुर्देव देव सित पथोरथे गिरी विवेशः।।6।।

अन्तर्मनक वार्ता
पछिला 42 वर्ष सँ अर्थात 1971 ई॰ सँ विद्यानन्द झा पंजी प्रबंध सँ समग्र रूपें जुड़ल छथिपिताकेँ सन्दूक खोलैतपुस्तक रखैतपुस्तक बन्हैतसिंहस्थ सूर्य मे पुस्तक कें रौद लगवैततिरहुता लिपि सिखैत,पुरूषा मे भेल विभिन्न पंजीकारक हस्तलिपि चिन्हैतशाखा पंजी घोंखैत (रटैत)पिताक जँतेत काल कण्ठस्थ कएल उत्तेढ़क वाचन करैत रहथि। गर्व एहि बातक छलनि जे वंशक प्रधान पुरुष जे प्रथम धौत परीक्षोत्तीर्ण प्रथम श्रेणी मे प्रथम स्थान पावऽ वला  महाराजाधिराज दरभंगा सँ दोशाला ओ दू खिल्ली पान विदाई स्वरूप पावऽ वाला प्रातः स्मरणीय महामहोपाध्याय डॉ॰ सर गंगानाथ झाक कर कमल सँ पंजीशास्त्र पारंगतक प्रमाण पत्र पाबऽ वाला हुनकर पिता सात भाय मे सँ हिनके अपन शास्त्रक उत्तराधिकारी बनौलन्हि। दियाद-वादक मित्र वर्ग आ  गौंवाँ-घरूवा तखनहिं सँ हिनका पंजीकार कहऽ लगलन्हि। पिता जखन पुष ओ चैत्र मास अर्थात खरमास मे क्षेत्र भ्रमण पर जाथिन तँ हिनके सिद्धान्त लिखबाक अधिकार दऽ जाथिन से 1974 ई॰ सँ प्रारम्भ भेल। शुद्धान्त मे जखन सौराठ सभा जाथि तऽ ओहि ठाम सँ श्रोत्रिय वो पंजीवद्ध लोकनिक परिचय अद्यतन कऽ कें आनथिन। ई सम्पादित कए पुस्तक मे लिखथि। पिता बड़ प्रसन्न होथिन। ताहि दिन मे खूब सिद्धान्त होइत छलैक। ई अपन भविष्यक प्रति आश्वस्त छला। शुद्धक समय मे पर्याप्त अतिथि हिनका ओहिठाम आवथिन। ताहि मे सँ बहुतो रात्रि विश्राम करथिन। जिज्ञासु ब्राह्मण लोकिन कँे ई प्राचीन उत्तेढ़ यथा-महाराज दरभंगाक वंशावलीसुरगन लोआम मूलक वंशावलीविद्यापति ठाकुरक वंशावली ओ अन्यान्यो विद्वान लोकनिक वंशावली कण्ठस्थ सुनबिथिन्ह। खूब वाहवाही भेटनि। किछु नकद पुरस्कार सेहो भेटलन्हि। परंच 1985ईस्वीक बाद सँ एहि स्थिति मे क्रमशः हृास हुअए लागलन्हि। ज्ञात होइत रहलन्हि जे बहुत राश विवाह बिना सिद्धान्तक भऽ रहल छै। आगन्तुकक संख्या क्रमागत रूपें घटैत गेलै। भरि शुद्ध मे सौ टा सिद्धान्त नहिं पुरन्हि। मन क्षुब्ध होइत गेलन्हि। ज्येष्ठ भ्राता श्रीयुत चुनचुन बाबू कें पाँजिक ककहरा सिखौलन्हिओ नीम-हकीम पंजीकार भेलाह। एहि लेल पिताक ताड़ना सेहो भेटलन्हि जे पाँजि से चीज नहिं थीक जे जेना-तेना सिखल लोक सिद्धान्त लिखथि।
14 नवम्बर 1998 ई॰ कें गुरुवर पिताक देहान्त भऽ गेलैन्हि। समस्त पुस्तक अपन आवास मैथिल टोलपूर्णिया लऽ अनलन्हि। किछु पुस्तक ज्येष्ठ भाइकें मंगला पर आजिविका हेतु दऽ देलन्हि। दू वर्ष धरि आन्तरिक घमर्थन मे रहला जे एहि सभ पुस्तक मे वर्णित वंशावलीक समयोचित उपयोग कोना करथि। सोचवाक कारण छलन्हि पूर्वापर सँ चल अबैत मूल कार्य मे दिनानुदिन होएत  ह्रास। मन व्यथित होइत रहलन्हि जे लगभग 750 वर्ष पूर्व पुरुषा प्रातः स्मरणीय सदुपाध्याय गुणाकर झा कार्णाट कुल शिरोमणि महाराज हरिसिंह देव सँ जे दायित्व ग्रहण कएलन्हि तकरा एहि दुःकाल मेजखन लोक अपन पुरुषा कें कृतघ्नताक सीमाधरि विस्मृत कए रहल अछिकोना बचावथि।
मेहथ (मधुबनी) वासी पनिचोभ वीरपुर मूलक श्रीयुत गजेन्द्र ठाकुर आ नागेन्द्र कुमार झा संग तिरहुता आ तकर देवनागरी लिप्यंतरणक वृहदाकार पुस्तक तैयार भेल-जिनोम मेपिंग (मिथिलाक पंजी प्रबंध) 450 ए.डी. सँ2008 धरिक... एहि पुस्तक मध्य तिरहुतक ब्राह्मणक पूर्ण इतिहास आएल अछि। पुस्तकक खूब मांग भेल ओ देश भरिक महाविद्यालयविश्वविद्यालय मे समाजशास्त्र विभाग मे आपूर्ति भेल। मिथिलाक ब्राह्मणक आनुवंशिक इतिहास पंजीकारक अनुपलब्धिक वादो प्राप्त होइत रहतनष्ट होयबा सँ बचि गेल।
ई सम्पादित भेलाक उपरान्त पूर्वांचल मिथिलाक (पूर्णियाकटिहारअररियाकिशनगंजमधेपुरासहरसा,सुपौल ओ खगड़ियागोड्डाभागलपुर) ब्राह्मणक उपलब्ध इतिहास जोड़ल गेल।

समर्पण
गजेन्द्र ठाकुर: अपन माता श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर पिता स्व. कृपानन्द ठाकुरपत्नी श्रीमति प्रीति ठाकुर आ दुनू बच्चा चि0 ओम (11 साल) आ सुश्री आस्था (7 साल) कें। भाय कुमार जितेन्द्रभौजी श्रीमति शालिनी (सुनीता)भतीजी स्वस्तिकाबहिन नीलिमा (नीलू दीदी)बहिनोई श्री श्रीमोहन चौधरी आ भगिनी तूलिका आ मधूलिकाक सम्बल सदैव रहल।
नागेन्द्र कुमार झा: पिता श्री प्रùुम्न कुमार झापितामह स्व0 सूर्यनारायण झा आ प्रपितामह स्व0 मंगल झा कें।
पंजीकार विद्यानन्द झा प्रसिद्ध मोहन जी: विद्यानन्द झा-पुस्तकक अनुवादक क्रम मे किछु गोटए अपन कर्त्तव्य बुझि अत्यन्त उदारतापूर्वक सहयोग कएलैन्हि यथा- सर्वश्रीयुत कृष्णानन्द राय ‘‘मुखिया जी’’ (अरिहानासोनालीकटिहार)श्रीयुत प्रकाश झाजी (विष्णुपुरअमौरपूर्णिया)श्री विजयेश झा (अभियंता,विष्णुपुरअमौरपूर्णिया)श्रीयुत महिनारायण झा (जहानपुरअररिया)श्रीयुत अविनाश प्र0 गुड्डू (जहानपुर,अररिया)डॉ॰ प्रो॰ श्रीयुत मणिन्द्र ठाकुर (भड़रीकटिहार)श्री जयप्रकाश मिश्र (वसन्तपुरकटिहार);  आ श्री धनंजय झा जी उर्फ गोपालजीक (पिता-श्री नवल किशोर झा)। संगहि  धर्मपत्नि श्रीमति गीता देवीपुत्र चि. अभिनव मुरारी ओ पुत्री द्वय सौ. प्रज्ञा ओ सुश्री जयाभातिज अधिवक्ता चि. निरंजन कुमार ‘‘मनोहरजी’’ आ हमर पुतहु (चि. मनोहरजीक धर्मपत्नि) स्मृति शेष साधना देवी। अन्ततः पिता ओ गुरुवर पंजीशास्त्र मार्त्तण्ड स्व. मोदानन्द झा ओ स्नेहमयी माता स्व. रामेश्वरी देवी कें स्मरण करैत यैह कहब जे-
‘‘एष शब्द पिण्डः ते मया दियते तवोपतिष्ठताम।’’
समस्त मैथिल ब्राह्मण वंश ओ हुनक पुरुषाक प्रति समर्पण-
‘‘त्वदीयं वस्तु ब्राह्मण तुभ्यमेव समर्पितम।’’

अग्रहन शुक्ल पंचमी सोमसन् 1420 साल फसली / अंग्रेजी सन् दिसम्बर 2012